कांवड़ यात्रा की तो श्रावण मास आने से पहले ही कांवड़ यात्रा या मेलों की तैयारी में देश के दसेक राज्यों में हर साल कई हजार करोड़ का आर्थिक चक्र घूम जाता है। एक अनुमान के अनुसार इस बार कांवड़ यात्रा के दौरान सात हजार करोड़ रु. से ज्यादा का कारोबार हुआ है।
भारत में धार्मिक आयोजन और त्योहार अर्थव्यवस्था के लिए भी फलदायी होते हैं। इनके कारण होने वाली खरीदारी से मंद बाजारों को प्रोत्साहन मिला है। इसे त्योहारी मांग कहते हैं जिससे व्यवसायी समाज की बांछें खिल जाती हैं। इसीलिए हर साल बैसाखी, होली, रक्षा बंधन, जन्माष्टमी, दशहरा, दीवाली, मकर संक्रांति के पर्वों पर बाजार में रौनक रहती है। इसी तरह नवरात्र और श्रावण, कार्तिक, माघ के मेले समेत कुंभ, जगन्नाथ यात्रा जैसे कई धार्मिक मेले एवं आयोजन अर्थव्यवस्था में तेजी लाते हैं।
बात करें कांवड़ यात्रा की तो श्रावण मास आने से पहले ही कांवड़ यात्रा या मेलों की तैयारी में देश के दसेक राज्यों में हर साल कई हजार करोड़ का आर्थिक चक्र घूम जाता है। एक अनुमान के अनुसार इस बार कांवड़ यात्रा के दौरान सात हजार करोड़ रु. से ज्यादा का कारोबार हुआ है। दो साल के कोविड काल के बाद इस बार कांवड़ यात्रा को लेकर कारोबारियों में भारी उत्साह था। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार अच्छा व्यापार होगा और ऐसा हुआ भी।
कांवड़ के लिए बांस की टोकरी बनाने का बहुत बड़ा कारोबार होता है। इसके कारोबारी समीर कहते हैं कि इस बार टोकरियों की मांग बहुत ज्यादा थी। कोविड के बाद पहली बार बाजार उठा। हमारे कारीगर सालभर इस काम में लगे रहते हैं। दो साल काम नहीं हुआ, लेकिन इस बार सब कसर पूरी हो गई
सावन की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर सावन की शिवरात्रि तक कांवड़ यात्रा चलती है। चतुर्दशी के दिन किसी भी शिवालय पर जल चढ़ाना मोक्षदायक माना जाता है। ज्यादातर कांवड़िए मेरठ के औघड़नाथ, बागपत के पुरा महादेव, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर और बंगाल के तारकनाथ मंदिर, मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर मंदिर या महाकालेश्वर मंदिर पहुंचते हैं। कुछ अपने गृहनगर या निवास के करीब के शिवालयों में भी जाते हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश के शिवालयों में कांवड़ यात्रा पूरी करने वाले कांवड़िये हरिद्वार में गंगा नदी से, वैद्यनाथ धाम में यात्रा पूरी करने वाले सुल्तानगंज (भागलपुर) में गंगा नदी से और ओंकारेश्वर एवं महाकालेश्वर में यात्रा पूरी करने वाले कावड़िये नर्मदा नदी से जल लेते हैं। इससे हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में कांवड़ यात्रा की धूम रहती है।
एक अनुमान के अनुसार अकेले हरिद्वार में ही इस बार कांवड़ियों की संख्या चार करोड़ के आसपास पहुंच गई जिन्होंने गंगा घाटों से अमृत जल उठाया। वहीं, बिहार और मध्य प्रदेश में एक करोड़ से ज्यादा कांवड़ियों ने शिवालयों में शिवलिंग पर जल चढ़ाया। आस्था के केसरिया जनसैलाब ने इन राज्यों की सड़कों पर हिंदू समरसता का अद्भुत दृश्य पैदा किया।
सात हजार करोड़ का कांवड़ बाजार
हरिद्वार के पास सहारनपुर में कोलकाता के बाद सबसे बड़ी हौजरी और कपड़े की मंडी है। कांवड़ यात्रा शुरू होने से एक माह पहले से ही सहारनपुर के कपड़ा बाजार का रंग भगवा हो गया था। कपड़े, अंगोछे आदि के थोक बाजार ने कई सौ करोड़ का कारोबार किया है। एक कपड़ा कारोबारी योग चुग कहते हैं कि इस बार करीब चार करोड़ कांवड़िये आए। हमने बाजार में खुदरा विक्रेताओं को सौ से लेकर तीन सौ रुपये की टीशर्ट दी। शॉर्ट्स और लोअर भी इतने की थी। जल लेने आए कांवड़ियों द्वारा गंगा में डुबकी लगाने के बाद नए एवं कोरे कपड़े पहनना प्राचीन परंपरा है।
उन्होंने बताया कि बुलडोजर बाबा, मोदी, योगी के चित्रों की टीशर्ट इस वर्ष शिव की तस्वीरों से ज्यादा बिकी है, यानी माहौल के हिसाब से फैशन चलता है। उन्होंने बताया कि हरिद्वार ही नहीं, हमने बिहार और मध्य प्रदेश के बाजारों में भी कांवड़ के वस्त्र भेजे हैं। एक अनुमान के अनुसार करीब एक हजार करोड़ की वस्त्र सामग्री तो थोक में ही बिकी है, खुदरा विक्रेता ने भी अपना हिस्सा लिया होगा।
बिजनौर-नजीबाबाद जिलों में कांवड़ के लिए बांस की टोकरी बनाने का बहुत बड़ा कारोबार होता है। इसके कारोबारी समीर कहते हैं कि इस बार टोकरियों की मांग बहुत ज्यादा थी। कोविड के बाद पहली बार बाजार उठा। हमारे कारीगर सालभर इस काम में लगे रहते हैं। दो साल काम नहीं हुआ, लेकिन इस बार सब कसर पूरी हो गई। जो माल रुका पड़ा था, सब बिक गया। एल्यूमीनियम, पीतल, जेरिकेन कलश आदि के बाजार को भी बढ़ता देखा गया।
हरिद्वार के पंडा पुरोहित समाज के महासचिव अविक्षित रमन कहते हैं कि इस साल कांवड़ यात्रा पूरे उत्साह के साथ भव्य रूप में चली। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल से बड़ी संख्या में कांवड़ यात्री आए। सबने जमकर खरीदारी कर अपनी कांवड़ को भव्य रूप में संवारा।
तिरंगा, संगीत, राशन, ईंधन का करोड़ों का कारोबार
आजादी का अमृत महोत्सव नजदीक होने के कारण कांवड़ यात्रा में शिवभक्तों के हाथों में इस बार भगवा ध्वज के साथ-साथ बड़े-बड़े राष्ट्रीय ध्वज भी देखे गए। हर तीसरी कांवड़ पर राष्ट्रीय ध्वज लगा कर कांवड़िए जब आगे बढ़ रहे थे तो उनमें शिव के साथ-साथ मां भारती के प्रति भी आस्था-निष्ठा साफ दिखाई दे रही थी। कांवड़िए इस बार शिव के साथ-साथ भारत मां की झांकियां भी लेकर चल रहे थे। हिंदुत्व और राष्ट्रीयता का यह अद्भुत नजारा राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह-जगह देखने में आया। कांवड़ यात्रा हिंदुओं की सामाजिक समरसता का प्रतीक बन गई है। एक जानकारी के अनुसार बाजार में तिरंगे झंडों के सैकड़ों स्टाल लगे। इनका भी खूब कारोबार हुआ। कांवड़ यात्रा मार्ग पर कांवड़ियों के हाथों में लहराते तिरंगे का कारोबार भी करोड़ों में पहुंच गया।
लंगर, भोजनालय में राशन का कारोबार भी करीब एक हजार करोड़ के आंकड़े को छुएगा। कांवड़ यात्रा मार्ग पर लगने वाले हर भंडारे में राशन, तेल, गैस, पानी, जूस और श्रमिक आदि के खर्च का जोड़ लाखों में आता है। यात्रा मार्ग में हजारों शिविर और भंडारे चलते हैं और दानदाताओं के सहयोग से इन्हें चलाया जाता है।
डीजे, संगीत, वाहन, डीजल, पेट्रोल, सीएनजी का खर्च भी करोड़ों में हुआ है। बागपत से हरिद्वार आए और फिर वापस गए तीन सौ कांवड़ियों के दल के साथ एक म्यूजिक सिस्टम भी आया जिसे तीन करोड़ का बताया गया। शिव भक्ति संगीत में डूबे इन कांवड़ियों ने हर जगह रुक-रुक कर माहौल को भोलेमय बना दिया। हर पांचवें कांवड़ दल के साथ भक्ति संगीत का साउंड सिस्टम लगा हुआ देखा गया। जहां-जहां भंडारे लगे थे, वहां भी डीजे सिस्टम लगा हुआ था। यानी संगीत साउंड सिस्टम का भी करोड़ों का कारोबार हुआ।
अकेले हरिद्वार में ही इस बार कांवड़ियों की संख्या चार करोड़ के आसपास पहुंच गई जिन्होंने गंगा घाटों से अमृत जल उठाया। वहीं, बिहार और मध्य प्रदेश में एक करोड़ से ज्यादा कांवड़ियों ने शिवालयों में शिवलिंग पर जल चढ़ाया। आस्था के केसरिया जनसैलाब ने इन राज्यों की सड़कों पर हिंदू समरसता का अद्भुत दृश्य पैदा किया
झांकियां, मूर्तियों को बनाने वाले सैकड़ों मूर्तिकारों को भी कांवड़ यात्रा में रोजगार मिला। कहीं शिव तो कहीं भारत माता, कहीं बुलडोजर बाबा तो कहीं किसी और देव की प्रतिमाएं बना कर उन्हें झांकियों के रूप में पेश किया गया। वाहनों पर, ठेलों पर, रिक्शों पर देव दरबार की झांकियां एक कार्निवाल की तरह सड़कों पर बढ़ती दिखाई दे रही थीं। बताया गया कि कांवड़ दलों ने एक-एक मूर्ति पर एक से पांच लाख रुपये तक का खर्च किया था। ऐसी सैकड़ों झांकियां कांवड़ यात्रा में दिखीं।
यह कारोबारी परिदृश्य हरिद्वार के साथ ही उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी दिखा। जिन शहरों और कस्बों के पास की नदी से कांवड़िये जल लेते हैं और जिन स्थानों के शिवालयों में पहुंच कर जलाभिषेक करते है, उन स्थानों के आसपास दो से तीन हफ्तों तक मेला लगता है जहां दुकानें सजती हैं।
चार्टर्ड अकाउंटेंट प्राची अरोरा बताती हैं कि यदि पांच करोड़ कांवड़िये श्रावण मास के दो हफ्तों में यात्रा मार्ग पर चले और एक कांवड़िये पर हम 15 दिनों में 1,500 रुपये के खर्च का अनुमान लगाते हैं तो भी ये राशि सात हजार करोड़ रुपये से पार हो जाती है। वे कहती हैं कि हालांकि पांच से सात सौ का खर्च तो एक कांवड़ बनाने में हो जाता है। उनके खाने, पहनने और यात्रा का खर्च अलग है। अनुमान है कि इस बार कांवड़ यात्रा के दो हफ्ते में सात हजार करोड़ रुपये से कहीं ज्यादा का कारोबार हुआ।
सरकार का खर्च
एक अनुमान के मुताबिक पुलिस-प्रशासन के दस-दस हजार पुलिस कर्मी हर राज्य में कांवड़ ड्यूटी पर रहते हैं जिनपर सरकार का खर्च भी करोड़ों में पहुंचता है। इस बार तो कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने स्वयं कांवड़ियों पर हेलिकॉप्टर से फूल बरसाए और उनका सम्मान भी किया। उच्च पुलिस अधिकारियों और प्रशासन के अधिकारियों को सड़कों पर कांवड़ियों की सेवा करते देखा गया, कोई जूस पिला रहा था तो कोई पानी पिला रहा था। देखें तो कांवड़ यात्रा से हर साल बाजार को हजारों करोड़ रुपये की बड़ी मांग मिलती है। इससे हर वर्ग को फायदा मिलता है। हालांकि जब कांवड़ चलती है, तो यातायात प्रभावित होने से कुछ शहरों में माल की आपूर्ति पहुंचने में देरी होने से नुकसान भी होता है लेकिन जिन्हें पता होता है कि श्रावण मास में इन इन मार्गों से कांवड़िए गुजरेंगे, वे पहले से वैकल्पिक व्यवस्था बना कर चलते है।
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