आज कन्हैयालाल अपनों के बीच नहीं हैं और क्रूर उन्मादियों की नृशंस घृणा के कारण उन्हें मौत को गले लगाना पड़ा। उदयपुर में गुरुवार को भी विशाल प्रदर्शन किया गया। कर्फ्यू के बावजूद करीब 10 हजार लोगों ने प्रदर्शन में भाग लिया। लोगों का आक्रोश कम नहीं हो रहा।
विलाप करतीं मृतक कन्हैयालाल की पत्नी जशोदा व अन्य परिजन
कन्हैयालाल की अन्त्येष्टि के बाद उनके दोनों बेटे यश और तरुण
उदयपुर शहर के मालदास जी की सहरी क्षेत्र में हुई कन्हैयालाल साहू की मजहबी हत्या के बाद बुधवार को इस हुतात्मा का अंतिम संस्कार कर दिया गया। शहर में कर्फ्यू लगा होने के बावजूद अंतिम संस्कार में पांच हजार व्यक्ति शामिल हुए। इस्लाम के सबसे बड़े नारे तकवा, इमान, जिहाद फी सबिअल्लाह की भेंट चढ़ गया कन्हैया। कन्हैयालाल का पूरा परिवार दोनों हत्यारों को फांसी देने की मांग कर रहा है।
उदयपुर के गोर्वधन विलास क्षेत्र में रहने वाले कन्हैयालाल के घर में श्मशानी शांति है। किसी को भी अपने घर में प्रवेश करता देख महिलाएं रुदन करने लगती हैं। परिवार के साथ सारा मोहल्ला ही नहीं, पूरा शहर कन्हैया के जाने के गम में डूबा है। परिवार के सदस्यों की सूनी निगाहें जब कन्हैयालाल के सूने कमरे की ओर जाती हैं तो परिजन विकल होकर बिलखने लगते हैं। कमरे में लगी कन्हैया की तस्वीर और स्मृतियां उसकी पत्नी और बच्चों के लिए अंतिम दृष्टि बन गई हैं। एक छविचित्र में तो कन्हैया अपने बेटों को गले लगाए हुए हैं लेकिन वह अब कहां है।
मुस्लिमों से मिलकर रहते थे कन्हैया
घर पर शोक जताने आई महिलाओं के मध्य कन्हैयालाल की पत्नी जशोदा शोकसंतप्त हो निढाल-सी बैठी हैं। रो-रो कर जशोदा के आंसू सूख गए हैं लेकिन हृदय जब कराहता है तो सूखी आंखों से रक्त बहता है। हम पास पहुंचे तो सांत्वना क्या देते, लेकिन चर्चा तो मन को शांत करती है, इसलिए बात आरम्भ की। इस पर वे कराहट के साथ बोलीं कि वह तो अपने बेटों को बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। अब यह स्वप्न कैसे पूरा होगा। अब मैं कहां जाऊं, किस सड़क पर खड़े होकर अपने परिवार का पोषण करूं और पति के सपनों को पूरा करूं।
इसके बाद जशोदा कुछ देर चुप हो जाती हैं। थोड़ी स्मृतियां जोड़ कर बोलती हैं, वे कुछ नहीं बताते थे किन्तु चिंता में थे। कुछ समय पहले अस्वस्थ हुए थे, किन्तु कुछ नहीं बताया। तीन साल पहले घर लिया था, गृह ऋण की किस्तें चल रही है। सिलाई का काम भी मंदा ही था, अब ये सब कौन देखेगा।
धमकी की घटनाओं का स्मरण करते हुए वे बताती हैं, सामने वाला कोई भी हो, वह सब को भैया-भैया कहते थे। मुस्लिमों से भी दोस्ती बढ़िया रखते थे, उन्हें भाई ही समझते थे। हमारे त्यौहार पर उनको मिठाई खिलाते थे और उनके त्यौहारों की मिठाई हमारे यहां आती थी। हमारी दुकान पर मुस्लिम कारीगर काम करते थे।
जशोदा ने रोते हुए बताया कि कन्हैयालाल कहते थे कि अगर इनसे दोस्ती बनाकर रखेंगे तो ये कुछ नहीं करेंगे। सिलाई में सबका काम करना पड़ता है। यहां भेदभाव नहीं रख सकते हैं।
सदमे में बेटे
वहीं कन्हैयालाल के बेटे यश और वरुण भी सदमे में दिखाई दिए। यशोदा देवी से बातचीत के बाद जब हम बैठक में यश और वरुण के निकट बैठे तो उनका दु:ख समझने में अक्षम रहे। दोनों का कहना था कि पापा ही हमारा संसार थे। उनके चले जाने से हमारा सब कुछ चला गया है। वह सरल हृदय व्यक्ति थे किन्तु इसी भोलेपन में नृशंस हत्यारों की घृणा के शिकार हो गए।
वायरल पोस्ट के बारे में पूछने पर यश ने कहा कि पापा इसके बारे में कुछ नहीं जानते थे और ना ही परिवार को इसकी जानकारी थी। 17 साल किराये के मकान में रहने के बाद 3 साल पहले ही पापा ने मकान लिया था। बेटा यश कॉमर्स कॉलेज में तीसरे वर्ष का छात्र है, वहीं तरुण बी.एन. विश्वविद्यालय में फार्मेसी द्वितीय वर्ष का छात्र है।
बच्चों की सुरक्षा की चिंता
कन्हैया की बड़ी बहन नीमा देवी को रुदन करते देखने की क्षमता हम में नहीं है। वह रोते हुए थक जाती हैं तो बोलती हैं कि हमें इंसाफ चाहिए। कहती हैं जैसे मेरे भाई को काटा है, वैसे इनको भी काटो। कन्हैया किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करता था। बच्चों को डांटता तक नहीं था। उसके बच्चे भी पिता से ज्यादा प्यार करते थे। सभी से अच्छा व्यवहार था। चाहे कोई मुसलमान हो या हिंदू, सबके कपड़े सिलता था।
नीमा देवी का कहना है कि वे लोग भयाक्रान्त हैं, आगे क्या होगा, पता नहीं उनकी सुरक्षा कैसे की जा सकेगी, सब कुछ भविष्य के गर्भ में है। अभी तो सभी आक्रोशित हैं और साथ खड़े हैं लेकिन समय के साथ आक्रोश शांत होगा और दु:ख भी घटेगा। इसके बाद कन्हैया के बच्चों की सुरक्षा कैसे हो पाएगी। हमारे बच्चों को सुरक्षा चाहिए, ना जाने कब कोई क्या कर दे।
अपने भाई के सामाजिक सरोकार और व्यवहार को याद कर नीमा बताती हैं कि वह सभी के सुख-दु:ख में काम आने वाला व्यक्ति था। उसने 3 वर्ष पूर्व ही शहर से बाहर गोर्वधन विलास क्षेत्र में नया घर बनवाया था। वह बच्चों की आर्थिक सुरक्षा के लिए कुछ और भी निवेश करने का विचार रखता था। अपने बेटे को चिकित्सक बनाना चाहता था। उसके कई स्वप्न थे, आज नियति के क्रूर हाथों अधूरे रह गए है। वह अपनी तीनों बहनों से अत्यंत प्रेम करता था और अपने भानजों को हर कार्य और परिस्थिति में सहयोग करता था।
कुल मिलाकर सच यह है कि आज कन्हैयालाल अपनों के बीच नहीं हैं और क्रूर उन्मादियों की नृशंस घृणा के कारण उन्हें मौत को गले लगाना पड़ा। उदयपुर में गुरुवार को भी विशाल प्रदर्शन किया गया। कर्फ्यू के बावजूद करीब 10 हजार लोगों ने प्रदर्शन में भाग लिया। लोगों का आक्रोश कम नहीं हो रहा। शांत नदी सा जनसैलाब बाढ़ की पूर्व घोषणा करता दिख रहा है। प्रशासन क्या कदम उठाएगा, यह तो पता नहीं परंतु जनमानस ऊपर से तो शांत दिख रहा है, लेकिन अन्दर से उबल रहा है।
कन्हैया के बारे में विगत कुछ दिनों की परिस्थितियों को साझा करते हुए उसकी बहन बताती हैं कि जैसे ही कन्हैया को धमकियां मिलनी शुरू हुईं, उसने दुकान पर जाना बंद कर दिया। आखिर पुलिस के माध्यम से धमकियां देने वालों से बात करने के बाद उसने दुकान खोली। दुकान खोलने के कुछ दिन बाद एक महिला और फिर एक पुरुष दुकान पर आए। दोनों ने ही उसे मारने की धमकी दी और कहा कि तुझे गाड़ देंगे।
इसी बीच कन्हैयालाल की भतीजी रेखा भी वहां पहुंची और उससे भी वार्ता हुई। उसके अनुसार कन्हैया पिछले कुछ दिनों से भयाक्रांत थे। रेखा ने बताया कि दो दिन पहले हमारे यहां रात्रि जागरण था। वहां कन्हैया ने उसे बताया कि मन नहीं हो रहा, अच्छा नहीं लग रहा कुछ भी।
रेखा कहती हैं कि वैसे वे सबसे हंसी-मजाक करते थे, सबसे बात करते थे किन्तु इस बार वे कुछ नहीं बोले। बस खाना खाया और निकल गए। हर बार आते थे तो काफी बात करते थे, इस बार कुछ नहीं बोले। बेहद परेशान लग रहे।
कुल मिलाकर सच यह है कि आज कन्हैयालाल अपनों के बीच नहीं हैं और क्रूर उन्मादियों की नृशंस घृणा के कारण उन्हें मौत को गले लगाना पड़ा। उदयपुर में गुरुवार को भी विशाल प्रदर्शन किया गया। कर्फ्यू के बावजूद करीब 10 हजार लोगों ने प्रदर्शन में भाग लिया। लोगों का आक्रोश कम नहीं हो रहा। शांत नदी सा जनसैलाब बाढ़ की पूर्व घोषणा करता दिख रहा है। प्रशासन क्या कदम उठाएगा, यह तो पता नहीं परंतु जनमानस ऊपर से तो शांत दिख रहा है, लेकिन अन्दर से उबल रहा है।
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