‘भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किए जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाले, युद्ध/शान्ति की घोषणा करने वाले होते हैं। वह देश के प्रथम नागरिक हैं।
राष्ट्रपति पद का यह चुनाव कई बातों के लिए याद किया जाएगा। इस बात के लिए कि संयुक्त विपक्ष के पास कोई अपना उम्मीदवार न था। भाजपा में राजनीतिक संन्यास पर मजबूर किए गए यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार के तौर पर उतारना साबित करता है कि विपक्ष के पास अपना कोई चेहरा तक नहीं था। इस बात के लिए भी कि राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ते समय यशवंत सिन्हा ने संविधान की मूल आत्मा, संवैधानिक ढांचे और राजनीतिक मर्यादाओं को तार-तार कर दिया। इतिहास यह भी लिखेगा कि एक वनवासी महिला के देश का प्रथम नागरिक बनने की राह में रोड़ा अटकाने के लिए इस देश की कथित समाजवादी, वामपंथी, कांग्रेसवादी, गांधीवादी पार्टियां एकजुट हो गईं।
संवैधानिक व्यवस्था में राष्ट्रपति पद की परिभाषा पर गौर कीजिए :
‘भारत के राष्ट्रपति, भारत गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष होते हैं। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उनके नाम से किए जाते हैं। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित हैं। वह भारतीय सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च सेनानायक भी हैं। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाले, युद्ध/शान्ति की घोषणा करने वाले होते हैं। वह देश के प्रथम नागरिक हैं।
भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। सिद्धान्तत: राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद के द्वारा उपयोग किए जाते हैं।’
यह संविधान में दी गई व्यवस्था है। वही संविधान जिसके कभी खतरे में होने की, जिसकी रक्षा के लिए लड़ने का दम विपक्ष भरता है। वही बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर का संविधान, जिन बाबासाहेब के नाम पर विपक्ष की ये तमाम पार्टियां कसमें खाती हैं, तस्वीरें लगाती हैं। संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक राष्ट्रपति की कोई स्वेच्छा नहीं होती। कतिपय अपवादों को छोड़ दें, तो उसके कोई स्वतंत्र अधिकार या शक्तियां नहीं हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल की इच्छा ही राष्ट्रपति की इच्छा है। ऐसा इसलिए कि केंद्रीय मंत्रिमंडल लोकतंत्र में लोक की बहुमत आकांक्षा का प्रतिनिधि है।
विपक्ष का इरादा
लेकिन विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा चुनाव में खुले-आम कहते रहे कि वह नागरिकता संशोधन कानून लागू नहीं होने देंगे। सीएए को लेकर मौजूदा स्थिति यह है कि संसद के दोनों सदनों से पास होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून की शक्ल ले चुका है। इसे लागू करने के नियम-नियमावली तय होनी है। विपक्ष, जिसमें लोकतंत्र के स्वयंभू रक्षक सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, मुलायम सिंह यादव के बेटे, लालू प्रसाद यादव के बेटे, वाईएसआर, केटीआर और वामपंथी दल शामिल थे, किसी ने नहीं पूछा कि संवैधानिक दायरे में तो कोई ऐसा प्रावधान ही नहीं है कि राष्ट्रपति बनकर यशवंत सिन्हा ऐसा कर पाएं।
संवैधानिक दायरे में रहते हुए कोई राष्ट्रपति ऐसा कैसे कर सकता है?
सिन्हा अपने प्रचार के लिए जम्मू-कश्मीर भी गए। एएनआई के मुताबिक- उन्होंने कहा कि अगर मैं चुना गया मेरी प्राथमिकताओं में से एक सरकार से कश्मीर मुद्दे को स्थायी रूप से हल करने और शांति, न्याय, लोकतंत्र, सामान्य स्थिति बहाल करने और जम्मू-कश्मीर के प्रति शत्रुतापूर्ण विकास को समाप्त करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का आग्रह करना होगा। विपक्ष को यह बताना चाहिए कि संवैधानिक दायरे में रहते हुए कोई राष्ट्रपति ऐसा कैसे कर सकता है।
यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के पीछे विपक्ष के क्या इरादे थे, यह राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष तेजस्वी यादव के बयान से साफ हो जाता है। उन्होंने यशवंत सिन्हा का समर्थन करते हुए बड़ा शर्मनाक बयान दिया। कहा- राष्ट्रपति भवन में हमें कोई मूर्ति तो नहीं चाहिए, हम राष्ट्रपति का चुनाव कर रहे हैं। आपने यशवंत सिन्हा को हमेशा सुना होगा लेकिन सत्ता पक्ष की राष्ट्रपति की उम्मीदवार को हमने कभी नहीं सुना है। वे जब से उम्मीदवार बनी हैं, उन्होंने एक भी प्रेस वार्ता नहीं की है। तेजस्वी पूरे विपक्ष के मन की बात कर रहे थे। उन्हें कैसा राष्ट्रपति चाहिए, वह जो संवैधानिक दायरे से बाहर जाए। जो केंद्रीय मंत्रिमंडल से टकराव को तैयार हो। देश की नीति, व्यवस्था को भंग कर सके क्योंकि यशवंत सिन्हा के इरादे ऐसे ही हैं।
इन बातों को भूल गया विपक्ष
अपने इन इरादों के चलते विपक्ष के ये नेता भूल चुके हैं कि यशवंत सिन्हा ने उन्हें क्या-क्या नहीं कहा। सितंबर 2012 में यशवंत सिन्हा ने कहा था कि सोनिया गांधी घमंडी हैं। करोड़ों रुपये के कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में शर्मिंगी के बजाय वह अपनी पार्टी के सांसदों को जवाबी हमले के लिए कह रही हैं। अब पी. चिदंबरम उनके लिए बैटिंग कर रहे थे, लेकिन सिन्हा का आरोप था कि चिदंबरम विपक्ष के नेताओं के फोन टैप करा रहे थे। तेजस्वी यादव को बोलने वाला राष्ट्रपति चाहिए। वह लालू प्रसाद यादव पर सिन्हा के इन बोल को क्या कहेंगे- ‘लालू जी के बारे में क्या कहना, वह एक चल चुके कारतूस हैं और अपनी विस्फोटक क्षमता खो चुके हैं।’ समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की स्थिति और फजीहत वाली हुई। इन्हीं यशवंत सिन्हा ने मुलायम सिंह यादव को आईएसआई एजेंट बताया था। पिता को आईएसआई एजेंट बताने वाले को अखिलेश यादव का समर्थन मिला।
इतिहास में दर्ज हो गया है यह चुनाव
उदाहरण सैकड़ों हो सकते हैं, इसलिए कि कोई ऐसा नहीं, जिसे यशवंत सिन्हा ने बख्शा हो। अपनी इसी आदत के कारण तो वह भाजपा में अप्रासंगिक हो गए। अब देश ने एक ऐसा चुनाव देखा, जब उनके बेटे जयंत सिन्हा तक ने उनके खिलाफ वोट किया है, लेकिन विपक्ष को, यशवंत सिन्हा को याद रखना होगा कि इतिहास भी किसी को नहीं बख्शता। राष्ट्रपति पद का ये चुनाव जिस तरीके से लड़ा गया, जिन जुमलों के साथ लड़ा गया और जिस रंजिश की राजनीति के साथ लड़ा गया, इतिहास में दर्ज हो गया है।
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