बाबा योगेंद्र लगभग 50 वर्ष तक पूरी तरह कला जगत को समर्पित रहे। नवोदित कलाकारों को आगे बढ़ाना और उनके लिए कार्यक्रमों का आयोजन करना, यही उनके जीवन का उद्देश्य रह गया था। इसलिए उन्हें कलाकारों का कलाकार कहा जाता है
कला की साधना अत्यन्त कठिन है। वर्षों के अभ्यास एवं परिश्रम से कोई कला सिद्ध होती है; पर कलाकारों को बटोरना उससे भी अधिक कठिन है। ‘संस्कार भारती’ के संस्थापक बाबा योगेंद्र जी ऐसे ही कलाकार थे, जिन्होंने हजारों कला साधकों को एक माला में पिरोने का कठिन काम कर दिखाया।
योगेन्द्र जी के सिर से दो वर्ष की अवस्था में ही मां का साया उठ गया। फिर उन्हें पड़ोस के एक परिवार में बेच दिया गया। इसके पीछे यह मान्यता थी कि इससे बच्चा दीर्घायु होगा। उस पड़ोसी मां ने ही अगले दस साल तक उन्हें पाला।
उनके पिता वकील साहब कांग्रेस और आर्य समाज से जुड़े थे। जब मोहल्ले में संघ की शाखा लगने लगी, तो उन्होंने योगेंद्र को भी वहां जाने के लिए कहा। छात्र जीवन में उनका संपर्क गोरखपुर में संघ के प्रचारक श्री नानाजी देशमुख से हुआ। योगेंद्र जी यद्यपि सायं शाखा में जाते थे; पर नानाजी प्रतिदिन प्रात: उन्हें जगाने आते थे, जिससे वे पढ़ सकें। एक बार तो तेज बुखार की स्थिति में नानाजी उन्हें कंधे पर लादकर डेढ़ किलोमीटर दूर पड़रौना ले गए और उनका इलाज कराया। इसका योगेंद्र जी पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने शिक्षा पूर्ण कर स्वयं को संघ कार्य के लिए ही समर्पित करने का निश्चय कर लिया।
-वासुदेव कामत, अध्यक्ष, संस्कार भारती
योगेंद्र जी ने 1942 में लखनऊ में प्रथम वर्ष ‘संघ शिक्षा वर्ग’ का प्रशिक्षण लिया। 1945 में वे प्रचारक बने और गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूं, सीतापुर आदि स्थानों पर संघ कार्य किया, पर उनके मन में एक सुप्त कलाकार सदा मचलता रहता था। देश-विभाजन के समय उन्होंने एक प्रदर्शिनी बनाई। जिसने भी इसे देखा, वह अपनी आंखें पोेंछने को मजबूर हो गया। फिर तो ऐसी प्रदर्शनियों का सिलसिला चल पड़ा।
संघ नेतृत्व ने योगेंद्र जी की इस प्रतिभा को देखकर 1981 में ‘संस्कार भारती’ नामक संगठन का निर्माण कर उसका कार्यभार उन्हें सौंप दिया। योगेंद्र जी के अथक परिश्रम से कुछ ही वर्ष में यह कलाकारों की अग्रणी संस्था बन गया। अब तो इसकी शाखाएं विश्व के कई देशों में स्थापित हो चुकी हैं।
योगेंद्र जी शुरू से ही बड़े कलाकारों के चक्कर में नहीं पड़े। उन्होंने नए लोगों को मंच दिया और धीरे-धीरे वे ही बड़े कलाकार बन गए। इस प्रकार उन्होंने कलाकारों की नई सेना तैयार की। आज तो बड़े-बड़े स्थापित कलाकार संस्कार भारती के मंच पर आकर स्वयं गौरवान्वित होते हैं। ऐसे हजारों कलाकारों ने ही उन्हें ‘बाबा’ नाम दिया, जो आगे चलकर उनकी पहचान बन गया।
सरलता एवं अहंकारशून्यता योगेंद्र जी की बड़ी विशेषता थी। किसी प्रदर्शनी के निर्माण में वे साधारण मजदूर की तरह काम में जुट जाते थे। जब अपनी खनकदार आवाज में वे किसी कार्यक्रम का ‘आंखों देखा हाल’ सुनाते थे, तो लगता था मानो आकाशवाणी से कोई बोल रहा हो। उनका हस्तलेख मोतियों जैसा था। इसीलिए उनके पत्रों को लोग संभालकर रखते थे। वयोवृद्ध होने के बावजूद वे दो अपै्रल, 2021 को संस्कार भारती के दिल्ली में नवनिर्मित कार्यालय ‘कला संकुल’ के उद्घाटन में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत एवं सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले के साथ उपस्थित हुए।
उनकी कला साधना के लिए राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने 2018 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। 10 जून, 2022 (निर्जला एकादशी) को लखनऊ के एक अस्पताल में उनकी जीवनयात्रा पूर्ण हुई।
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