विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने संकल्प मार्च में जिहादी अराजकता और हिन्दू समाज पर आए दिन हो रहे हमलों पर अराजक तत्वों को कड़ा संदेश दिया। उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर पाञ्चजन्य के साथ विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं, बातचीत के संपादित अंश:-
संकल्प मार्च का उद्देश्य क्या था?
पिछले कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं हुईं, जो संविधान और कानून-सम्मत नहीं है। कुछ लोगों को नूपुर शर्मा के बयानों से आपत्ति हुई। प्राथमिकी लिखाई जा चुकी है। पुलिस जांच कर रही है। भारत की कानूनी प्रक्रिया में मजिस्ट्रेट के पास केस चलेगा। न्यायालय तय करेगा कि दोषी है कि नहीं। पर ऐसा नहीं माना गया। 100 से ज्यादा स्थानों पर जुमे की नमाज के बाद लोग निकले और मंच से कहा गया कि ‘जो आंख उठाएगा उसकी आंख फोड़ देंगे’। ‘जो जुबान निकालेगा उसकी जुबान काट देंगे’। ‘जो सिर उठेगा, उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया जाएगा’। ये कानून तो शरिया का है। 1400 साल पुराना है, बर्बर है। यह भारत में लागू नहीं होता। तो क्या कोई भीड़ तय करेगी कि नूपुर शर्मा दोषी है? क्या भीड़ तय करेगी कि उसको क्या दंड मिलना चाहिए? नूपुर के समर्थन में कन्हैया के परिवार ने एक फेसबुक पोस्ट डाली। एफआईआर हुई। पुलिस ने उससे माफी मंगवाई गई। पोस्ट को हटा लिया गया। लिखित समझौते में तय हुआ कि अब यह प्रकरण समाप्त हो गया। उसके बाद हत्या क्यों हुई? कोल्हे की हत्या क्यों हुई? अगर कोई हमसे असहमत है तो क्या हत्या करेंगे? ये सारी प्रवृत्तियां कानून और संविधान के राज को चुनौती दे रही हैं। भारत की अखंडता और एकता को तोड़ने के षड्यंत्र हो रहे हैं। इसलिए हमने भारत की जनता का संकल्प घोषित किया है कि भारत एक रहेगा। अखंड रहेगा। देश संविधान और कानून से चलेगा। इस सब शक्तियों को परास्त करके हम विकास और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे और भारत को विश्व गुरु बनाकर विश्व को शांति और प्रसन्नता का मार्ग दिखाएंगे।
भारत की कानूनी प्रक्रिया में मजिस्ट्रेट के पास केस चलेगा। न्यायालय तय करेगा कि दोषी है कि नहीं। पर ऐसा नहीं माना गया। 100 से ज्यादा स्थानों पर जुमे की नमाज के बाद लोग निकले और मंच से कहा गया कि ‘जो आंख उठाएगा उसकी आंख फोड़ देंगे’। ‘जो जुबान निकालेगा उसकी जुबान काट देंगे’। ‘जो सिर उठेगा, उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया जाएगा’। ये कानून तो शरिया का है।
नूपुर शर्मा के विषय पर सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की ओर से जो टिप्पणी की गई, क्या उससे जिहादियों के हौसले बुलंद हुए हैं?
देखिए, सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह विषय नहीं था कि नूपुर दोषी है कि नहीं, क्योंकि ये मामला मजिस्ट्रेट तय करेगा। प्रक्रिया पूरी करके तय करेगा। पहले गवाहियां होंगी। फिर बहस होगी। तब तय होगा। सर्वोच्च न्यायालय के जज यह घोषणा करते हैं तो यह लक्ष्मण रेखा के बाहर है। पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां मौखिक हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों ने हमें बताया है कि मौखिक टिप्पणियां सर्वोच्च न्यायालय का आदेश नहीं होतीं। मैं समझता हूं कि न्यायपालिका इस तरह की टिप्पणियों से बचती तो अच्छा रहता। दूसरी बात, पत्रकार अर्नब गोस्वामी के मुकदमे में न्यायालय ने कहा था कि एक मामले में एक ही एफआईआर हो सकती है। बाकी सारी एफआईआर दिल्ली में स्थानांतरित करें। नूपुर का मामला तो बहुत गंभीर है। उस समर्थन वाली पोस्ट को लेकर दो लोगों की हत्या हो गयी, तो नूपुर को मजबूर किया जाए कि वह बंगाल जाए या असम जाए? अगर अर्नब गोस्वामी के मामले में सभी एफआईआर इकट्ठी करना उचित है तो ऐसा नूपुर के मामले में उचित क्यों नहीं? इसलिए हमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से गहरी निराशा हुई है।
विहिप की ओर से हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं। आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
किसी भी व्यक्ति की सुरक्षा कानून से बढ़कर नहीं है। हमने यह राय दी है कि किसी को धमकी मिलती है तो वह पुलिस में रिपोर्ट लिखवाए और पुलिस को उस पर कार्रवाई करनी चाहिए। अब कहीं पर पुलिस रिपोर्ट नहीं लिखती या पुलिस कार्रवाई नहीं करती तो वह बजरंग दल को बताएगा। हमारे नौजवान उसके साथ थाने जाएंगे और थाने के अधिकारी को बताएंगे कि तुम्हारे लिए ये मजबूरी है कि तुम ये रिपोर्ट दर्ज करोगे। तुम इसको मना नहीं कर सकते। तुम जांच भी करो और रक्षा भी करो। कन्हैया और कोल्हे के मामले में पुलिस के पास विश्वसनीय सूचनाएं थीं कि उनके प्राणों पर संकट है। फिर कार्रवाई क्यों नहीं की? ये सब हो, कानून की एजेंसियां काम करें, इसमें उनकी मदद के लिए बजरंग दल काम करेगा।
नूपुर शर्मा का पक्ष कितना मजबूत है?
मैंने स्पष्ट कहा है कि कोई भीड़ यह निर्णय नहीं कर सकती कि नूपुर शर्मा दोषी है कि नहीं। वैसे मैं भी यह निर्णय नहीं कर सकता कि वह दोषी है कि नहीं। पर मैंने एक वकील के नाते उसकी फाइल पढ़ी है। मेरी समझ है कि उसका पक्ष बहुत मजबूत है। पर निर्णय मेरा नहीं चलेगा, न्यायालय का होगा। हम प्रतीक्षा करेंगे।
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