बिहार में राजनीति रोज नया करवट बदलती है। 29 जून को AIMIM के चार विधायक शाहनवाज, इजहार, अंजार नाइयनी और सैयद रुकूंदीन राजद में शामिल हो गए। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इन विधायकों को अपनी गाड़ी में लाए और सीधे विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर संबंधित पत्र सौंप दिया।
वास्तव में लंबे समय से AIMIM में टूट की आशंका थी, लेकिन वातावरण और स्थिति नहीं बन पा रही थी। बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM के टिकट पर पहली बार पांच विधायक चुनाव जीते थे। इसके साथ ही बिहार विधानसभा में AIMIM की उपस्थिति भी दर्ज हुई थी। इस कारण बिहार के पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्र में बड़ा राजनीतिक फेरबदल हुआ था।
राजद और AIMIM का आधार वोट एक ही है। राजद मानकर चलता है कि उसके साथ मुसलमान और यादव हैं, वहीं AIMIM मुसलमान मतदाताओं के भरोसे ही राजनीति करती है। इसलिए मुस्लिम—बहुल क्षेत्रों में वह जीत भी जाती है। राजद शुरू से ऐसे दलों को तोड़कर अपना हित साधता रहा है। पूर्व में कभी कांग्रेस पार्टी, तो कभी कम्युनिस्ट पार्टी को राजद ने तोड़ा है।
मुसलमान-यादव समीकरण के बल पर राजद कभी बिहार के मुस्लिम बहुल सीमावर्ती क्षेत्र में मजबूत हैसियत रखता था। बीच के दौर में यह पकड़ कमजोर हुई। गत चुनाव में AIMIM ने राजद को पूर्णिया प्रमंडल में बड़ा झटका दिया था। यहां के चार जिलों की 24 सीटों में राजद के हाथ केवल किशनगंज की ठाकुरगंज सीट ही आ सकी थी।
*फेरबदल के कई मायने हैं*
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस फेरबदल से पूर्णिया प्रमंडल में राजद को संजीवनी मिली है। 80 सीटों के साथ अब बिहार विधानसभा में राजद सबसे बड़ा दल बन गया है। इसने जदयू, विशेषकर नीतीश कुमार के चेहरे पर मुस्कान ला दी है। नीतीश के खुश होने का कारण यह है कि जब विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी के विधायक दल बदलकर भाजपा में शामिल हुए थे, तब जदयू को निराशा हुई थी।
अब अगर बिहार में किसी तरह का राजनीतिक उलटफेर होता है, तो राज्यपाल नियमानुसार राजद को सरकार बनाने का मौका दे सकते हैं, क्योंकि राजद विधानसभा में 80 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी हो गई है। भाजपा 77 विधायकों के साथ दूसरे नंबर पर है। इस प्रकरण के बाद अब नीतीश कुमार को राहत मिली है, क्योंकि नीतीश नहीं चाहते हैं कि एनडीए में सबसे बड़ा दल होने के नाते भाजपा उन पर दबाव बना सके। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि नीतीश चाहते तो इन विधायकों को अपने पाले में ला सकते थे, लेकिन इससे उनका हित नहीं सधता। इसके अलावा अगर सत्ता का समीकरण बदलता है तो राजद और जदयू अपने दम पर सरकार बना सकते हैं। अन्य दलों से समर्थन लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
समाजवादी और साम्यवादी दल कभी नहीं चाहते कि प्रदेश में भाजपा का उभार हो। 29 मई को ही विधानसभा के अंदर विधानसभा अध्यक्ष और संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी के बीच जो शेरों—शायरी का दौर चला, वह काफी कुछ बयां कर रहा था ।
*विधानसभा में दलगत स्थिति*
*महागठबंधन*
राजद 80
कांग्रेस 19
माले 12
भाकपा 02
माकपा 02
*कुल 115*
*राजग*
भाजपा 77
जदयू 45
हम(से) 04
*कुल 126*
अन्य 02
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