झारखंड में पुलिस जिन दंगाइयों पर सख्ती बरतने की कोशिश कर रही थी अब उसे ही सरकार की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। रांची में दंगाइयों का पोस्टर चौक-चौराहों पर लगाने का आदेश देने वाले वरीय पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र कुमार झा से गृह कार्य एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का ने स्पष्टीकरण मांगा है।प्रधान सचिव ने पुलिस द्वारा पोस्टर लगाने की कार्रवाई को गलत बताया है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि पोस्टर में आरोपितों के नाम और अन्य विवरण देना विधि सम्मत नहीं है। इसी पत्र में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला दिया गया है। कहा गया है कि आरोपितों का पोस्टर लगाना इलाहबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश का उल्लंघन है जो नौ मार्च 2020 को दिया गया था। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने पीआईएल संख्या-532/2020 की सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया था।
भले ही अरुण एक्का ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया हो लेकिन इसके पीछे राज्य सरकार की तुष्टिकरण नीति मुख्य भूमिका निभा रही है। कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि सरकार का यह निर्णय पुलिस का मनोबल तोड़ने वाला, दंगाइयों का हौसला बढ़ाने वाला और राज्य के आम लोगों निराशा और गुस्सा पैदा करने वाला है।
आपको बता दें कि रांची हिंसा मामले में पुलिस को जानकारी मिली है कि रांची को दंगों की आग में झुलसाने में पीएफआई और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आये हुए लोगों की भूमिका संदिग्ध है। इन लोगों ने ही झारखंड पहुंचकर कई जिलों के मुसलमानों को दंगे के लिए भड़काया था। तभी तो 10 जून के प्रदर्शन में लगभग 10 हज़ार लोग शामिल हुए थे। इसके लिए झारखंड के खूंटी, लोहरदगा, पाकुर, धनबाद सहित कई जिलों के कट्टरपंथी मुसलमान आये थे। रांची में हुए दंगे में पुलिस की तरफ से जो प्राथमिकी दर्ज की गई है उसमें जिक्र है कि उपद्रवियों के द्वारा पुलिस पर अवैध हथियारों से करीब 80 राउंड फायरिंग की गई थी।
राज्यपाल ने भी लिया था संज्ञान
रांची हिंसा मामले में केंद्र की ओर से राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था। इसके बाद राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य के पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक, रांची के उपायुक्त और वरीय पुलिस अधीक्षक को बुलाकर फटकार लगाई थी। उन्होंने निर्देश दिया था कि रांची पुलिस उपद्रव में शामिल लोगों के पोस्टर चौक-चौराहे पर लगाए ताकि उनकी पहचान की जा सके। इसके रांची पुलिस ने दंगाइयों की तस्वीर का बैनर बनाकर चौक चौराहों पर लगाया था। इस पर झामुमो के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा था कि पोस्टर लगाने से उत्तर प्रदेश और झारखंड में फर्क मिट जाएगा और लोगों में कटुता बढ़ेगी। इसी बयान के थोड़ी देर बाद उन पोस्टरों को तुरंत हटा लिया गया था।
इसपर रांची के भाजपा विधायक सीपी सिंह ने कहा कि हेमंत सरकार पुलिस के हाथ बांध कर रखना चाहती है। दंगाइयों की गिरफ्तारी के लिए पोस्टर लगवाने वाले पुलिस पदाधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगना यही बताता है कि झारखंड सरकार तुष्टीकरण के खेल में किसी भी हद तक जा सकती है।
बता दें कि रांची पुलिस ने अब तक 29 लोगों को गिरफ़्तार किया है। इसमें खास तौर पर दंगा को उकसाने, तोड़फोड़ व भड़काऊ पोस्ट करने को लेकर नवाब चिश्ती व मो जमील को भी गिरफ्तार किया गया है। यह वही नवाब चिश्ती है जिसके साथ जामताड़ा के कांग्रेस विधायक इरफ़ान अंसारी के अच्छे संबंध बताये जाते हैं। इसकी पुष्टि नवाब चिश्ती के साथ इरफ़ान अंसारी की वे तस्वीरें हैं जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हैं। कहा जा रहा है कि जामताड़ा के कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी के ही दबाव में रांची के वरीय पुलिस अधीक्षक को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ है। इरफ़ान अंसारी ने हिंसा के दिन यानि 10 जून को भी पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाया था। उन्होंने ख़ास कर सिटी एसपी सुरेन्द्र कुमार झा पर भेदभाव के तहत काम करने का आरोप लगाया था और उपद्रवियों की मौत पर 50 लाख रुपए का मुआवजा देने की मांग की थी।
आपको जानकर हैरानी होगी कि रांची में होने वाले दंगे में झारखंड में प्रतिबंधित संगठन पीएफआई का भी नाम आ रहा है। इसके साथ ही इस दंगे में उत्तर प्रदेश के भी कई कट्टरपंथी मुसलमानों के हाथ होने की बात कही जा रही है। और तो और इस दंगे में इतना सब कुछ होने के बाद भी दंगाइयों पर सख्ती दिखाने के बजाय पुलिस पर ही कार्रवाई करना समझ से परे है।
इसी बीच भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने ट्वीट करते हुए कहा कि रांची में हुए उपद्रव के सरगना पर रांची पुलिस हाथ डालने से कतरा रही है। इस घटना के षड्यंत्रकारियों की पुख्ता जानकारी मिलने के बाद भी ऊपरी दबाव के चलते पुलिस काम नहीं कर पा रही है। उन्होंने सवाल पूछा है कि यह ऊपरी दबाव देने वाले लोग कौन हैं ?
उच्च न्यायालय भी हुआ सख्त, सरकार करेगी 24 जून तक रिपोर्ट पेश
हालांकि अब झारखंड उच्च न्यायालय ने भी इस मामले पर सख्त रवैया अपनाया है। 17 जून को उच्च न्यायालय ने सरकार से सभी मामलों पर विभिन्न रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है। इसकी अगली सुनवाई 24 जून को निर्धारित की गई है। न्यायालय ने पुलिस पर गोली चलने की बात को गंभीर माना और कहा कि यह चिंताजनक है। नवाब चिश्ती के साथ इरफ़ान अंसारी की तस्वीर पर कहा कि आरोपी की पहुँच ऊपर तक होने की वजह से मामला और भी गंभीर हो जाता है। अगर ऐसा है तो न्यायालय इस मामले पर जरुर कार्रवाई करेगा। न्यायालय में रांची हिंसा में विदेशी ताकतों का हाथ होने की बात कही गई है।
दरअसल झारखंड में दंगाइयों और जिहादियों को उसी तरह छूट मिली हुई है जैसी पश्चिम बंगाल में। झारखंड सरकार पूरी तरह नक्सली और जिहादियों के कब्जे में दिखती है। यही कारण है कि रांची दंगे के आरोपियों को लेकर सरकार ने अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। और जो पुलिस अधिकारी कार्रवाई कर रहे हैं उन्हें डराया धमकाया जा रहा है। भले ही वोट बैंक के लिए सरकार दंगाइयों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं कर रही हो लेकिन इसका असर राज्य की कानून व्यवस्था पर देखने को मिल रहा है। दंगाई खुलेआम मंदिरों पर हमला कर रहे हैं हिंदुओं को पीट रहे हैं और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। लोगों का कहना है कि झारखंड पश्चिम बंगाल की राह पर है इस बात में दम भी लग रहा है। झारखंड सुलग रहा है और सरकार उस आग में राजनीति की रोटी सेक रही है।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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