बहुत सारे लक्ष्य होते हैं, जो जीवन के अलग-अलग चरणों में पूरे होने वाले होते हैं। किसी व्यक्ति का जीवन कैसा रहने वाला है, यह सामान्य तौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि उसने जीवन के इन लक्ष्यों या कहें कि जरूरतों के लिए किस तरह की वित्तीय तैयारी कर रखी है। इस संदर्भ में एक अहम उपकरण है जीवन बीमा।
हर व्यक्ति के बहुत सारे लक्ष्य होते हैं, जो जीवन के अलग-अलग चरणों में पूरे होने वाले होते हैं। किसी व्यक्ति का जीवन कैसा रहने वाला है, यह सामान्य तौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि उसने जीवन के इन लक्ष्यों या कहें कि जरूरतों के लिए किस तरह की वित्तीय तैयारी कर रखी है। इस संदर्भ में एक अहम उपकरण है जीवन बीमा। क्योंकि हर व्यक्ति की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं और किसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में अगर वह व्यक्ति नहीं रहा तो उन जिम्मेदारियों का क्या होगा! भारत में अब भी बीमा को लेकर एक बड़ी जनसंख्या में गलत धारणा है। लोग इसे निवेश के तौर पर देखते हैं और दो ही बातों को ध्यान में रखते हैं- एक, टैक्स में छूट मिलेगी और दूसरा, पॉलिसी के परिपक्व होने या पॉलिसी की अवधि के दौरान उसे कितने पैसे मिलेंगे।
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि आप बीमा ले क्यों रहे हैं? कल को अगर सरकार ने आयकर में मिलने वाली छूट खत्म कर दी तो क्या आप बीमा नहीं कराएंगे? अगर आप निवेश के लिए ले रहे हैं तो जीवन बीमा पॉलिसी ही क्यों? हां, अगर आप जीवन बीमा और निवेश, दोनों को ध्यान में रखते हुए फैसला करना चाहते हैं तो एन्डाउमेंट पॉलिसी ले सकते हैं। वैसे जो लोग विशुद्ध रूप से इसलिए जीवन बीमा लेना चाहते हैं कि अगर किसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में वे नहीं रहे, तो भी उनकी जिम्मेदारियां पूरी हो जाएं, तो उन्हें टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी लेनी चाहिए। इससे बेहतर कुछ भी नहीं है।
टर्म इंश्योंरेंस है असली जीवन बीमा
टर्म इंश्योरेंस और एन्डाउमेंट प्लान, दोनों में ही जीवन तो कवर होता ही है। फिर भी दोनों में काफी अंतर है और ये दो तरह की प्राथमिकताओं वाले लोगों के लिए होते हैं। टर्म इंश्योरेंस विशुद्ध रूप से जीवन का बीमा है और इसमें बीमित राशि का भुगतान तभी होता है जब व्यक्ति का निधन हो जाए, लेकिन अगर वह व्यक्ति बीमित अवधि को पार कर जाता है तो उसे कोई पैसा नहीं मिलेगा। वहीं, एन्डाउमेंट प्लान वे होते हैं जिनमें जब बीमा की अवधि पूरी हो जाती है और बीमित व्यक्ति जीवित रहता है तो उसे एकमुश्त कुछ पैसे भी मिल जाते हैं। टर्म इंश्योरेंस में बीमा राशि अधिक होती है और प्रीमियम कम। अगर 25 साल की उम्र के आसपास टर्म प्लान लिया जाए तो कुछ सौ रुपये के मासिक प्रीमियम पर एक करोड़ की पॉलिसी ली जा सकती है, जबकि एन्डाउमेंट प्लान में उतने ही पैसे में बहुत कम राशि का बीमा मिलेगा। क्योंकि इस स्थिति में पॉलिसी के मैच्योर हो जाने के बाद बीमित व्यक्ति को वापस कुछ पैसे मिल जाते हैं।
बढ़ी है जागरुकता
कोविड के बाद एक सकारात्मक परिवर्तन यह आया है कि लोगों में जीवन बीमा को लेकर जागरुकता आई है। वर्ष 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2020 के दौरान भारत में जीवन बीमा की पैठ (जीडीपी के मुकाबले जीवन बीमा प्रीमियम का प्रतिशत) बढ़कर 3.2 हो गई, जबकि कोरोना से ठीक पहले यानी 2019 के दौरान यह 2.8 प्रतिशत थी। इस मामले में भारत वैश्विक औसत (3.3 प्रतिशत) के पास पहुंच गया। हालांकि इस क्षेत्र में भारत को और आगे बढ़ना होगा और उसे बड़े देशों की तुलना में अपनी स्थिति को देखना होगा। वित्त वर्ष 2021 के दौरान भारत में जीवन बीमा के मामले में 2.78 खरब रुपये राशि नई पॉलिसी से आए जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 7.49 प्रतिशत की वृद्धि दिखाता है। नए बिजनेस के मामले में निजी कंपनियों की भागीदारी 33.8 प्रतिशत रही, जबकि बाकी भारतीय जीवन बीमा (एलआईसी) के खाते में गया।
कितने का हो बीमा
पहली बात तो यह है कि दुनिया में बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है, जिनका जीवन बीमित नहीं है। यहां तक कि अमेरिका में भी लगभग एक चौथाई (23 प्रतिशत) वयस्क आबादी के पास जीवन बीमा नहीं है।
जहां तक भारत की बात है, तो सौ में से केवल तीन लोगों के पास जीवन बीमा पॉलिसी है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत की 130 करोड़ की आबादी में लगभग नब्बे करोड़ के पास जीवन बीमा नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया भर में बीमित लोगों की संख्या कम है और भारत जैसे देश के लिए यह एक बड़ा सामाजिक मुद्दा भी है। दूसरी बात यह है कि जिनके पास बीमा है, वह भी क्या पर्याप्त है?
एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में बीमित लोगों में आधे से ज्यादा के पास उनकी जरूरतों की तुलना में कम राशि का बीमा है। यानी अमेरिका की बीमित आबादी में से लगभग आधे लोगों की यह स्थिति है कि अगर उनकी मृत्यु हो जाए तो उनका परिवार आर्थिक संकट में फंस जाएगा। ऐसे में भारत की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
इसलिए जरूरी है कि टर्म इंश्योरेंस लेते समय अपनी जरूरतों का ध्यान रखा जाए। निजी जरूरतों और लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए मुद्रास्फीति का भी ध्यान रखना होगा, क्योंकि ऐसा न हो कि जब वह राशि मिले तो समय के साथ बढ़ती महंगाई के कारण उस राशि से निर्धारित लक्ष्यों को पूरा ही न किया जा सके।
भारत में सस्ता टर्म इंश्योरेंस
भारत में टर्म इंश्योरेंस का प्रीमियम दुनिया के विभिन्न देशों की तुलना में कम है। मोटे तौर पर विकासशील और उन्नत देशों की तुलना में भारत में टर्म इंश्योरेंस का प्रीमियम करीब एक तिहाई सस्ता है। 25-30 साल का एक व्यक्ति अगर 70 साल की उम्र तक के लिए टर्म इंश्योरेंस खरीदता है तो उसका प्रीमियम लगभग हजार रुपये मासिक आएगा, जबकि अमेरिका या सिंगापुर जैसे देशों में इतने की पॉलिसी के लिए करीब 30-35 प्रतिशत ज्यादा प्रीमियम देना होगा।
ऐसी भूल ठीक नहीं
टर्म इंश्योरेंस के बारे में एक सामान्य धारणा यह होती है कि कम उम्र में लोग इसे लेने से परहेज करते हैं। वे यह सोचते हैं कि मुझे क्या हुआ है? मैं तो एकदम ठीक हूं तो आखिर टर्म इंश्योरेंस लूं क्यों? जबकि उसी व्यक्ति को अगर कोई उपभोक्ता सामान खरीदना होगा तो वह इधर-उधर समझौता करके उसे खरीद लेगा। लेकिन लोग जो बात नहीं समझ पाते, वह यह कि कम उम्र में जब वे टर्म इंश्योरेंस लेते हैं तो उनका प्रीमियम फिक्स हो जाता है, जबकि अगर बाद में इंश्योरेंस लिया तो प्रीमियम की राशि उनकी बढ़ी उम्र के हिसाब से तय होगी जो निश्चित ही तब से अधिक होगी। कम उम्र में आम तौर पर लोगों को कोई शारीरिक परेशानी नहीं होती, लेकिन उम्र बढ़ने के बाद उनमें कोई न कोई रोग हो सकता है। और उस स्थिति में या तो बीमा मिलेगा नहीं या फिर मिलेगा तो ज्यादा प्रीमियम पर।
आम तौर पर लोग एक और भूल करते हैं। आजकल जब भी कोई होम लोन वगैरह लेता है तो बैंक की ओर से उसका बीमा कराया जाता है, ताकि किसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में उसका पैसा डूबे नहीं। यह बैंक की चिंता का विषय नहीं है कि लोन को कोई कैसे चुकाए। मूलत: यह समस्या तो उस परिवार की होती है, जिसके किसी सदस्य ने कोई होम लोन लिया हो और किसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में उसकी मृत्यु हो जाए। बैंक जो कराते हैं, वह टर्म इंश्योरेंस ही होता है और इसमें भी बीमित अवधि तक व्यक्ति के जीवित रहने पर उसे कोई पैसा नहीं मिलता।
लोन को बीमा से कवर करना अनिवार्य है। लेकिन एक मामले में लोगों के पास विकल्प होता है कि वे पूरी लोन अवधि के लिए बीमा कराएं या फिर कम अवधि के लिए। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो पूरी अवधि के लिए बीमा नहीं कराते, क्योंकि इसका प्रीमियम थोड़ा ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी व्यक्ति ने 25 साल के लिए होम लोन लिया और बीमा के एकमुश्त प्रीमियम को कुछ घटाने के लिए लोन को कवर करने वाले बीमा की अवधि 10 साल की रख ली। क्या इस बात की गारंटी है कि 10 साल बीतने के बाद उस व्यक्ति की मृत्यु नहीं होगी? इस तरह की भूल कभी नहीं करनी चाहिए। जब भी होम लोन आदि लें तो बीमा की अवधि को कम नहीं कराएं।
कोई आदत-रोग छिपाएं नहीं
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इंश्योरेंस लेते समय कोई शारीरिक बीमारी या आदत नहीं छिपाएं। बहुत लोग सिगरेट पीते हैं, लेकिन बीमा के प्रीमियम को कम रखने के लिए लिख देते हैं कि वे सिगरेट नहीं पीते। या कोई बीमारी है और उसे छिपा जाते हैं। याद रखें, इस तरह की भूल भारी पड़ सकती है और बाद में बीमा कंपनी को जांच-पड़ताल के दौरान जब इसका पता चलेगा तो वह इस आधार पर क्लेम देने से इनकार कर सकती है।
कोरोना ने हमारे सोचने-समझने के तरीके में काफी अंतर ला दिया है और खास तौर पर इसकी दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या ऐसे लोगों की रही जिन्होंने अपने आसपास किसी अघट को घटते देखा। संभव है, इस दौरान जान गंवाने वाले लोगों में से कुछ ऐसे भी होंगे, जिन्होंने लंबे समय का होम लोन लेकर बीमा कम समय के लिए कराया होगा। संभव है, आपके पास ऐसे उदाहरण हों। सोचिए, उनका परिवार किस मुसीबत में पड़ा होगा! इसलिए जरूरी यह है कि कम से कम वित्तीय प्रबंधन इस तरह करें कि कल की किसी भी अनहोनी के कारण होने वाले आर्थिक परेशानी का समाधान तो हो ही जाए।
याद रखें, हमारे आसपास बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है जो जीवन को खुलकर, खुश होकर केवल इसलिए नहीं जी पाते क्योंकि उन्होंने अपनी जरूरतों के हिसाब से वित्तीय प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया। अगर कम उम्र में सही फैसला करके टर्म इंश्योरेंस ले लिया जाए तो जिंदगी को बेहतर तरीके से, कम से कम ज्यादा निश्चिंत होकर जिया जा सकता है।
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