गत जून को केंद्र सरकार ने सेना में भर्ती के लिए ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा की। अधिकतर सैन्य अधिकारी इसका समर्थन कर रहे हैं, तो कई युवाओं के बीच भ्रम पैदा कर रहे हैं। इस कारण 16 जून को बिहार में कुछ युवाओं ने एक रेलगाड़ी में आग लगा दी
हाल ही में घोषित ‘अग्निपथ’ योजना यानी ‘टूर आफ ड्यूटी’ एक अच्छा कदम दिखाई देता है, क्योंकि यह भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से को सैन्य जीवनशैली से परिचित कराने का अवसर देते हुए उन्हें एक बहुआयामी अनुभव प्रदान करेगा। लंबे समय से मांग की जा रही थी कि सभी भारतीयों को परिश्रम और कर्मशील बनने के लिए प्रेरित करने के साथ उनमें राष्ट्रवाद की मजबूत भावना पैदा करने के उद्देश्य से सैन्य सेवा उनके लिए अनिवार्य कर दी जाए। दलील यह थी कि यह राष्ट्रव्यापी अनुभव नागरिकों को अनुशासित करने का साधन बनेगा। वे क्षेत्रीय और सांप्रदायिक संकीर्णता से ऊपर उठेंगे और उनकी शारीरिक क्षमता का भी विकास होगा। यह प्रशिक्षित कार्यबल राष्ट्रीय आपातकाल के समय में देश की सेवा के लिए तैयार और मुस्तैद रहेगा। हालांकि इसका विरोध भी हो रहा है।
इंसान का मन बदलाव का हमेशा विरोध करता है। दिलचस्प बात यह है कि इन बदलावों का विरोध वही लोग करते हैं, जो यथास्थिति का लाभ उठा रहे होते हैं। इस योजना का सबसे ज्यादा विरोध वही लोग कर रहे हैं जिन्होंने ऐसे संगठनों में काम किया है जिनकी मानसिकता सशस्त्र बलों जैसी रही है। उनके अनुसार इस योजना से सशस्त्र बलों की पेशेवर प्रवृत्ति कमजोर पड़ने लगेगी। उन्हें यह भी लगता है कि इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप मिश्रित इकाइयों का निर्माण होगा जिनके परस्पर सामंजस्य में कमी रहेगी जिससे रेजिमेंट का प्रभाव कमजोर पड़ेगा। आलोचना का एक बिन्दु यह भी है कि सैन्य क्षेत्र की सभी इकाइयों में महिलाओं के शामिल होने से उनकी युद्ध क्षमता और कठोरता कम हो जाएगी।
हालांकि, गहराई से विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकला कि इनमें से अधिकतर आशंकाएं गलत हैं। सबसे पहले वीरता पुरस्कार विजेताओं की सूची पर एक सरसरी नजर डालने से साफ दिखता है कि उनमें से अधिकांश ने पांच साल से कम समय के लिए अपनी सेवा दी। इसके अलावा इसमें कोई संदेह नहीं कि बेहतर शैक्षिक योग्यता के साथ आए नौजवानों को मौजूदा प्रशिक्षण अवधि से कम समय में ही प्रशिक्षित किया जा सकता है। जहां तक रेजिमेंट का संबंध है, सेना में मिश्रित इकाइयां मौजूद होती हैं और समय ने साबित किया है कि मौका आने पर उन्होंने ‘वास्तविक’ पलटनों से कमतर प्रदर्शन कभी नहीं किया। पश्चिमी देशों का उदाहरण देखें तो पता चलता है कि महिलाओं के शामिल होने से दक्षता में कोई कमी नहीं आती, बल्कि ज्यादातर मामलों में यह बढ़ती दिखी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अग्निपथ योजना सेना की औसत आयु को कम करेगी।
एक आशंका यह भी है कि सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं को अगर रोजगार के उपयुक्त रास्ते न मिले तो यह ‘राजनीतिक मिलिशिया बना सकती है’। हालांकि, 21-25 वर्ष की आयु के एक युवक के पास पूरे देश को देखने और समझने का मौका मिलने और अनुशासित जीवन जीने के कारण समान पृष्ठभूमि के किसी भी अन्य युवक की तुलना में बेहतर रोजगार योग्यता होगी।
योजना से जुड़ी समस्याएं
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि घोषित योजना के साथ कोई समस्या नहीं है। भारतीय नौकरशाही ने अतीत में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तुत कई शानदार विचारों को बुरी तरह विफल किया है। इसी तरह अग्निपथ योजना, जो मुख्य रूप से युवाओं को सैन्य जीवन-शैली से परिचित कराने और उनके कौशल और रोजगार क्षमता को बढ़ाने की योजना होनी चाहिए थी, उसे लागत-कटौती का रूप दे दिया गया। नतीजा यह हुआ कि एक औसत सेवारत व्यक्ति के अनुभव को कम करने के साथ इसमें कर्मचारियों की संख्या को कम करने की बात भी उभरने लगी। जबकि आदर्श स्थिति यह होती कि अनुभव में जो कमी रहती, उसकी पूर्ति संख्याओं से कर दी जाती। खास बात यह है कि लागत में कटौती करने की कोशिश में योजना का आकर्षण काफी कम हो गया है। इसके अलावा वर्तमान योजना में यह बात चिह्नित है कि अगर अग्निवीर की चिकित्सीय स्थिति, चाहे फौज में सेवा करने के दौरान ही क्यों न हो, हमेशा के लिए खराब होती है तो उसे सेना से निकाल दिया जाएगा। अगर एक अग्निवीर, जो पहले वर्ष में ही दुश्मन या विद्रोही से लड़ते हुए एक अंग या उससे अधिक कुछ खोता है तो उसे केवल कुछ लाख रुपए के बीमा और पुनर्वास का आश्वासन पकड़ा कर सेवा से बाहर कर दिया जाएगा।
‘अग्निपथ योजना’ के लाभ
- इससे युवाओं में राष्ट्रभाव जगेगा। एज्रायल इसका उदाहरण है। वहां दिव्यांगों को छोड़कर सभी युवाओं के लिए कुछ वर्ष सेना में कार्य करना अनिवार्य है। इसका परिणाम भी सबके सामने है। छोटे से देश के सामने बड़ी-बड़ी सेनाएं नहीं टिकती हैं।
- चार साल की सेवा के बाद प्रशिक्षित और अनुशासित युवा समाज में आएगा।
- युवाओं को विशेष प्रमाणपत्र प्रदान किया जाएगा, जिसका लाभ आगामी रोजगार में मिलेगा।
- सेवा निधि के रूप में लगभग 12,00,000 रु. की राशि मिलेगी। इससे अपना कार्य या व्यवसाय प्रारंभ कर सकता है
- 25 प्रतिशत अग्निवीर नियमित सेवा में शामिल होंगे। शेष को अर्द्धसैनिक बलों और असम राइफल्स में भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी।
- अभी तक पांच राज्यों ने पुलिस भर्ती में प्राथमिकता देने की बात कही है।
- अभी सेना में औसत आयु 32-33 वर्ष है, अगले 6-7 वर्ष में यह 25-26 होगी। अनेक युवा सेना में भर्ती होने से रह जाते हैं, उन्हें अवसर मिलेगा।
- सबसे बड़ी बात 18, 19 या 20 वर्ष के युवा को पहला वेतन मिलेगा (21,000 रु.) और अंतिम वर्ष में 23-25 वर्ष की आयु होने पर वेतन (28,000 रु.) होगा और सेना निधि के रूप में 11,71,000 रु. यानी चार वर्ष में कुल 23.5 लाख के लगभग।
इसमें संदेह नहीं कि सैन्य सेवा रोजगार क्षमता बढ़ाएगी। पर स्थापित मानसिकता को बदलने में कुछ समय लगेगा। तब तक केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को नौकरियों में पूर्व अग्निवीरों को कुछ आरक्षण देने की आवश्यकता होगी। साथ ही, उन्हें अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सस्ता ऋण प्रदान करना होगा। सेवा काल पूरा करके आने वाले अग्निवीर पुलिस बलों, विशेष रूप से केंद्रीय पुलिस संगठनों (सीपीओ) के लिए आदर्श भरती होंगे। लेकिन 5वें और 6वें केंद्रीय वेतन आयोगों की पूर्व सैनिकों को सीपीओ में शामिल करने की स्पष्ट सिफारिश के बावजूद, शीर्ष पदों पर नियुक्त नौकरशाहों ने इसे अब तक लागू नहीं किया है। यह आवश्यक है कि सभी सीपीओ में कम से कम 25 प्रतिशत नौकरियां पूर्व अग्निवीरों के लिए आरक्षित हों।
कुछ आशंकाओं के बावजूद कह सकते हैं कि भारत के युवाओं को सैन्य जीवन से रूबरू कराने के लिए मोदी सरकार ने एक शानदार पहल की है। इस पहल को नौकरशाही के मकड़जाल का शिकार होने से बचाना होगा।
(लेखक पूर्व नौसेना अधिकारी और इंडिया फाउंडेशन के निदेशक हैं)
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