यह वह समय था जब क्रेडिट कार्ड का कारोबार लोकप्रिय हो ही रहा था और बैंक लोगों को पकड़-पकड़कर कार्ड दे रहे थे। आज तो लोगों को बखूबी पता है कि पैसे चुकाने के संबंध में ब्याजमुक्त समय की गणना कैसे होती है और कैसे इससे बचा जा सकता है।
आज के समय में बिना ऋण के किसी का काम नहीं चलता और अगर ऋण लेना है तो ‘सिबिल’ स्कोर ठीक रहना चाहिए। अन्यथा बैंक ऋण देने से इनकार कर देगा। यह बात सब जानते हैं। लेकिन अगर किसी व्यक्ति का ‘सिबिल’ स्कोर कम हो तो भी क्या उसे ऋण मिल सकता है? अगर मिल सकता है तो कौन देगा और किन शर्तों पर देगा?
इसे एक उदाहरण से समझते हैं। यह वह समय था जब क्रेडिट कार्ड का कारोबार लोकप्रिय हो ही रहा था और बैंक लोगों को पकड़-पकड़कर कार्ड दे रहे थे। आज तो लोगों को बखूबी पता है कि पैसे चुकाने के संबंध में ब्याजमुक्त समय की गणना कैसे होती है और कैसे इससे बचा जा सकता है। लेकिन तब बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी, जिन्हें नियम-शर्तों का ठीक से पता नहीं था। उसी दौर में नवीन कुमार (बदला हुआ नाम) के पास 4-5 कार्ड हुआ करते थे। क्रेडिट कार्ड आने के बाद एक तो उपभोक्ता के खरीदने की ताकत बढ़ी और दूसरी बारीक नियम-शर्तों को नहीं पढ़ने की भूल।
नतीजा, 35-36 प्रतिशत की दर से ब्याज लगने लगा और एक साल होते-होते वह इतना खर्च कर चुके थे कि पैसे लौटाना उनके बूते में नहीं था। बड़ी मुश्किल से पैसे जोड़-जोड़कर, दोस्तों से उधार लेकर धीरे-धीरे पांच-छह साल में बकाया चुकाया। दो बैंकों से सेटलमेंट किया। लेकिन एक कार्ड के 550 रुपये रह गए। उन्हें अंदाजा भी नहीं रहा और इत्तेफाक देखिए कि वह ऋण लेकर फ्लैट लेते हैं तो वह भी विवादों में फंस जाता है और बैंक की किस्तें जाना बंद हो जाती हैं। मामला डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल में चलता है और अंतत: बिल्डर पैसे जमा करके फ्लैट ले लेता है। काफी साल बाद जब उनकी हालत धीरे-धीरे ठीक होती है तो वह कार खरीदना चाहते हैं। अब यहां से ‘सिबिल’ की कहानी शुरू होती है।
उन्हें यह तो पता था कि उनका ‘सिबिल’ स्कोर ठीक नहीं होगा, लेकिन लगता था कि सब आसानी से हो जाएगा, क्योंकि उन पर सालों से कोई बकाया नहीं रहा, सारे मामले खत्म हो चुके हैं। इसके अलावा वह कार की कीमत का 25 प्रतिशत नकद देने को तैयार थे, जबकि ऋण के लिए तो 15 प्रतिशत नकद भुगतान ही जरूरी था। उन्होंने कई सार्वजनिक बैंकों के चक्कर काटे, लेकिन कोई ऋण देने को तैयार नहीं हुआ। बाद में उन्हें एक निजी बैंक से ऋण लेना पड़ा। बैंक ने शर्त रखी कि वह कार की कीमत का आधा पैसा नकद भुगतान कर दें। इसके बाद भी उन्हें 1.5 प्रतिशत महंगा ऋण मिला। इस दौरान उन्हें पता चला कि उनकी ‘सिबिल’ रिपोर्ट में बाकी सारे विवाद तो सेटल दिखाए गए हैं, लेकिन 550 रुपये का एक बकाया अब भी बना हुआ है। इससे समझा जा सकता है कि ‘सिबिल’ स्कोर का ठीक रहना कितना जरूरी है।
कितना हो स्कोर: ‘सिबिल’ तीन अंकों का होता है जो 300 से 900 के बीच होता है। जितना ज्यादा स्कोर, ऋण लेने में उतनी ही आसानी। यह स्कोर कितना होगा, यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे-कहीं किसी भुगतान में आपने डिफॉल्ट तो नहीं किया, किया तो उसका निपटारा हुआ या नहीं, हुआ तो कैसे हुआ। इसके अलावा ऋण के लिए बार-बार आवेदन करने और इसके खारिज होने से भी स्कोर घटता है। अगर स्कोर 300 से 700 के बीच हो तो ऋण मिलने की संभावना बहुत कम होती है। जैसा कि नवीन कुमार के मामले में हुआ। उनका स्कोर 632 था और सरकारी बैंकों ने ऋण का उनका आवेदन सरसरी तौर पर ही खारिज कर दिया। अगर स्कोर 800 से 900 के बीच होता है तो ऋण मिलने की संभावना अधिक होती है।
क्वालीफाइंग राउंड: क्या ‘सिबिल’ स्कोर अच्छा होना इस बात की गारंटी है कि ऋण मिल ही जाएगा? नहीं। इसे ऐसे समझना चाहिए कि जिस तरह कई परीक्षाओं में क्वालीफाइंग राउंड होता है, जिसमें चुने हुए लोगों को ही आगे की परीक्षा प्रक्रिया में शामिल किया जाता है, वैसे ही ऋण के मामले में भी बैंक सबसे पहले ‘सिबिल’ स्कोर देखते हैं। अगर वह ठीक है तो समझिए कि क्वालीफाइंग राउंड पास। उसके बाद बैंक बाकी कारकों पर विचार करेगा कि ऋण देना सही होगा या नहीं। इस क्रम में देखा जाएगा कि ऋण मांगने वाले की आय कितनी है, उसकी आमदनी में कितनी स्थिरता है, उसकी नौकरी कितने साल की बची है, उसके पास कितने की चल-अचल संपत्ति है, वगैरह-वगैरह।
फिर भी मिल सकता है ऋण : बैंक अगर किसी को ऋण देते हैं तो उसकी जांच-पड़ताल का मुख्य कारण यह देखना होता है कि किसी व्यक्ति की ऋण चुकाने की क्षमता कैसी है और अगर वह इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाए कि उसका पैसा डूबने नहीं जा रहा तो बैंक ऋण दे देगा। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति किसी बैंक के पास निजी ऋण के लिए जाता है, लेकिन उसका ‘सिबिल’ स्कोर 300 के आसपास है, तो उस स्थिति में अगर उसने ऋण के बराबर राशि की संपत्ति, सोना, एफडी वगैरह गिरवी रख दी तो उसे ऋण मिल सकता है। हां, इस स्थिति में बैंक यह जरूर देखेगा कि जो कुछ भी गिरवी के तौर पर रखा जा रहा है, उसके मालिकाना हक को लेकर कानूनी स्थिति क्या है।
कैसे रखें ध्यान: कई तरह के ऋण असुरक्षित होते हैं जैसे निजी ऋण, क्रेडिट कार्ड इत्यादि। आम तौर पर इनसे जुड़े भुगतान डिफॉल्ट को गंभीरता से ऋण चाहिए और इसके अलावा भी अगर आपकी योजना चार-छह माह बाद ऋण लेने की हो तो एक बार ‘सिबिल’ रिपोर्ट निकलवाना बेहतर होता है। इससे यह तो पता चल सकेगा कि कहीं कोई भुगतान रह तो नहीं गया!
रिपोर्ट निकलवाने का फायदा यह भी होगा कि अगर किसी मानवीय भूल के कारण आपका रिकॉर्ड खराब दिख रहा है तो उसे ठीक कराने का समय मिल जाएगा। अगर किसी को अपनी ‘सिबिल’ रिपोर्ट में कोई चूक दिखती है तो वह ‘सिबिल’ की वेबसाइट पर जाकर शिकायत कर सकता है और इसके बाद बैंक से जवाब तलब किया जाएगा। अगर आपकी शिकायत ठीक साबित होती है तो ‘सिबिल’ स्कोर भी ठीक कर दिया जाएगा। ‘सिबिल’ स्कोर आम तौर पर 90 दिनों में अपडेट होता है, इसलिए अगर 4-6 माह हाथ में लेकर इस ओर से निश्चित हो जाएं तो अच्छा।
कुल मिलाकर ‘सिबिल’ स्कोर एक ऐसा नंबर है, जिसे ठीक रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि कब इसकी जरूरत पड़ जाए, क्या पता। उस स्थिति में सिबिल के ठीक रहने से काम आसान तो हो ही जाएगा।
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