स्वामी चिदानंद सरस्वती ने पर्यावरण और पानी बचाने पर बल दिया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक का उपयोग रोकने को भी कहा कि इसके लिए सरकार, समाज और संस्थाएं, तीनों को मिल कर काम करना होगा। स्वामी जी ने कहा कि भारत को भारत की आंखों से देखने का समय आ गया है। भारत की विधियों को अपनाएं, उन्हें ही बढ़ावा दें और देश को आगे ले जाएं।
पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर द्वारा दिल्ली में आयोजित पर्यावरण संवाद के अंतिम सत्र में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत को भारत की आंखों से देखने का समय आ गया है। उन्होंने भारत की विधियों को अपनाने और बढ़ावा देने की अपील की।
स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा कि आज जो विषय सबसे ज्यादा जरूरी है, उसका चिंतन और मंथन हो रहा है। गडकरी जी पानी की बात कर रहे थे कि पानी से गाड़ी चलेगी। पानी ही अगला ईंधन है। पानी के लिए शेयर मार्केट होगी। अभी खरीदेंगे और बीस साल बाद बेचेंगे। हमारे यहां बहुत पहले ही ऋगवेद में इसकी चर्चा है। हम अपने बच्चों को वैज्ञानिक तरीके से पानी के बारे में बताएं। मुझे लगता है कि आने वाले दस साल में यही पानी की बोतल, तीन सौ रुपये तक की होगी। दस साल में भारत में पीने का पानी जितना चाहिए, उससे आधा रह जाएगा। बीस साल में दुनिया में जितना पानी है, उसका आधा रह जाएगा। पानी है तो गंगा है, तो कुंभ है, प्रयाग है। पानी है तो सब कुछ है।
वेदों से लेकर आज तक यही कहा गया है कि पंचतत्व से मिलकर ही यह शरीर बना है। हमारे यहां भगवान में पंचतत्व हैं।
1- भूमि 2- गगन 3- वायु 4- अग्नि 5- नीर
इन पांचों में जो पहले अक्षर का समावेश है, वही भगवान है।
उन्होंने कहा कि समय जल को बचाने का है। मैंने धर्मगुरुओं को जोड़ा कि पानी के महत्व को जानें। स्वामी चिदानंद जी ने इस पर भी चर्चा की कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक आदरणीय श्री मोहन भागवत जी से पर्यावरण पर उनकी चर्चा हुई थी। श्री भागवत जी ने दशहरे पर नागपुर से उद्बोधन में भी पर्यावरण पर चर्चा की। हम सभी को पर्यावरण के बारे में सोचना चाहिए।
बात भारत की हो रही है तो भारत को भारत की आंखों से देखने का समय आ गया है। मैं तो कहूंगा कि जो खोया, उसी का गम नहीं, जो बचा है, वह भी कम नहीं। उन्होंने कहा कि अब सशक्त नेतृत्व है। अब संस्कारी सरकार है। प्रधानमंत्री पूरे देश को दृष्टि दे रहे हैं। विदेश में भारत के संस्कार के छाप छोड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार मैडिसन स्क्वायर में भाषण दिया, वह दृश्य सभी ने देखा। मैंने पहली बार किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष के प्रति इतना सम्मान देखा। इस देश का सौभाग्य है कि एक फकीर इस देश को मिला है।
‘सुखवाद से दूर रहने के लिए संयम का संस्कार होना चाहिए। हमें संघ के विभिन्न संगठनों की सामूहिक सहभागिता के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए कड़ा परिश्रम करना होगा। ‘विकास’ और ‘पर्यावरण’ दोनों आवश्यक हैं, लेकिन ऐसे तंत्र ज्ञान लाने होंगे जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो और जिसमें अक्षय ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जाए। साथ ही, गो-आधारित ऊर्जा प्रणाली को विकसित करना होगा।’
— श्री मोहनराव भागवत
सर संघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, संभाजी नगर, देवगिरी प्रांत बैठक, 14 नवंबर, 2021
समय पाञ्चजन्य के नाद का
आज पांचजन्य को नई दृष्टि से बजने की जरूरत है। आज फिर पांचजन्य को बजना है। पांचजन्य कुरुक्षेत्र में बजा था, वहां महाभारत हुआ। आज फिर पांचजन्य बजेगा। अब महान भारत बनाने की बारी है। महाभारत से महान भारत तक की यात्रा। पांचजन्य वहां भी बजा था। कुरुक्षेत्र में बजा था, लेकिन अब यह हर घर बजेगा। पांचजन्य संस्कारों के संरक्षण का। संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का।
अब प्रश्न है कि इस पर्यावरण संरक्षण के लिए कैसे काम करें। स्वामी जी ने कहा कि दो तरह की योजनाएं हैं – एक, वृहत योजना जिसे सरकार करे। दूसरी, जमीनी योजना जिसे हम लोग यानी सरकार, समाज और संस्थाएं सब मिलकर काम करें। हर आश्रम, हर संस्था को नवाचारी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का बहिष्कार करें। भारत की विधियों का प्रयोग करें। मिलकर संकल्प करें। अपने-अपने जन्मदिन पर पेड़ लगाएं। हमारा निवेदन है कि पांचजन्य एक कार्यक्रम गंगातट पर करे।
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