पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर ‘ईशनिंदा’ का इस्लामी कोड़ा बरसाने की घटनाओं में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी देखने में आई है। वहां इस कानून की आड़ में अल्पसंख्यक समुदायों पर जुल्म किए जा रहे हैं। यह रिपोर्ट दी है कनाडा के एक थिंक टैंक ने।
उल्लेखनीय है कि पड़ोसी इस्लामी देश में अल्पसंख्यकों पर ईशनिंदा कानून के अंतर्गत की जा रही हैवानियत को लेकर दुनियाभर में पाकिस्तान को धिक्कारा जाता है। कई मानवाधिकार संगठन संयुक्त राष्ट्र तक में इसके विरुद्ध आवाज उठा चुके हैं। लेकिन वहां की कट्टर मजहबी सोच वाली सरकार और उस पर हावी उन्मादी तत्वों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
कनाडा के थिंक टैंक की इस ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर इस्लामवादी देश की कलई खोलकर रख दी है। रिपोर्ट ईशनिंदा कानून पर उंगली उठाते हुए उसे अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना का औजार बताती है।
पड़ोसी देश में ईशनिंदा कानून के तहत मुख्य निशाना वहां बचे—खुचे हिंदुओं और ईसाई लोग हैं। अहमदिया जैसे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर भी अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है। ये रिपोर्ट ददेने वाले कनाडा के थिंक टैंक का नाम है इंटरनेशनल फोरम फार राइट्स एंड सिक्योरिटी। इसने अपनी ताजा रिपोर्ट में अन्य कई खुलासे भी किए हैं। लिखा है कि पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में बड़ी तादाद में निरअपराध लोगों को जेलों में डाला जा रहा है। इस कानून के तहत अनेक लोगों को सजाए मौत सुनाई गई है।
अभी पिछले दिनों ही लाहौर उच्च्हा न्यायालय ने एक ईसाई मैकेनिक को ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सजा दी है। एक नहीं, पाकिस्तान में आएदिन ऐसे मामले दर्ज होते हैं और उनमें पीड़ित पक्ष की सफाई सुनी ही नहीं जाती या सुनी जाती है तो उसे संज्ञान में नहीं लिया जाता। ऐसे मामलों में इधर काफी बढ़ोतरी देखी गई है।
इतना ही नहीं एक क्रिश्चियन संस्था ‘नेशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस’ ने 1987 से 2018 तक के पाकिस्तान में दर्ज ईशनिंदा मामलों को इकट्ठा किया है। ये डाटा बताता है कि 1987 से 2018 तक, पाकिस्तान में 776 सुन्नी मुसलमानों, 505 अहमदिया मुसलमानों, 229 ईसाइयों तथा 30 हिदुओं को ईशनिंदा कानून के तहत आरोपित किया जा चुका है।
पड़ोसी इस्लामी देश में ईशनिंदा कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले के लिए सजाए मौत देने का चलन ज्यादा देखने में आया है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी सरकार के सलाहकारों की समिति की रिपोर्ट भी बताती है कि संसार के किसी भी अन्य देश की तुलना में पाकिस्तान मे ईशनिंदा कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग होता है।
ये ईशनिंदा कानून अंग्रेजों ने 1860 में बनाया था। इसका मकसद तो था मजहबी झगड़ों को रोकना, लेकिन भारत से टूटकर अलग होने के बाद पाकिस्तान में ये कानून बनाए रखा गया और बनाए ही नहीं रखा गया, इसके तहत लगभग रोजाना ही मामले दर्ज किए जाते रहे। इनमें से अधिकांश तो बस आपसी रंजिश के चलते दर्ज कराए झूठे मामले निकलते हैं।
सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ईशनिंदा कानून में आरोप लगने पर न सिर्फ आरोपी, बल्कि उसके साथ ही परिवारों के लिए भी खतरा पैदा हो होता है। ईशनिंदा का आरोप लगने के बाद आरोपित लोगों को जान से मारने की कथित धमकियां दी जाती हैं।
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