सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, कर्ज में डूबे राज्यों में मुफ्त योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं ?
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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, कर्ज में डूबे राज्यों में मुफ्त योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं ?

याचिका वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल मतदाताओं को गलत तरीके से अपने पक्ष में लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं करते हैं।

by WEB DESK
Jul 26, 2022, 06:45 pm IST
in भारत
सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने वाली घोषणाएं करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म करने की मांग पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह वित्त आयोग से पता लगाए कि पहले से कर्ज में डूबे राज्य में मुफ्त की योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं। मामले की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी।

कोर्ट ने 25 जनवरी को केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था। याचिका वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल मतदाताओं को गलत तरीके से अपने पक्ष में लुभाने के लिए मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं करती हैं। ऐसा करना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए एक बाधा है। ऐसा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 171बी और 171सी के तहत अपराध है।

याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट निर्वाचन आयोग को दिशानिर्देश जारी करे कि वो राजनीतिक दलों के लिए एक अतिरिक्त शर्त जोड़े कि वो मुफ्त में उपहार देने की घोषणाएं नहीं करेंगी। याचिका में कहा गया है कि आजकल एक राजनीतिक फैशन बन गया है कि राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में मुफ्त बिजली की घोषणा करते हैं। ये घोषणाएं तब भी की जाती हैं जब सरकार लोगों को 16 घंटे की बिजली भी देने में सक्षम नहीं होते हैं। याचिका में कहा गया है कि मुफ्त की घोषणाओं का लोगों के रोजगार, विकास या कृषि में सुधार से कोई लेना-देना नहीं होता है लेकिन मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसी जादुई घोषणाएं की जाती है।

Topics: सुप्रीम कोर्टकर्ज में डूबे राज्यमुफ्त योजनाFree schemeStates Finance CommissionSupreme Court
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