क्या राजनीति में अपमान का बदला ऐसे भी लिया जाता है। 80 साल की मार्गरेट अल्वा…चार बार राज्यसभा सदस्य रहीं, चार राज्यों की राज्यपाल रहीं, लोकसभा सदस्य रहीं, मंत्री रहीं। अब कांग्रेस ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की हारी हुई लड़ाई में झोंक दिया है। लोकतंत्र में चुनाव लड़ना अधिकार है, स्वाभाविक है, लेकिन ये देश जिस सोनिया गांधी को जानता है, वह किसी बात को भूलती नहीं हैं तो वह शायद ये भी नहीं भूली होंगी कि इन्हीं अल्वा ने उन पर पार्टी में तानाशाही का आरोप लगाया था। अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के दलाल क्रिश्चियन मिशेल के परिवार से नजदीकी का आरोप लगाया था।
अगर वह नहीं भूलीं और फिर भी अल्वा कांग्रेस की प्रत्याशी हैं, तो दो ही बातें हो सकती हैं। एक तो यह कि कांग्रेस के पास दमदार चेहरे नहीं रहे। दूसरी ये कि एक निश्चित हार की लड़ाई में राजनीतिक रिटायरमेंट ले चुकीं अल्वा को उतारना पुराना हिसाब चुकता करना है। एक और एंगल, जिस पर सोशल मीडिया में बहुत ज्यादा चर्चा है, वह मार्गरेट का कट्टरपंथी ईसाई होना भी है। लोग कह रहे हैं कि इस एक गुण के कारण अल्वा के सात खून भी माफ होते रहे हैं।
जरा अतीत पर गौर करें। बात 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव की है। अल्वा के बेटे को कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इस पर वह बहुत नाराज हुईं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बेटे की एकमात्र अयोग्यता यह थी कि वह उनका बेटा था। मार्गरेट ने खुलकर कहा कि विधानसभा चुनाव में टिकट बेचे गए हैं। पार्टी चुनाव हार गई। अल्वा को कांग्रेस महासचिव के पद से बेदखल कर दिया गया। कांग्रेस में इतना बोलने के बाद आमतौर पर किसी नेता का पुनर्वास नहीं होता, लेकिन अल्वा को 2009 में ही माफी और पुरस्कार मिला। उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया गया। अल्वा ने कहा- मेरे पास सोनिया गांधी का सक्षिप्त सा फोन आया। मुझे बताया गया कि मुझे उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया गया है। इसके बाद वह उत्तराखंड समेत चार राज्यों की राज्यपाल रहीं।
राज्यपाल पद पर रहते हुए अल्वा ने अपनी आत्मकथा क्रेज एंड कमिटमेंट लिखी। इसमें उन्होंने कई सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किए। उन्होंने दावा किया कि अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल और उसके पिता वोल्फगेंग मिशेल के साथ सोनिया गांधी के रिश्ते रहे हैं। अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला सोनिया गांधी के रिमोट कंट्रोल से चलने वाली यूपीए सरकार के प्रथम कार्यकाल में हुआ था। यह घोटाला 2013-14 में सामने आया। देश के अति विशिष्ट (वीवीआईपी) लोगों के लिए 12 हेलीकॉप्टर की खरीद का यह सौदा 3600 करोड़ का था, जिसमें दस फीसद यानी 360 करोड़ रुपये की दलाली ली गई। इस घोटाले में बिचौलिये की भूमिका निभाने वाले क्रिश्चियन मिशेल को गिरफ्तार किया गया। 2019 में उसने प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में स्वीकार किया कि वह सोनिया गांधी को जानता है।
क्या अल्वा को उम्मीदवार बनाकर सोनिया उनकी बातों पर मोहर नहीं लगा रहीं
अगस्ता वेस्टलैंड में सीधे-सीधे बिचौलिये से संबंधों का आरोप लगाने वाली अल्वा अब कांग्रेस की ओर से उप राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रही हैं। अपनी आत्मकथा में अल्वा यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने मिशेल के पिता वोल्फगेंग को लपेटते हुए 1980 के टैंक घोटाले का भी उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि संजय गांधी ने तत्कालीन मंत्री सीपीएन सिंह के साथ मिलकर सेकेंड हैंड हथियार भारत को बेचने की कोशिश की। अल्वा का दावा है कि उन्होंने इस डील का विरोध किया था और इसी वजह से सीपीएन सिंह को रक्षा मंत्रालय से हटना पड़ा था।
आरोप राजीव गांधी तक लगाए, क्या कांग्रेस यह भूल रही है
कांग्रेस की उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार ने राजीव गांधी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने लिखा कि शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राजीव गांधी इस फैसले को पलटने के रास्ते तलाश रहे थे। तब अल्वा राजीव सरकार में राज्य मंत्री थीं। अल्वा के मुताबिक उन्होंने राजीव गांधी को सलाह दी कि उन्हें मौलवियों के दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। इस पर राजीव गांधी उन पर चिल्लाए और कहा कि तलाक लो, फिर मेरे पास वापस आओ। मैं तुम्हें बताऊंगा कि कहां जाना है। अल्वा ने लिखा कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि इस मुद्दे पर राजीव गांधी स्टैंड लेंगे, लेकिन वह कट्टरपंथियों के सामने झुक गए।
राजीव गांधी पर लगाए इस आरोप पर भी कांग्रेस को कुछ कहना चाहिए
नरसिम्हाराव और सोनिया गांधी के बीच जो तनाव था, वह जगजाहिर है। आरोप यहां तक लगे कि राव सोनिया गांधी की जासूसी करवाते थे। इस पर अल्वा ने लिखा कि मुझे इस बात की जानकारी नहीं। हो सकता है, इसीलिए उन्होंने मुझे कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। राव और सोनिया के बीच बात तब और बिगड़ गई, जब बोफोर्स केस बंद करने के फैसले के खिलाफ राव सरकार ने अपील में जाने का फैसला किया। अपील का मतलब था कि राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स मामला जिंदा रहे। बकौल अल्वा, तब सोनिया ने उनसे पूछा था कि क्या राव उन्हें जेल भेजना चाहते हैं।
अल्वा को सोनिया ने कैसे माफ कर दिया
अल्वा के गुनाह इतने ही नहीं। कांग्रेस में एक और गुनाह बहुत बड़ा है। नेहरू-गांधी परिवार के अलावा किसी नेता को महान बताना। अल्वा ने अपनी आत्मकथा में यह भी किया। उन्होंने लिखा कि व्यक्तिगत मतभेदों की वजह से सोनिया गांधी ने नरसिम्हा राव के देहांत के बाद उनके शव को अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखने दिया। तोपगाड़ी में सवार राव का शव कांग्रेस मुख्यालय लाया गया, लेकिन यहां उनके शव को अंदर लाने के लिए गेट तक नहीं खोला गया। अल्वा ने लिखा है- राव के साथ मरणोपरांत जो व्यवहार हुआ, वह दुखद है. वह कांग्रेस अध्यक्ष थे और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें यथोचित सम्मान मिलना चाहिए था।
क्या उप राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाना उनकी इस राय की भी स्वीकारोक्ति है
इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में मार्गरेट ने सोनिया गांधी पर कांग्रेस पार्टी को मनमाने ढंग से चलाने का भी आरोप लगाया था। उन्होंने इंटरव्यू में बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनसे अक्सर कहते थे कि वह उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
1942 को कर्नाटक के मंगलौर में जन्मी मार्गरेट अल्वा उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं। कांग्रेस और उसके विपक्षी साथियों की अधिकृत उम्मीदवार। राजनीति में किसी व्यक्ति पर अकेले मोहर नहीं लगती। व्यक्ति और विचार अलग नहीं हो सकते। ऐसे में जबकि मार्गरेट अल्वा ने कभी अपनी किताब में किए दावों या बयानों को वापस नहीं लिया, यह मानना होगा कि कांग्रेस और सोनिया गांधी उनसे सहमत हैं।
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