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द्रौपदी मुर्मू ने रचा इतिहास

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति निर्वाचित होने वाली जनजातीय समाज की पहली सदस्य बन गई हैं। उनके निर्वाचन ने देश को सिर्फ 15वां राष्ट्रपति ही नहीं दिया है बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता, समावेशी प्रकृति और समरसता के संदेश को भी स्थापित किया है

by मनोज वर्मा
Jul 26, 2022, 02:45 pm IST
in भारत
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श्रीमती द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति निर्वाचित होने वाली जनजातीय समाज की पहली सदस्य बन गई हैं। उनके निर्वाचन ने देश को सिर्फ 15वां राष्ट्रपति ही नहीं दिया है बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता, समावेशी प्रकृति और समरसता के संदेश को भी स्थापित किया है

स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में जब भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, उसी दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय गणराज्य की जनजातीय समाज से पहली राष्ट्रपति निर्वाचित होने का इतिहास रच दिया है। राष्ट्रीय चुनाव जीतने वाली वे दूसरी महिला हैं। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू ने संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को भारी अंतर से हराते हुए बड़ी जीत हासिल की। द्रौपदी मुर्मू की जीत का जश्न इस बात के लिए भी है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दम पर आगे बढ़ते हुए समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करने वाली एक महिला देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने जा रही है। ऐसी महिला जो जनजातीय समुदाय से हैं और जो देश की महिला शक्ति के लिए प्रेरणा का असीम स्रोत हैं। उनका निर्वाचन न केवल महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि कई अन्य कारणों से भी खास है। एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में, जहां दशकों से वंशवाद और परिवारवाद की राजनीति तथा पूंजीपतियों का बोलबाला रहा हो, वहां द्रौपदी मुर्मू की जीत समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति की भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था में आस्था को और सुदृढ़ करती है। द्रौपदी मुर्मू की राष्ट्रपति चुनाव में जीत सामाजिक समरसता का वह संदेश है जो दुनिया को भारत के लोकतंत्र में सबका साथ और सबका विश्वास से रूबरू करा रही है।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने पर भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हुए कहा कि, आजादी के अमृत महोत्सव में पूर्वी भारत के सुदूर हिस्से से ताल्लुक रखने वाली जनजातीय समुदाय में जन्मी नेता को राष्ट्रपति निर्वाचित कर भारत ने इतिहास रच दिया है। उनकी रिकॉर्ड जीत लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि विधायक, मंत्री और झारखंड की राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल बहुत उत्कृष्ट रहा। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पूरा भरोसा है कि वे एक उत्कृष्ट राष्ट्रपति होंगी जो आगे बढ़कर नेतृत्व करेंगी और भारत की विकास यात्रा को मजबूत करेंगी। द्रौपदी मुर्मू का जीवन, उनका शुरुआती संघर्ष, उनकी सेवा और उनकी उत्कृष्ट सफलता हर भारतीय को प्रेरित करती है। वे उम्मीद की एक किरण के रूप में उभरी हैं, खासकर गरीबों, वंचितों और पिछड़ों के लिए।’’

शिक्षक से राष्ट्रपति तक
असल में द्रौपदी मुर्मू ने ओडिशा के सुदूर जनजातीय इलाके रायरंगपुर में एक शिक्षक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की। जमीनी स्तर से सियासी शुरुआत करते हुए 1997 में उन्होंने निकाय चुनाव लड़ा और रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद बनीं। तीन साल बाद, उन्होंने रायरंगपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक के रूप में वहां से दो बार विजयी हुर्इं। उन्हें 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा 147 विधायकों में से सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इससे पता चलता है कि विधायक के रूप में उनका ट्रैक रेकॉर्ड असाधारण था। उन्होंने मंत्री के रूप में वाणिज्य, परिवहन, मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास जैसे महत्त्वपूर्ण विभागों को संभाला। उनका कार्यकाल विकासोन्मुखी, निष्कलंक और भ्रष्टाचार मुक्त रहा। 2015 में द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में शपथ ली। वे किसी भी राज्य की राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने वाली ओडिशा की पहली जनजातीय महिला नेत्री भी रहीं। राज्यपाल के रूप में उनका झारखंड के इतिहास में छह साल का सबसे लंबा कार्यकाल रहा। उन्होंने राजभवन को जन आकांक्षाओं का जीवंत केंद्र बनाया और राज्य के विकास को आगे बढ़ाने के लिए तत्कालीन सरकार के साथ मिलकर शानदार काम किया। समय-समय पर अपूरणीय व्यक्तिगत त्रासदियों ने उनके जन-सेवा के संकल्प को बाधित करने की चेष्टा की लेकिन दुखों के पहाड़ को झेलते हुए भी उन्होंने सार्वजनिक जीवन में आदर्श के उच्चतम मानदंडों को स्थापित किया। दुख के झंझावातों ने उन्हें और भी अधिक मेहनत करने और दूसरों के जीवन में दुख को कम करने के लिए प्रेरित किया।

टूटा एकाधिकार
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा कहते हैं कि उनकी जीत ‘न्यू इंडिया’ की भावना को समाहित करती है। लोकतांत्रिक राष्ट्र केवल सरकारों और संस्थानों द्वारा नहीं बनाए जाते, बल्कि वे हम सभी देश के नागरिकों द्वारा निर्मित होते हैं। पिछले आठ साल के दौरान यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की सबसे निर्णायक विशेषता रही है। जमीनी स्तर पर लोगों को सशक्त बनाने और दशकों से सत्ता पर काबिज कुछ लोगों के एकाधिकार को तोड़ने का हरसंभव प्रयास किया गया है। द्रौपदी मुर्मू की जीत से समाज में यह भाव जागृत हुआ है कि साधारण पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति भी सभी चुनौतियों को पार कर शीर्ष पदों पर पहुंच सकता है। पहली जनजातीय राष्ट्रपति, पहली जनजातीय महिला राष्ट्रपति और पहली ओडिया राष्ट्रपति के रूप में उनका चुनाव एक तरह से समाज में चली आ रही कई बाधाओं को खत्म करेगा जिन्हें दशकों पहले ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए था। सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा को सदा-सदा के लिए प्रतिष्ठित करने हेतु यह इतिहास का गौरवशाली क्षण है, क्योंकि यह ‘जनता के राष्ट्रपति’ का चुनाव था। द्रौपदी मुर्मू ऐसी पहली नेता बन गईं जो पहले पार्षद रहीं और अब राष्ट्रपति।

राजनीतिक संदेश
हर चुनाव के राजनीतिक, सामाजिक संदेश होते हैं, मायने होते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की जीत ने सामाजिक समरसता और महिला सशक्तिकरण का तो संदेश दिया ही है, पर राष्ट्रपति चुनाव नतीजों का जो राजनीतिक संदेश है, उसने भाजपा विरोधी, मोदी विरोधी राजनीति को चित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और एनडीए की राष्ट्रपति चुनाव में रणनीति, जनजातीय द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी कांग्रेस सहित संयुक्त विपक्ष की राजनीति पर भारी पड़ गई। विपक्षी दलों में द्रौपदी मुर्मू के नाम पर सेंध लग गई। हालांकि द्रौपदी मुर्मू की जीत पहले से ही निश्चित लग रही थी पर बीजू जनता दल (बीजद), शिवसेना, झारखंड मुक्ति मोर्चा, वाईएसआर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) जैसे विपक्षी दलों के समर्थन से उनका पक्ष और मजबूत हो गया। वैसे राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन, भाजपा के चुनाव प्रबंधन, रणनीतिकारों की रणनीति भी संयुक्त विपक्ष पर भारी पडी।

बात मुद्दों की हो या विचारधारा की, भाजपा की रणनीति के सामने विपक्षी रणनीति बिखर गई और द्रौपदी मुर्मू भारी मतों के अंतर से राष्ट्रपति का चुनाव जीत गर्इं। राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को कुल 540 सांसदों ने वोट दिया। वहीं विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को 208 सांसदों का वोट मिला। विपक्ष के करीब 17 सांसदों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और द्रौपदी मुर्मू को चुना। वहीं 13 राज्यों में विरोधी दलों के लगभग 113 विधायकों ने भी अंतरात्मा की आवाज सुनकर द्रौपदी मुर्मू को चुना। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को सभी राज्यों में वोट मिला, लेकिन विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम में एक भी वोट नहीं मिला। कुछ और आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को सबसे ज्यादा वोट यूपी और महाराष्ट्र में मिले हैं और सबसे कम वोट पंजाब और दिल्ली में।

राजनीतिक समीकरण
भाजपा ने जनजातीय समाज की महिला को अपना राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे। इसका राजनैतिक असर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात और ओडिशा जैसे जनजातीय बहुल राज्यों में देखने को मिल सकता है। भाजपा अपने राजनीतिक फैसलों से न केवल सामाजिक स्तर पर अपना विस्तार कर रही है बल्कि शहरी पार्टी वाली छवि से भी खुद को बाहर निकाल कर समाज के उन वर्गों को साथ लेकर चल रही है जो वंचित रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद तक पहुंचाकर अनुसूचित जनजाति समाज का विश्वास हासिल करने की कोशिश की है। वैसे 2017 का राष्ट्रपति चुनाव भी एक उदाहरण है। तब अनुसूचित जाति समाज से आने वाले रामनाथ कोविंद को भाजपा ने राष्ट्रपति बनवाया था। इसके बाद अनुसूचित जाति के मतदाताओं का भाजपा पर भरोसा बढ़ा। 2014 के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की। हाल ही में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के आंकड़े भी इसके गवाह हैं।

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति निर्वाचित होने का जश्न मनाती जनजातीय युवतियां

भारत में महिलाओं की आबादी पुरुषों के बराबर है। द्रौपदी मुर्मू की जीत से महिलाओं में भी सकारात्मक संदेश जाएगा। अगले दो साल में 18 राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें चार बड़े राज्य ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं। वहीं, पांच राज्य ऐसे हैं जहां अनुसूचित जाति और जनजातीय मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। इनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र शामिल हैं। इन सभी राज्यों की 350 से ज्यादा सीटों पर मुर्मू फैक्टर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। वहीं 2024 में ही लोकसभा चुनाव भी है। आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में 47 लोकसभा और 487 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। हालांकि, अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं का प्रभाव इनसे कहीं ज्यादा सीटों पर है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में 31 पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनावों में जरूर भाजपा को जनजातीय इलाकों में हार का सामना करना पड़ा था, खासतौर पर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और राजस्थान में। ऐसे में अब मुर्मू के फैक्टर से भाजपा इन इलाकों में जीत हासिल करने की कोशिश करेगी।

जनजातीय समाज के लिए अवसर
वैसे जनजातीय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग अभी भी विकास में बहुत पिछड़ा हुआ है। ऐसे समय में राष्ट्रपति पद पर जनजातीय समुदाय की महिला के होने का मात्र प्रतीकात्मक महत्व नहीं होगा बल्कि यह जनजातीय समाज के सर्वांगीण और वास्तविक विकास का भी स्वर्णिम अवसर बनेगा। इससे नक्सलवाद और कन्वर्जन जैसी समस्याओं पर भी अंकुश लगेगा। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार रहे यशवंत सिन्हा ने द्रौपदी मुर्मू को जीत पर बधाई देते हुए कहा, ‘मुझे उम्मीद है और वास्तव में हर भारतीय को उम्मीद है कि देश के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर वे बिना किसी डर और पक्षपात के संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करेंगी।’ जाहिर तौर पर राष्ट्रपति चुनाव में विजेता बनकर उभरी ‘‘ओडिशा की बेटी’’ द्रौपदी मुर्मू की जीत पर, जनजातीय संगीत पर भारतवासी थिरक रहे हैं और द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है।
(लेखक संसद टीवी में वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Topics: द्रौपदी मुर्मूराष्ट्रपति निर्वाचितDraupadi Murmu elected Presidentजनजातीय समाज की महिलाश्रीमती द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति निर्वाचित
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