मोहम्मद साहब ने कभी ऐसा नहीं कहा कि मेरे व्यक्तित्व पर कोई टिप्पणी करे तो तुम उसका गला ही काट दो, मेरे नाम पर तुम किसी औरत को विधवा कर दो, किसी बच्चे को अनाथ कर दो, किसी माता-पिता को उसके बच्चे से दूर कर दो। मोहम्मद साहब नें कभी नहीं कहा कि किसी निर्दोष की हत्या कर दो। फिर उनके नाम पर इतनी हिंसा, इतनी बेशर्मी कि इंसानियत शर्मसार हो जाए। उदयपुर की घटना निंदनीय है, बहुत शर्मसार करने वाली है। और बहुत से प्रश्न भी उत्पन्न करती है। ये हत्यारे मुस्लिम समुदाय के वे लोग हैं जो पूरे समाज को, इस्लाम को कलंकित करते हैं। भारत की हजारों वर्षों पुरानी सभ्यता को तोड़ने की कोशिश करते हैं, मैं उन आतंकियों से यह कहता हूं कि तुम्हें पाकिस्तान और तालिबानियों की सभ्यता इतनी पसंद है तो पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते। हमारी पवित्र भूमि को अपने नापाक इरादों से अपवित्र करने की कोशिश मत करो। मोहम्मद साहब के नाम पर यह आतंक जो कुछ तालिबानी मुसलमानों ने फैलाया है, यह हमारे देश की संस्कृति को विचित्र ढंग से दिखाने की कोशिश है। जो हम भारतीय लोग कभी कामयाब नहीं होने देंगे।
नूपुर शर्मा जी ने क्या कहा मैं इस पर चर्चा नहीं करूंगा। बस यही कहूंगा कि उन्होंने आपकी तरह भगवान शिव के नाम पर किसी अब्दुल और रहीम का गला नहीं रेता। भावनाओं में बहकर मोहम्मद साहब के बारे में जो भी कहा, उसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने सजा भी दी, पार्टी से निकाल दिया। हमारे मुस्लिम समुदाय से या दूसरी राजनीतिक पार्टयां ने अपने कार्यकर्ताओं को निकाला, जिन्होंने शिवलिंग को फव्वारा कहा था। अपमान अपमान होता है, वह किसी व्यक्ति का हो, या किसी समुदाय का हो या फिर धार्मिक स्थल का हो। भारत एक स्वतंत्र देश है, यहां सबको स्वतंत्रता है एक-दूसरे की आलोचना करने का। लेकिन कुछ मुसलमान हिन्दू धर्म पर आलोचना करना अपना अधिकार मानते हैं, और इस्लाम पर कोई कह दे तो मुहम्मद रेयाज अंसारी और मुहम्मद गौस जैसे लोग गला रेतने आ जाते हैं। आलोचना सहने की क्षमता न हो तो करनी भी नहीं चाहिए। नूपुर शर्मा जी ने मोहम्मद साहब के बारे में जो भी कहा उसके लिए उन्हें खेद भी है, 5 जून को वह अपने ट्विटर एकाउंट पर लिखती हैं-
मैं पिछले कई दिनों से टीवी डिबेट पर जा रही थी, जहां रोजाना मेरे आराध्य शिवजी का अपमान किया जा रहा था। मेरे सामने यह कहा जा रहा था कि वह शिवलिंग नहीं फव्वारा है, दिल्ली के हर फुटपाथ पर बहुत शिवलिंग पाए जाते हैं। जाओ जाकर पूजा कर लो। मेरे सामने बार-बार इस प्रकार से हमारे महादेव शिवजी के अपमान को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई और मैंने रोष में आकर कुछ चीजें कह दीं। अगर मेरे शब्दों से किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं। मेरी मंशा किसी को कष्ट पहुंचाने की कभी नहीं थी।
मेरा प्रश्न है उन तालिबानी मुस्लिम समुदाय के लोगों से, उन कथित लेफ्ट विंग सेकुलर लोगों से कि आप सब लोगों ने शिव भगवान के बारे में बहुत से अपमानजनक अपशब्द प्रयोग किए थे, क्या आप सबने माफी मांगी, अपने शब्दों के चुनाव पर शर्मिंदगी है? नहीं होगी। क्योंकि आप तो अपना अधिकार मानते हैं दूसरे धर्मों के देवी-देवताओं का अपमान करना, मैं आप को बता दूं आप जिस मार्ग पर चल रहे हैं उसकी आज्ञा आप को आपका मजहब भी नहीं देता। आप मुसलमान हो ही नहीं सकते, आप एक तालिबानी सोच के मालिक हैं और आप इस्लाम की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, क्योंकि इस्लाम और सनातन धर्म की कभी कोई लड़ाई ही नहीं है।
भाजपा और आरएसएस की आलोचना में कुछ मुसलमान इतने व्यस्त हो गए कि इंसानियत की नैतिकता क्या है भूल गए। हिंसा करने के लिए मुहम्मद रेयाज अंसारी और मुहम्मद गौस जैसे दो भेड़ियों को छोड़ दिया। मैं जहां तक इस्लाम को समझ पाया हूं, इस्लाम ने कभी यह शिक्षा नहीं दी कि आप मोहम्मद के नाम पर किसी का गला रेत दें। इस तरह की सोच इस्लाम की नहीं है बल्कि तालिबानी सोच है। ऐसे मुसलमानों को तालिबानी समुदाय में ही चले जाना चाहिए। हिंदुस्तान के इतिहास में हिंदू-मुस्लिम फसाद जितने भी हुए हैं, अधिकतर दंगों में ऐसे ही कुछ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उकसाया है।
मैं सुप्रीम कोर्ट और संविधान की दिल से इज्जत करता हूं। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत आसानी से जिम्मेदार नुपूर शर्मा को ठहरा दिया, तमाम वारदात का। मुझे यह नहीं समझ आता कि नुपूर शर्मा ने जब अपने शब्द वापस ले लिए, सबसे माफी भी मांग ली, फिर नुपूर शर्मा कैसे जिम्मेदार हो गईं। अनेक देशों में इस प्रकार के वारदात होती रहती है, क्या उन सभी देशों में होने वाली वारदात की जिम्मेदार नुपूर शर्मा ही हैं। रेयाज अंसारी और मुहम्मद गौस का टेरिरिज्म से संबंध है। 2014 में मुहम्मद गौस पाकिस्तान में 45 दिन रह कर आया था। इसलिए नुपूर शर्मा का उदयपुर की घटना से कोई लेना-देना नहीं है।
कन्हैयालाल के दोषियों को जितना जल्द हो सके फांसी हो जानी चाहिए, और भारत सरकार को चाहिए कि भारत में जितनी आतंकी सोच या समुदाय हैं उन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। विशेष तौर पर मदरसों के पाठ्यक्रम पर विचार विमार्श करना चाहिए ताकि भारत की जो संस्कृति है वह सदैव कायम रहे। मुसलमानों को यह समझने की आवश्यकता है कि मोहम्मद साहब के लिए अगर आप आपत्तिजनक शब्द बर्दाश्त नहीं कर सकते तो हिन्दू भाई भी भगवान शिव के लिए क्यों अपमानजनक शब्दों को बर्दाश्त करेंगे।
(लेखक ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष हैं, भारत फर्स्ट नेशनल कोर टीम मेंबर)
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