पर्यावरण विधिवेत्ता सुधीर मिश्र ने पर्यावरण के संरक्षण में कानून की भूमिका पर बात की। उन्होंने बताया कि पर्यावरण संबंधी मुकदमों की सही पैरवी के कारण ही सर्वोच्च न्यायालय में एक पीठ बनी जो हर शुक्रवार को पर्यावरण संबंधी मुकदमों की सुनवाई करती है। इसी तरह एक मुकदमे से फोरेंसिक विज्ञान की नई शाखा वन्यजीव फोरेंसिक विज्ञान की शुरूआत हुई। उन्होंने कहा कि भारत में पर्यावरण पर बहुत काम हुआ है।
पाञ्चजन्य के पर्यावरण संवाद के तीसरे सत्र में पर्यावरण विधिवेत्ता सुधीर मिश्र ने पर्यावरण और कानून पर बात की। मिश्र ने कहा कि 22 वर्ष की पर्यावरण वकालत के बाद यह समझ में आता है कि पर्यावरण के क्षेत्र में कानून की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने एक मुकदमे को याद करते हुए बताया कि इटावा-मैनपुरी में एक वेटलैंड को खत्म कर विश्व बैंक की सहायता से एक हवाईअड्डा बनाया जाएगा।
तत्कालीन राज्य सरकार के लिए यह मुफीद था क्योंकि यह तत्कालीन मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र था और विचार था कि हवाईअड्डा बनने से इटावा में बड़े महोत्सव हो सकेंगे। उस वेटलैंड में सारस आते थे। इस मुकदमे में सारस की प्रकृति, आवास पर पूरी चर्चा हुई। अंतत: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह क्षेत्र सारसों का प्रवास क्षेत्र है और इसे नष्ट कर हवाईअड्डा बनाया जाना ठीक नहीं है। इस तरह विश्व बैंक की सहायता से बनने वाली यह परियोजना रद की गई। सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष पीठ बनी जो हर शुक्रवार को पर्यावरण संबंधी मुकदमों की सुनवाई करता है।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के समय देश में 9 प्रतिशत वन थे जो अब बढ़कर 16-17 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। वन्यजीव संरक्षण पर बहुत काम हुआ। प्रोजेक्ट लॉयन, प्रोजेक्ट डॉल्फिन जैसे कई कार्यक्रम शुरू हुए जिसके बाद इनकी संख्या बढ़ी। गुजरात की एक घटना का जिक्र करते हुए श्री मिश्र ने बताया कि 2007 में भावनगर के पास 18-20 शेरों के शिकार की सूचना मिली। इसकी पड़ताल में फोरेंसिक विशेषज्ञ भी शामिल किए गए।
फोरेंसिक विशेषज्ञों ने शेरों के खून के साथ शिकारियों के खून का मिलान कर लिया। यहां से वन्यजीव फोरेंसिक विज्ञान में नया बदलाव आया। आज हर राज्य में फोरेंसिक विश्वविद्यालय हैं। इसमें वन्यजीव फोरेंसिक पर भी अलग से काम होता है। मिश्र ने कहा कि दिल्ली वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली का शीर्ष शहर है। मिश्र ने 2015 में इस पर एक मुकदमा किया।
मौजूदा दिल्ली सरकार हर बार केवल हलफनामा भेजती है कि सड़कों पर उड़ रही धूल, या पराली जलाने या पेड़ लगाने के लिए कौन जिम्मेदार है। यानी हलफनामे में केवल आरोप लगाए जाते हैं। श्री मिश्र ने कहा कि पराली जलाने के लिए दिल्ली सरकार पहले पंजाब सरकार को जिम्मेदार ठहराती थी। अब पंजाब में भी उसी पार्टी की सरकार है जिसकी दिल्ली में है। दिल्लीवासियों को चाहिए कि वह दिल्ली सरकार को पत्र लिखें कि अब वह पंजाब सरकार से पराली जलाने पर रोक के लिए कहे। दरअसल जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, समस्या का समाधान नहीं होना है।
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