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चीन की चाल, नेपाल को बनाना चाहता है कंगाल! बीआरआई के लीक हुए दस्तावेजों ने खोला गोलमाल

लीक हुए दस्तोवजों को देखने से पता चलता है कि चीन आर्थिक क्षेत्र में अपनी दादागिरी चलाने के लिए नेपाल की अर्थव्यवस्था पर निशाना साथ रहा है

Anurag Punetha by Anurag Punetha
Jun 29, 2022, 05:30 pm IST
in विश्व
नेपाल में चीन की तत्कालीन राजदूत यू होंग और नेपान के तत्कालीन विदेश सचिव शंकर दास बैरागी बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए  (फाइल चित्र)

नेपाल में चीन की तत्कालीन राजदूत यू होंग और नेपान के तत्कालीन विदेश सचिव शंकर दास बैरागी बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए (फाइल चित्र)

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नेपाल और चीन के बीच आज से पांच साल पहले हुए एक समझौते ने चीन की शातिर मंशा की एक बार फिर कलई खोल दी है। इसने एक बार फिर यह पुष्टि की है कि चीन छोटे देशों को अपने पैसे के रौब में लेकर उनको अपने हुक्म पर चलाना चाहता है।

हुआ यूं है कि बीआरआई परियोजना के लिए चीन ने 2017 में नेपाल के साथ जो समझौता किया था उसके मसौदे की एक प्रति लीक हो गई है। इस लीक हुए दस्तोवजों को देखने से पता चलता है कि चीन आर्थिक क्षेत्र में अपनी दादागिरी चलाने के लिए नेपाल की अर्थव्यवस्था पर निशाना साथ रहा है। वह वहां अपनी मुद्रा और खुले व्यापार से जुड़े प्रावधानों को लागू करवाकर उस हिमालयी देश पर अपना दबदबा बनाने का प्रयास कर रहा है। हैरानी की बात है कि पांच साल पहले हुए उक्त समझौते की स्याही सूखकर कड़क हो चुकी है लेकिन आज तक इस पर कोई काम नहीं किया गया है। आधिकारिक तौर पर नेपाल और चीन, दोनों ने इस समझौता पत्र को कभी सबके सामने नहीं रखा है।

अब यह बात छुपी नहीं रही है कि चीन अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के माध्यम से दुनिया के पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका सहित कुछ अफ्रीकी देशों को आर्थिक रूप से अपने अधीन करने की चाल चल रहा है। नेपाल के साथ इस संबंध में हुए समझौते के लीक हिस्से में भी कुछ ऐसा संकेत है।

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इस प्रकरण पर नेपाली मीडिया में खुलकर छापा जा रहा है कि चीन बीआरआई परियोजनाओं के नाम पर नेपाल में अपने पैसे का रौब जमाना चाहता है। जैसा पहले बताया, समझौता होने के पांच साल बाद भी इसके तहत एक ईंट तक नहीं रखी गई है, इससे भी अंदेशा होता है कि क्या चीन वास्तव में इस समझौते को लेकर गंभीर है या ये बस एक दिखावा ही है!

समझौते के लीक हुए अंशों ने नेपाल में हड़कम्प खड़ा कर दिया है। नेपाली मीडिया को हासिल हुई समझौते की प्रति देखते ही देखते चर्चा के केन्द्र में आ गई है। राजनीतिक दल भी अपने—अपने पैंतरों को लेकर विचार—मंथन करने लगे हैं।

नेपाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रचंड के अंतर्गत माओवादियों की अगुआई वाली सरकार थी। तब चीन ने बीआरआई को लेकर जो समझौता किया था उसमें मुक्त व्यापार कनेक्टिविटी की आड़ में नेपाल में अपने आर्थिक दबदबे, शर्तों और निहित स्वार्थ को किसी भी कीमत में पूरा करने की कोशिश की गई थी। साफ है कि बीजिंग न केवल काठमांडू के अर्थतंत्र पर अपना कब्जा करने की फिराक में है, बल्कि उस देश में अपनी मुद्रा को चलन में लाने के लिए भी पूरी आक्रामकता से प्रयास कर रहा है। शायद यही वजह है कि बीजिंग सीमा पर बिना टैक्स चुकाए अपने उत्पाद नेपाली बाजार में पहुंचा रहा है।

हालांकि बीआरआई के कायदे के अंतर्गत पारस्परिक लाभकारी क्षेत्रों पर दोनों के बीच सहयोग को बढ़ाने को लेकर दोनों देशों ने सहमति व्यक्त की है। विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि आखिर क्यों नेपाल की तरफ से भी इस दस्तावेज को आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया! वैसे प्रत्येक नेपाली नागरिक को सूचना के अधिकार के तहत इसके बारे में जानकारी पाने प्राप्त करने का अधिकार है। लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं।

इसमें यह भी बताया गया है कि नेपाल और चीन कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए सड़क, विमानन, बिजली के ग्रिड, सूचना तथा संचार के क्षेत्रों में मिलकर काम करेंगे। इसमें यह शर्त भी है कि जब तक कोई पक्ष वर्तमान समझौते की समाप्ति से पूर्व दूसरे पक्ष को तीन महीने पहले नोटिस जारी कर इसे समाप्त नहीं करेगा, इसका हर तीन साल में अपने आप नवीनीकरण हो जाएगा। 2017 में जब इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे तब यह बताया गया था कि हस्ताक्षर करने की तारीख से ही समझौता प्रभाव में आ जाएगा और यह तीन साल के लिए वैध रहेगा। मगर, जैसा पहले बताया, इस समझौते के तहत अभी तक एक ईंट भी नहीं रखी गई है।

 

Topics: brieconomicslaveryprachandChinaMoUleaknepal
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