आर. माधवन की फिल्म ‘रॉकेट्री-द नंबी इफेक्ट’ उस सच से पर्दा उठाती है जो झूठे सेकुलरों और कांग्रेस की सरकारों ने वर्षों से दबाया हुआ था। भारत के एक वरिष्ठ देशभक्त वैज्ञानिक नंबी नारायणन पर झूठे आरोप लगाकर अंतरिक्ष विज्ञान को जिस तरह आघात पहुंचाया गया उससे भारतवासियों को परिचित कराती यह फिल्म देश विदेश में सुर्खियां बटोर रही है
आजादी के बाद हमारे देश में रहीं विदेश परस्त कांग्रेस सरकारों ने कथित विदेशी दबाव में आकर देश की मेधा को किस तरह हतोत्साहित किया था उसकी जीती-जागती मिसाल है हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘रॉकेट्री-द नंबी इफेक्ट’। एक विख्यात भारतीय वैज्ञानिक के साथ उस दौर की सरकार ने क्या व्यवहार किया था, उसे पर्दे पर जीवंत किया गया है दुनियाभर में तारीफ बटोर रही इस फिल्म ने। कह सकते हैं ‘रॉकेट्री’ ने भारतीय सिनेमा में एक नए अध्याय की शुरूआत की है। यह फिल्म भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान में अपना लोहा मनवाने वाले संस्थान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्वनामधन्य वैज्ञानिक नंबी नारायणन की वह मार्मिक गाथा है, जो बरबस ही दर्शकों को झकझोर कर रख देती है।
नंबी पर क्यों लगाए झूठे आरोप!
यह फिल्म नंबी की उपलब्धियों और उनको दी गई यातनाओं के साथ ही, उनके बेकसूर होने की कहानी करीने से सामने रखती है। लेकिन फिल्म इस बारे में मौन है कि नंबी को आखिर क्यों और किसने फंसाया। संभवत: माधवन यह सब 157 मिनट की फिल्म में नहीं बता सकते थे। हो सकता है वह इसकी अगली कड़ी बनाकर यह खुलासा करें कि नंबी पर आखिर झूठे आरोप किसने और क्यों लगाए! नंबी पर लगाए गए आरोप इतने थोथे और कमजोर थे कि शुरुआती जांच में ही वह ताश के पत्तों की तरह भरभराकर ढह गए। जिस समय उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया उस समय केरल में कांग्रेस सरकार थी, के. करुणाकरण मुख्यमंत्री थे। उधर केंद्र में भी कांग्रेस के नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे। जब नंबी का मामला सीबीआई को सौंपा गया तब विपक्षी वामपंथियों ने उसका विरोध किया था। जाहिर है, वामपंथी नहीं चाहते थे कि नंबी निर्दोष साबित हों।
भारतीय सिनेमा जगत में किसी वैज्ञानिक के जीवन पर बायोपिक बनाने का यह जांबाज बीड़ा उठाया है दर्शकों के चहेते शानदार अभिनेता आर. माधवन ने।
नि:संदेह, ‘रॉकेट्री’ अपने में अनूठी फिल्म कही जा सकती है। जैसा पहले बताया, फिल्म इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन के जीवन की उपब्धियों और त्रासदियों को दिखाती है। यह सही मायने में एक वैज्ञानिक की बायोपिक है; जो बेवजह के फिल्मी मसालों से कोसों दूर है। फिल्म के मुख्य कलाकार माधवन ने नंबी के जीवन का पर्दे पर बखूबी उतारा है। ‘रॉकेट्री’ फिल्म उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं थी। और इस चुनौती को बखूबी पार करने की वजह से माधवन को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिल रही है। मुख्य पात्र निभाने के साथ ही माधवन इस फिल्म के लेखक, सह निर्माता और निर्देशक भी हैं।
इस फिल्म के साथ पहली बार निर्देशन के क्षेत्र में उतरे माधवन के कंधों पर जिम्मेदारियां भी कुछ कम नहीं थीं। एक तो इसरो जैसे संस्थान के वैज्ञानिक पर फिल्म बनाते हुए, एक-एक कदम बहुत संभालकर रखना पड़ा होगा। दूसरे, फिल्म हिन्दी के साथ तमिल और अंग्रेजी अर्थात तीन भाषाओं में एक साथ बनी है। यहां तक कि फिल्म की शूटिंग भी भारत के अलावा रूस और फ्रांस में भी हुई। लेकिन माधवन ने अभिनेता के रूप में शिखर तो छुआ ही है, इस फिल्म के बाद उनकी गिनती देश के होनहार निर्देशकों में होने लगेगी, इसमें संदेह नहीं है।
जैसा कि सामने आया, माधवन ने इस फिल्म को बनाने में करीब 7 साल लगाए। फिल्म की वास्तविक शूटिंग तो 2018 में ही आरंभ हुई थी, लेकिन उससे पहले फिल्म को लिखने और निर्माण संबंधी योजनाओं में भी माधवन ने काफी धैर्य से काम किया था। ‘रॉकेट्री’ देश के सिनेमाघरों में गत एक जुलाई को प्रदर्शित हुई, लेकिन उससे पहले अच्छी बात यह हुई कि 19 मई को इस फिल्म का ‘कान अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह’ में विश्व प्रीमियर हुआ, जहां माधवन के साथ स्वयं नंबी नारायणन भी मौजूद थे और सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी।
व्यथा और पटकथा
फिल्म की कहानी नवंबर 1994 के दौर से शुरू होती है। केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम स्थित नंबी के घर में प्रसन्नता का वातावरण है। वे एक शादी समारोह में जाने की तैयारी में हैं। परंतु तभी परिस्थितियां उलझ जाती हैं। केरल पुलिस मंदिर से नंबी को पकड़ कर पुलिस स्टेशन ले जाती है। उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया जाता है। नंबी और उनका परिवार अवाक् रह जाता है कि यह क्या हो रहा है। उधर दर्शक भी नंबी को तब जान पाते हैं, जब मंगलयान की सफलता के बाद फिल्म स्टार शाहरुख खान, उक्त घटना के 19 साल बाद, इस वैज्ञानिक का साक्षात्कार करने जाते हैं, क्योंकि मंगलयान की तकनीक में नंबी की अहम भूमिका थी। मंगलयान की सफलता में जिस ‘विकास’ इंजन का बड़ा योगदान था उसे इसरो में नंबी और उनकी टीम ने बहुत कम लागत से देश में ही निर्मित किया था। तब साक्षात्कार में सवाल-जवाब के क्रम में कहानी फ्लैशबैक में जाती है। नंबी जवाब देते जाते हैं और दर्शक जानते जाते हैं कि नंबी कौन हैं, उनका अंतरिक्ष विज्ञान में क्या योगदान है। अंतरिक्ष विज्ञान में देश को शिखर पर पहुंचाने का सपना देखने वाले नंबी अपने समय से आगे के वैज्ञानिक थे।
फिल्म में मध्यांतर तक का हिस्सा इन्हीं घटनाक्रमों को दर्शाता है कि नंबी ने देश और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए क्या-क्या किया। फिल्म में दिखाया है कि नंबी इसरो में विक्रम साराभाई और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे वैज्ञानिकों के साथ काम कर रहे हैं। तभी वह प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में फेलोशिप के लिए जाते हैं। वहां प्रोफेसर लुईस क्रोको के मार्गदर्शन में वह मात्र 10 महीने में ‘लिक्विड फ्यूल रॉकेट टेक्नोलॉजी’ में अपना शोध पूरा करके एक नया आयाम रचते हैं।
उनकी इसी प्रतिभा को देखते हुए अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान ‘नासा’ उन्हें अपने यहां मोटे वेतन व उत्तम सुविधाओं का प्रस्ताव देता है। लेकिन नंबी ये सब ठुकराकर कहते हैं, ‘मैं सिर्फ अपने देश के लिए काम करना चाहता हूं’। भारत आकर वह अंतरिक्ष विज्ञान के लिए बहुत कुछ करते हैं। जैसे, वे 52 वैज्ञानिकों की टीम के साथ फ्रांस जाते हैं। रूस से कुछ उपकरण बहुत ही सस्ते में भारत लेकर आते हैं। विक्रम साराभाई के नाम पर वह रॉकेट इंजन का नाम ‘विकास’ रखते हैं। उनकी इस प्रतिभा और कार्य कुशलता के चर्चे चल ही रहे होते हैं कि तभी उनकी जिंदगी में बड़ा तूफान आता है। जिस वैज्ञानिक ने देश के लिए इतना कुछ किया, उसे केरल पुलिस जासूसी और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है।
अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान ‘नासा’ उन्हें अपने यहां मोटे वेतन व उत्तम सुविधाओं का प्रस्ताव देता है। लेकिन नंबी ये सब ठुकराकर कहते हैं, ‘मैं सिर्फ अपने देश के लिए काम करना चाहता हूं’। भारत आकर वह अंतरिक्ष विज्ञान के लिए बहुत कुछ करते हैं। जैसे, वे 52 वैज्ञानिकों की टीम के साथ फ्रांस जाते हैं। रूस से कुछ उपकरण बहुत ही सस्ते में भारत लेकर आते हैं। विक्रम साराभाई के नाम पर वह रॉकेट इंजन का नाम ‘विकास’ रखते हैं। उनकी इस प्रतिभा और कार्य कुशलता के चर्चे चल ही रहे होते हैं कि तभी उनकी जिंदगी में बड़ा तूफान आता है। जिस वैज्ञानिक ने देश के लिए इतना कुछ किया, उसे केरल पुलिस जासूसी और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है।
केरल पुलिस का गुप्तचर विभाग उन पर आरोप लगाता है कि उन्होंने अंतरिक्ष तकनीक के प्रामाणिक दस्तावेज पाकिस्तान को बेचे। यह 1994 की बात है। यह समाचार आग की तरह फैलता है। इसी के साथ नंबी के जीवन का वह काला अध्याय शुरू होता है, जिसे देख दर्शक बेचैन हो उठते हैं। देश के लिए इतना कुछ करने वाले नंबी को देशद्रोह के आरोप के चलते, इतनी बर्बरता से सताया जाता है कि देखने वाले की रूह कांप उठती है।
इस आरोप के चलते वह करीब 50 दिन तक जेल में रहे। लेकिन उनके खिलाफ आरोप साबित न होने पर उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया। मामला सीबीआई को भेजा गया तो 1996 में सीबीआई ने भी उन्हें क्लीन चिट दे दी। यहां तक 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी नंबी के पक्ष में निर्णय देते हुए उन्हें निर्दोष करार दिया। इतना ही नहीं, अदालत के आदेशों के बाद केरल सरकार ने उन्हें उनके इस अपमान और प्रताड़ना के लिए अलग—अलग किश्तों में मुआवजा राशि भी दी। उधर केन्द्र की मोदी सरकार ने नंबी के अनुपम योगदान को देखते हुए उन्हें 2019 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया।
क्या यह विदेशी षड्यंत्र था!
एक मान्यता यह भी है कि नंबी को फंसाने में तथाकथित विदेशी ताकतों की भूमिका थी। नंबी नारायणन ने अदालत में यह आशंका खुद जाहिर की थी। दरअसल, नंबी जिस तकनीक पर काम कर रहे थे उससे भारत का अंतरिक्ष विज्ञान में भविष्य और उज्ज्वल होने जा रहा था। जिस लागत पर नंबी इस तकनीक को विकसित कर रहे थे उससे ‘नासा’ के पिछड़ने के प्रबल आसार थे। नंबी निर्दोष साबित होकर इसरो में वापस तो आ गए, लेकिन इसरो में उनको पहले जैसी बड़ी भूमिका फिर से नहीं दी गयी। इससे नंबी नारायण जैसे प्रख्यात वैज्ञानिक का शानदार करियर तो चौपट हुआ ही, भारत के कुछ अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भी विलंब हुआ।
इधर अब जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई है तो दिल्ली, लखनऊ सहित कुछ सिनेमाघरों पर इसके पोस्टर तक नहीं लगाए गए। यहां तक कि कोलकाता के एक सिनेमा में इसका प्रदर्शन भी रोक दिया गया। लगता है आज के सेकुलर तत्व नहीं चाहते कि नंबी की दास्तान सामने आए। उन्हें चिढ़ है कि नंबी को हिन्दू धर्म का अनुयायी इतनी प्रखरता से क्यों दिखाया गया है? नंबी को तनाव के पलों में ईश्वर की आराधना करते क्यों दिखाया गया है?
‘रॉकेट्री’ फिल्म की गुणवत्ता की बात करें तो अनेक मायनों में यह एक अविस्मरणीय फिल्म है। माधवन ने नंबी के 27 साल से 75 साल तक की आयु के किरदार को बखूबी निभाया है। यहां तक कि जब फिल्म के अंतिम हिस्से में स्वयं नंबी पर्दे पर आते हैं तो माधवन बने नंबी और असली नंबी जुड़वां भाई से दिखते हैं। माधवन को अपनी इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार या फिल्म फेयर सरीखे पुरस्कार भी मिल सकते हैं। फिल्म के अन्य प्रमुख किरदारों में सिमरन, रजित कपूर सहित लगभग सभी का अभिनय अच्छा है। शाहरुख खान फिल्म में भले ही कुछेक दृश्यों में हैं, लेकिन इस फिल्म के कारण 4 साल बाद शाहरुख को रुपहला पर्दा नसीब हुआ है।
असल में माधवन ने अपने निर्देशन में नंबी को ‘थर्ड डिग्री टॉर्चर’ दिए जाने और उनकी पत्नी मीना के कमरे में कैद रहकर मानसिक तनाव झेलने के दृश्य सहित कुछ दृश्य इतने प्रभावशाली बना दिये हैं कि देखकर आंखें नम हो जाती हैं। इसके अलावा माधवन ने अपनी इस फिल्म से एक बड़ी बात भी सिद्द कर दी है कि देश प्रेम पर केन्द्रित फिल्में स्वतंत्रता सेनानियों, सैनिकों के बलिदानों या खिलाड़ियों के जीवन पर ही नहीं, बल्कि एक राष्ट्र समर्पित वैज्ञानिक पर भी बनाई जा सकती हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक हैं)
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