उदयपुर में नुपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट करने वाले कन्हैयालाल की जिस वीभत्स तरीके से गला काटकर हत्या कर दी गई, वह हैवानियत की पराकाष्ठा है। इस तरह की बर्बरता सीरिया और अफगानिस्तन में देखने को मिलती रही है। कन्हैया लाल के हत्यारों ने न केवल अपने पैशाचिक कृत्य का वीडियो बनाया, बल्कि एक और वीडियो जारी कर अपनी करतूत को सही ठहराते हुए प्रधानमंत्री को भी धमकी दी। ऐसा काम मजहबी उन्माद से भरा कोई खूंखार आतंकी ही कर सकता है। ये मजहबी उन्मादी सिर तन से जुदा करने को अपना मजहबी कृत्य समझने लगे हैं।
राजस्थान में कानून व्यवस्था की तिलांजलि दी जा चुकी है। मुख्यमंत्री गहलोत कुछ भी होता है तो उसका ठीकरा मोदी जी और अमित शाह पर फोड़ देते हैं, ठीक वैसे ही जैसे उनके पार्टी के युवराज राहुल गांधी। गहलोत यह भूल जाते हैं कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, केन्द्र का नहीं। राज्य में दंगे हो जाते हैं पर प्रदेश सरकार मौन रहती है क्योंकि यही दंगा करने वाला समुदाय तो उनका वोट बैंक है। रामनवमी और हनुमान जयंती पर प्रदेश में धारा 144 लगा दी गई थी। प्रदेश में एक खास मजहब को सरकारी सहयोग और सुरक्षा प्राप्त है। राजस्थान दंगा प्रदेश बन चुका है। 8 अप्रैल 2019 को 19 जुलाई 2021 को झालावाड् में, 2 अप्रैल को करौली में, 2 मई 2022 को जोधपुर में हुये दंगे गहलोत सरकार की नाकामी के उदाहरण हैं।
उदयपुर की घिनौनी घटना यही बता रही है कि सिर तन से जुदा, महज एक नारा भर नहीं है, बल्कि कबीलाई युग वाली एक घृणित मानसिकता भी है। आज के युग में ऐसी बर्बर मानसिकता के लिए कोई भी जगह नहीं हो सकती। सभ्य समाज को खौफजदा करने वाली उदयपुर की घटना के लिए कहीं न कहीं वे सब भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद पर नुपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद सड़कों पर उतरकर सिर तन से जुदा करने के नारे के साथ उत्पात मचाया।
हमें यह समझना होगा कि यह जो हो रहा है दरअसल वह हिन्दुओं को भयभीत करने के लिये किया जा रहा है। दिल्ली सल्तनत और मुगलों के समय भी तो भालों के ऊपर हिन्दुओं, सिक्खों के सिर काट कर सजाये जाते थे। इस दौर में जहां हर आतंकी संगठन खुद के इस्लामी जिहादी होने का दावा करता है, फिर भी हमें रोज यह बात बताई जाती है कि उनका कोई मजहब नहीं होता है।
हिंदुत्व विरोध का वैसे भी कांग्रेस का एक लंबा इतिहास रहा है। कांग्रेस पार्टी ने प्रभु श्री राम के वजूद पर ही सवाल उठाए थे। उसके कर्ता-धर्ताओं ने वक्त-वक्त पर हिंदुत्व को आतंकवाद से जोड़ा। भगवा आतंकवाद’ जैसी फर्जी थ्योरी गढ़ी। कांग्रेस वर्षों तक सत्ता में रहते हुए मुस्लिम तुष्टिकरण करती रही। वर्षों तक हिंदुओं को इस पार्टी के द्वारा दरकिनार किया गया। वर्षों तक हिंदुओं के साथ उनके ही देश में भेदभाव किया गया। वर्षों तक हिंदुओं को उनके ही अधिकारों से वंचित रखा गया। अब वक्त बदल गया है। अब देश में मुस्लिम तुष्टिकरण करने वालों को जनता मुंहतोड़ जवाब देती है। लोकतांत्रिक तरीकों से जनता चुनावों में उनकी जमानत जब्त करवाती है। ऐसे में मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कुख्यात कांग्रेस पार्टी और दूसरे दलों के इस बदलाव से पसीने छूट रहे हैं।
वामपंथी, छद्म बुद्धिजीवी तथाकथित उदारवादी सोच किसी को भी खोखला कर सकती है, चाहे वो कोई भी व्यक्ति हो या फिर संस्थान। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया में ऐसे लोगो की संख्या बहुतायत में है। इन शब्दों के आगे लगे विशेषण इनके अवसरवादी प्रवृति और मानसिक दिवालियापन को दर्शाते हैं। ‘गुस्ताख़-ए-नबी की एक ही सज़ा, सिर तन से जुदा-तन सिर से जुदा’ का नारा नया तो है नहीं। इस्लामी जिहादियों द्वारा ईशनिंदा का आरोप लगा कर सिर कलम करने की घटना भी कोई नई नहीं है। घटना के बाद गर्व से बेख़ौफ़ निर्लज्जे तरीक से इसकी घोषणा करना भी नया नहीं है। फिर ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ का रट्टा लगाते हुए इनके बचाव में सामने आने वाले बुद्धिजिवीयों की करतूतें भी पहली बार नहीं हो रहीं। इनका केस लड़ने का नाम जमीयत जैसा कोई संगठन पहली बार आगे आयेगा।
गिरफ़्तारी होते ही मुहम्मद जुबैर को पत्रकार घोषित करने की जल्दी पर उतरे हर वामपंथी, सुपारीबाज बुद्धिजीवी लिबटार्ड के खूनी पंजों पर कन्हैयालाल का खून लगा है। इनके चेहरे से शराफत का नकाब उतारना जरूरी है।
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