ऐसा लगता है कि बिहार में ‘तालिबानी’ राज चल रहा है। सोशल मीडिया में वायरल किसी भी पोस्ट को जबरन एक मजहब से जोड़ कर उसे मुख्य सचिव आमिर सुबहानी के पास भेज दिया जाता है और फिर इसके बाद जो होता है, वह तालिबानी राज की याद दिला देता है। एक ऐसी ही घटना बिहार प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी आलोक कुमार के साथ हुई है। बीपीएससी 41 वीं बैच के अधिकारी आलोक कुमार की छवि एक शांत और संयमित अधिकारी की है। अभी पटना के निर्वाचन विभाग में पदस्थापित हैं। हृदय रोग से पीड़ित आलोक कुमार ने 17 जून को बिहार प्रशासनिक सेवा संघ (बासा) के अधिकारियों के व्हाट्सएप ग्रुप में एक पोस्ट फॉरवर्ड किया था। ग्रुप के ही एक सदस्य ने आपत्ति व्यक्त की तो उन्होंने 10 मिनट के अंदर उस पोस्ट को हटा भी लिया। इसी बीच ग्रुप के ही एक अन्य सदस्य ने मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को वह पोस्ट फारवर्ड कर दिया। सुबहानी उस समय धर्मशाला में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल थे। बता दें कि आमिर सुबहानी अपनी मजहबी कट्टरता के लिए चर्चित हैं। उन्होंने आनन-फानन में सक्षम प्राधिकार को उक्त पोस्ट को फारवर्ड कर दिया। मुख्य सचिव की धमक ऐसी है कि उनके फारवर्ड पोस्ट को ही आदेश समझा गया और बगैर किसी जांच के आलोक कुमार को जेल में डाल दिया गया। उन पर आपत्तिजनक वाह्टसएप्प पोस्ट के माध्यम से सांप्रदायिक उन्माद व दंगा फैलाने तथा सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप लगाया गया है। यह एक संज्ञेय अपराध है। आलोक कुमार को आई.पी.सी.के धारा 353 ‘ए’ एवं आई.टी एक्ट, 2000 के 66 के तहत आरोप भी गठित कर दिया गया।
*चर्चित कार्टून में क्या है*
पुलिस की रिपोर्ट में एक बुजुर्ग व्यक्ति एक बच्ची को ट्रॉली में बिठाकर घुमा रहा है। उसी क्रम में एक अन्य व्यक्ति द्वारा प्रश्न किया जाता है- “पोती है“ तो ट्रॉली को धक्का देता व्यक्ति जवाब देता है- “नहीं मेरी नई बीबी“। इसे ही एक मजहब विशेष से जोड़ दिया गया।
*बासा पदाधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर विरोध किया*
बिहार प्रशासनिक सेवा संघ (बासा) के अधिकारियों ने इस तालिबानी फैसले का जमकर विरोध किया है। बासा के महासचिव सुनील कुमार तिवारी ने इसे अत्यंत खेदजनक बताया और पुलिस की रिपार्ट का जिक्र करते हुए बताया कि पुलिस ने आनन-फानन में यह निर्णय ले लिया। तथाकथित आपत्तिजनक पोस्ट कहीं से नागवार नहीं और न ही इससे दंगा फैलने का खतरा था। बिहार सरकार के पदाधिकारी कोई चोर, उच्चके या आतंकवादी नहीं हैं जो बिना किसी कारण जेल में डाल दिए जाएं। सरकारी पदाधिकारियों पर कार्रवाई करने का एक प्रावधान होता है। संबंधित पदाधिकारी से बगैर पूछताछ किये सीधे जेल में डाल देना अत्यंत निंदनीय है।
बासा के पदाधिकारियों ने 20 जून को इस अविवेकी निर्णय के खिलाफ पूरे बिहार में काला बिल्ला लगाकार सरकारी कार्यों का निष्पादन किया। जब बासा के अधिकारी मुख्य सचिव से मिले तो उन्होंने इस घटना पर दुःख व्यक्त किया। बासा के पदाधिकारी भी मुख्य सचिव के आश्वासन पर तीन-चार दिन निगरानी के बाद आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।
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