झारखंड सरकार ने कहा है कि छठी से बारहवीं तक के छात्रों की पोशाक का रंग होगा हरा। इससे कुछ पहले विद्यालय के भवनों को हरे रंग में रंगने का आदेश दिया था। भाजपा ने इसे मुस्लिम तुष्टीकरण बताते हुए किया है विरोध।
ऐसा लग रहा है कि झारखंड सरकार के पास मुस्लिम तुष्टीकरण के अलावा और कोई काम ही नहीं बचा है। इसी क्रम में अब झारखंड सरकार ने नया कारनामा कर दिखाया है। राज्य सरकार ने कहा है कि अब सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की पोषाक हरे रंग में होगी। इससे पहले राज्य सरकार ने राज्य के सभी विद्यालयों को हरे रंग से रंगने का आदेश दिया था। उससे पहले राज्य के प्रत्येक जिले में स्थानीय भाषा के नाम पर हिंदी हटाकर उर्दू को अनिवार्य कर दिया था। लोगों का कहना है कि इस तरह के निर्णयों के बाद कट्टरवादी तत्वों का मनोबल बढ़ना स्वाभाविक है।
क्या है मामला ?
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के निर्देश पर पोशाक को हरे रंग में बदलने के लिए झारखंड शिक्षा परियोजना द्वारा प्रस्ताव तैयार कर शिक्षा मंत्री को भेजा गया था। उस प्रस्ताव पर शिक्षा मंत्री ने अपनी मुहर भी लगा दी है। पता चला है कि 1 जुलाई यानी नए शैक्षणिक सत्र से बच्चों को हरे रंग की नई पोशाक दी जाएगी। नई पोशाक कक्षा छठीं से बारहवीं तक के छात्रों को दी जाएगी। कहा जा रहा है कि इन छात्रों की पैंट हरी होगी और कमीज हरी या सफेद होगी।
आपको बता दें कि राज्य के सरकारी स्कूल के बच्चों की पोशाक का रंग तीसरी बार बदलने जा रहा है। सबसे पहले बच्चों की पोशाक का रंग नीला था। उसके बाद 2015-16 में बदलकर पैंट का रंग मैहरून और शर्ट का रंग क्रीम कलर का रखा गया था।
राज्य में अब तक कक्षा 1 से 8 तक के सभी विद्यार्थियों एवं नौवीं से 12वीं तक की छात्राओं को पोशाक दी जाती थी। इस वर्ष से कक्षा नौवीं से बारहवीं तक के छात्रों को भी पोशाक दी जाएगी।
विद्यालय भवन भी हो रहे हैं हरे
कुछ समय पहले राज्य सरकार ने 35000 सरकारी विद्यालयों को हरे रंग में रंगने का फरमान जारी किया था। इसके तहत नए सत्र से विद्यालयों के भवनों को हरा और उनके दरवाजों और खिड़कियों को सफेद किया जाएगा।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास के अनुसार सरकार को तुष्टीकरण की राजनीति करनी है इसलिए सरकारी विद्यालयों और उनके बच्चों की पोशाक का रंग हरा करने पर ध्यान दे रही है। अप्रत्यक्ष रूप से सरकार सभी विद्यालयों को मदरसा बना देना चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार प्रदेश के बच्चों को अपनी गंदी राजनीति में घसीट लेना चाहती है। झारखंड में हजारों शिक्षकों की बहाली अभी तक लटकी हुई है, लेकिन सरकार का ध्यान स्कूल और पोशाकों के रंग पर है। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार को विकास से नहीं तुष्टीकरण से मतलब है।
राज्य में शिक्षकों का अभाव
यह तो रही रंगों की राजनीति की बात। अब बात करेंगे झारखंड के विद्यालयों के शिक्षकों और वहां की शिक्षा की स्थिति की। झारखंड में शिक्षकों की स्थिति यह है कि लगभग सभी प्राथमिक विद्यालयों में लगभग एक या दो शिक्षक ही हैं। ऐसी ही स्थिति मध्यम और उच्च विद्यालयों की भी है। सरकारी आंकड़े के हिसाब से प्राथमिक विद्यालय में अभी 60,000 पद खाली हैं। इसी वर्ष जून में 26,000 शिक्षकों की नियुक्ति निकलने वाली थी, लेकिन अब तक सरकार की ओर से इसकी सुगबुगाहट तक नहीं है। ऐसी ही हालत मध्य और उच्च विद्यालयों के शिक्षकों की भी है। यहां भी लगभग 10 से 15 हजार पद रिक्त हैं। इतनी रिक्तियां होने के बाद कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि झारखंड की शिक्षा व्यवस्था कैसे चल रही होगी।
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