हाल ही में संपन्न हुई ईद की नमाज देख नैनीताल शहर वासियों ने खुद से ये सवाल पूछा है कि आखिरकार शहर में इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम कहां से आकर बस गए ? नैनीताल शहर में एक दुकान, मकान तो क्या, पुरानी इमारत में एक ईंट लगाना तक मुश्किल है वहां ये लोग कैसे आकर बस गए?
खबर है कि शहर के मध्य में उत्तराखंड हाई कोर्ट से लगी हुई शत्रु संपत्ति पर संदिग्ध मुस्लिमों ने कब्जा कर वहां अपनी आबादी ही बसा ली है। काबिज लोगों की ये संख्या सैकड़ों में नहीं, अब हजारों में पहुंच गई है। इस आबादी ने अब नैनीताल और आसपास, टूरिस्ट बिजनेस पर कब्जा कर लिया है। नैनीताल शहर में जनसंख्या असंतुलन का ये सबसे बड़ा उदाहरण है। खबर है कि कांग्रेस शासन काल में इन अवैध कब्जेदारों को जिला प्रशासन ने हर सुविधा मुहैया करवा कर दी और अब इनके नाम के राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर आईडी सब बन चुके हैं।
नैनीताल में हाई कोर्ट के पास राजा महमूदाबाद (सीतापुर) मोहम्मद अमीर अहमद की संपति थी, जिसमें मेट्रोपोल होटल और पुरानी इमारतों के अलावा खाली जमीन है, ये संपत्ति शत्रु संपत्ति कहलाती है, जो 11375 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली हुई है। साथ ही 22478 वर्ग मीटर जमीन और भी है जिसमें अवैध रूप से मुस्लिमों ने कब्जे कर लिए हैं। राजा महमूदाबाद, आजादी के समय पाकिस्तान चले गए और वहीं बस गए। उनकी ये और अन्य संपति भारत सरकार के गृह मंत्रालय के स्वामित्व में शत्रु संपत्ति 1968 के शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत घोषित है। इससे पहले भी इस संपत्ति पर सरकार का ही हक रहा। केंद्र में कांग्रेस की सरकार के वक्त इस पर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमें लड़े गए और आखिरकार ये गृह मंत्रालय के स्वामित्व में रही। उल्लेखनीय है नैनीताल मेट्रोपोल होटल और उसके पास की शत्रु संपत्ति की कीमत इस वक्त सौ करोड़ से ज्यादा की है। इसके अलावा यूपी की राजधानी लखनऊ में हजरतगंज की दुकानें, सीतापुर और भी कई शहरों में राजा महमूदाबाद की शत्रु संपत्ति घोषित होकर सरकार के कब्जे में है।
मेट्रोपोल होटल के आसपास जो जमीन है वो शत्रु संपत्ति है उस पर सैकड़ों मुस्लिम परिवार आकर बसते चले गए। रामपुर, मुरादाबाद, स्वार, टांडा आदि क्षेत्रों से आए ये मुस्लिम लोगों ने अपनी पूरी बस्ती बना डाली। अब ये आबादी हजारों में है और कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक बन चुकी है, जबकि ये जमीन सरकार की है। गौर करने वाली बात ये है कि नैनीताल जिला कमिश्नरी मुख्यालय भी है और नैनीताल हाई कोर्ट के ठीक बराबर में सरकारी जमीन पर कब्जा करने का खेल कई सालों से चलता रहा। जिला प्रशासन और नगर पालिका ने इन कब्जेदारों को सरकारी सुविधाएं भी प्रदान की। दरअसल कांग्रेस के शासनकाल में वोट की राजनीति की वजह से ये सब एक साजिश के तहत होता रहा क्योंकि इन कब्जेदारों के अपने राजनीतिक आका हैं और इन्हें राजनीतिक नेताओं का खुला संरक्षण मिलता रहा। शत्रु संपत्ति में कौन लोग आकर यहां बसे ? इस बात की आज तक कोई गंभीरता से जांच भी नहीं हुई। सूत्र बताते हैं कि इनमें रोहिंग्या हैं और बांग्लादेशी भी हैं।
इस शत्रु संपत्ति पर अवैध कब्जों की वजह से नैनीताल शहर का जनसंख्या असंतुलन हुआ है। पिछले 15 साल में नैनीताल की मुस्लिम आबादी में चारगुना की वृद्धि हुई है। पिछले दिनों खुफिया विभाग की एक रिपोर्ट भी आई थी कि नैनीताल के पर्यटन कारोबार में रोहिंग्यों की घुसपैठ हो गई है। बोट चालक, मांस, सब्जी, गाइड, होटल में काम करने, टैक्सी व्यवसाय आदि में इनका कब्जा हो चुका है। इनमें अधिकांश शत्रु संपत्ति पर अवैध रूप से काबिज हैं। एक समय था कि नैनीताल की मस्जिद में स्थानीय पुराने लोग, नमाज अंदर बैठ कर अता कर लेते थे, अब हाल ही में ईद की नमाज फ्लैट, मैदान पर जब पढ़ी गई। अब स्थानीय नागरिकों को पता चल रहा है कि जनसंख्या असंतुलन के बातें क्यों उठने लगी हैं?
नैनीताल में और भी हैं शत्रु संपत्ति
2018 में यूपी सर्किल के शत्रु संपत्ति अभिरक्षा कार्यालय के अधिकारी धर्म पाल सिंह ने यहां आकर, हजरुद्दीन एहमद, केशजहां बेगम और रुखसाना एहमद की तीन संपत्तियों पर अपना बोर्ड लगाया था। नैनीताल में शत्रु संपत्ति पर अवैध कब्जे के बारे में स्थानीय युवक नितिन कार्की ने एक चिट्ठी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को लिखी थ। उन्होंने डीएम नैनीताल से भी ये निवेदन किया है कि वो इस बात की जांच करवाएं कि ये काबिज लोग कौन हैं? और यहां आकर कैसे बस गए? इन्हें सरकारी सुविधाएं कैसे मिलने लगी हैं? सरकार अपनी इस जमीन को खाली क्यों नहीं करवाती? इस पर जिला प्रशासन फिलहाल खामोश है। खबर है कि इस मामले में हाई कोर्ट ने भी संज्ञान में लिया है, जिस पर अभी जिरह होनी है।
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