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पर्यावरण संरक्षण प्रोजेक्ट नहीं, पूजा : सच्चिदानंद भारती

सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी गढ़वाल के उपरेखाल के आसपास के 800 हेक्टेअर क्षेत्र में वीरान पहाड़ियों को जनभागीदारी से पेड़ लगाकर हरा-भरा कर दिया।

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Jun 25, 2022, 01:23 pm IST
in भारत
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सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी गढ़वाल के उपरेखाल के आसपास के 800 हेक्टेअर क्षेत्र में वीरान पहाड़ियों को जनभागीदारी से पेड़ लगाकर हरा-भरा कर दिया। पानी की समस्या के समाधान के लिए छोटी-छोटी जल तलैया बनवाईं जिससे वीरान पहाड़ी पर गाड़गंगा उतर आई। इसीलिए इलाके में उन्हें ‘भगीरथ’ कहा जाता है। सच्चिदानंद जी के पास विश्व बैंक से फंडिंग आई पर उन्होंने मना कर दिया। वे कहते हैं पर्यावरण संरक्षण पूजा है, प्रोजेक्ट नहीं जो फंडिंग पर चले।

सुदर्शन जी तीन दिन उपरेखाल में रहे। 800 वर्ग हेक्टेअर में से लगभग 8 हेक्टेअर के जंगल में घूमे। हमने उनके नाम पर उस वन का नाम सुदर्शन वन रखा है। इसमें 2000 देवदार के पेड़ भी लगाए गए हैं। सर संघचालक जी के उपरेखाल आने पर पूरे देश में इस काम की चर्चा हुई। सुदर्शन जी तीन दिन रहे तो लोगों को लगा कि यहां कुछ बड़ा काम हुआ है। फिर दुनिया के कई देशों के लोग आने लगे।

पाञ्चजन्य के पर्यावरण संवाद कार्यक्रम में छठे सत्र में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के भगीरथ सच्चिदानंद भारती ने अपनी सरलता, स्पष्टता और सादगी से ही एक संदेश दे दिया। सत्र का संचालन कर रही ऋचा अनिरुद्ध द्वारा पहले कदम के बारे में पूछे जाने पर श्री भारती ने कहा कि पिछले चार दशकों से उपरेखाल नामक छोटी जगह पर लोगों के साथ मिलजुल कर पानी और जंगल को बचाने का हमने जो काम किया, आज पाञ्चजन्य परिवार द्वारा उस काम को प्यार और आदर दिए जाने से यह काम न जाने कितना गुना फैल गया है।

श्री भारती ने कहा कि यह सत्र चार दशकों से जुड़े लोगों की कहानी कहने का अवसर है। उत्तराखंड के जिस क्षेत्र में ये काम हुआ, उसके आसपास पहले जंगल था और जंगल से जुड़ा जीवन था। भोजन के लिए छोटे बच्चे, माताएं लकड़ी ले आती थीं। जानवरों के लिए, घर बनाने के लिए सामग्री जंगल से आती थी। जिस गांव का अपना जंगल नहीं होता था, उसे दूसरे गांव के जंगल पर निर्भर रहना पड़ता था। हमने सोचा कि हर गांव का अपना जंगल होगा तो हर गांव का स्वाभिमान होगा। इसके लिए महिला मंगल दल से बात की क्योंकि जंगल से जुड़े अधिकतम काम महिलाएं ही करती थीं। छोटे-छोटे टुकड़ों में जंगल बनाने शुरू हुए। ऐसे पेड़ लगाएं गए जो उन महिलाओं के काम के थे। इस तरह सिलसिला चल पड़ा। कुछ साल बाद सूखा पड़ा तो हमारे पेड़ भी सूखे। उन्हें जिलाने के लिए हमने पेड़ों के आसपास छोटे-छोटे गड्ढे बनाए।

इसके बाद देशभर में पानी की परंपराओं को समझने का अवसर मिला। देश में पानी बचाने, पानी के सार-संभाल की भव्य परंपरा है। तब विचार आया कि उत्तराखंड में भी ऐसी कोई परंपरा होगी। पता किया तो पता चला कि उत्तराखंड में दो-ढाई सौ साल पहले पानी बचाने के लिए चाल खाल की परंपरा थी। इसमें पानी रोकने के लिए 32 कदम गुणे 32 कदम गुणे 3 कदम के गड्ढे बनाए जाते थे। इसी चाल खाल की पद्धति को थोड़ा संशोधित करते हुए हमने एक या दो वर्ग मीटर के गड्ढे बनाए। हमने इसे जल तलैया नाम दिया।

इसी दौरान एक आश्चर्यजनक घटना हुई। 1999 में एक सूखा रौना में हमेशा पानी रहने लगा। अखबारों में खबर छपने पर वर्ल्ड बैंक की फंडिंग टीम आई। उसने 1000 करोड़ रुपये की फंडिंग का प्रस्ताव किया। हमने मना कर दिया। ये खबर भी छपी। उन दिनों स्वदेशी आंदोलन चल रहा था। उन लोगों ने इस खबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक आदरणीय कुप्प. सी. सुदर्शन जी को पढ़ाया। इसके बाद सुदर्शन जी का उपरेखाल आने का कार्यक्रम बना।

सरकार के लोग आए और पूछा कि हमारे लायक कोई काम बताओ। उपरेखाल की सड़क का काम 27 सालों से अटका था। सुदर्शन जी के आने के पहले 14 दिन में यह सड़क बन गई। सुदर्शन जी 6 अप्रैल की रात को पहुंचे। उन्हें जहां उतरना था, उससे पहले ही दो-ढाई हजार स्थानीय लोग पहुंच गए, और उन्हें उतार लिया और कंधे पर बैठा कर गांव ले आए।

सुदर्शन जी रात 11 बजे तक लोगों के बीच रहे। यह सात हजार फुट ऊंचाई की घटना है। सुदर्शन जी आसपास के 40 से अधिक गांवों में गए। 800 वर्ग हेक्टेअर में से लगभग 8 हेक्टेअर के जंगल में घूमे। हमने उनके नाम पर उस वन का नाम सुदर्शन वन रखा है। इसमें 2000 देवदार के पेड़ भी लगाए गए हैं। सर संघचालक जी के उपरेखाल आने पर पूरे देश में इस काम की चर्चा हुई। सुदर्शन जी तीन दिन रहे तो लोगों को लगा कि यहां कुछ बड़ा काम हुआ है। फिर दुनिया के कई देशों के लोग आने लगे। पिछले दिनों मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सवा दो मिनट तक उपरेखाल का जिक्र किया। फिर पाञ्चजन्य ने इस कार्य को विस्तार से प्रकाशित किया। मैं इन सभी का आभार व्यक्त करता हूं।

ऋचा अनिरुद्ध ने पूछा कि आपने विश्व बैंक की फंडिंग को मना कर दिया। सच्चिदानंद जी ने कहा कि हमने इस काम को सेवा के रूप में लिया है। हम हिमालय देवता की पूजा करते हैं। यह काम हमारे लिए पूजा है। हमारा कोई प्रोजेक्ट नहीं है। हमारा जीवन भर का, पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला काम है। फंड की एक सीमा होगी। लोग प्रोजेक्ट की तरह जुटेंगे तो प्रोजेक्ट खत्म होने पर लोग अलग हो जाएंगे। श्री भारती ने कहा कि हर व्यक्ति को पर्यावरण के संरक्षण के लिए अपने घर से ही शुरुआत करनी चाहिए।

सच्चिदानंद जी ने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि विनाश रहित विकास होना चाहिए या यूं कहें कि न्यूनतम विनाश और अधिकतम विकास होना चाहिए। उन्होंने उदाहरण दिया कि उपरेखाल केदारनाथ जी के दूसरी ओर है। जब केदारनाथ जी में तबाही आई तो उपरेखाल में भी पानी आया था। परंतु उपरेखाल में एक फुट जमीन भी नहीं बही क्योंकि उपरेखाल में पहले ही जमीन बचाने की तैयारी हो चुकी थी। जिस तरह का विकास होगा, परिणाम उसी तरह के होंगे।

Topics: पर्यावरण संवादभगीरथ सच्चिदानंद भारती
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