नूपुर शर्मा का गला काटे जाने या कहा जाए कि नूपुर शर्मा को फांसी दिए जाने की मांग को लेकर शुक्रवार को पूरे भारत में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों का नंगा नाच पूरे भारत ने देखा। इतना ही नहीं, जब से नुपुर शर्मा को लेकर विवाद आरम्भ हुआ था और कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों ने नूपुर शर्मा को धमकियां देनी आरम्भ की थीं, तब से साहित्यिक जगत मौन था। वह पूरी तरह से निरपेक्ष था।
नूपुर शर्मा का गला काटे जाने या कहा जाए कि नूपुर शर्मा को फांसी दिए जाने की मांग को लेकर शुक्रवार को पूरे भारत में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों का नंगा नाच पूरे भारत ने देखा। इतना ही नहीं, जब से नुपुर शर्मा को लेकर विवाद आरम्भ हुआ था और कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों ने नूपुर शर्मा को धमकियां देनी आरम्भ की थीं, तब से साहित्यिक जगत मौन था। वह पूरी तरह से निरपेक्ष था। ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे देश की एक महिला को मजहबी संकीर्णता के नाम पर जो धमकियां दी जा रही हैं, उनसे उनका कोई लेना देना नहीं है।
फेमिनिज्म के ठेकेदार मौन थे, जनवाद का नारा लगाने वाले लेखक और कवि एकदम मौन थे। वह पूरा वर्ग जो हिन्दू देवी देवताओं को चित्रित करने वाले पेंटर एमएफ हुसैन की पेंटिंग को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहा था, वह मौन था। कुल मिलाकर ऐसी चुप्पी थी, कि जिसे देखकर यह अनुभव ही नहीं हो पा रहा था कि क्या यह वही देश है जहां पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आन्दोलन करने वाले लेखक और कवि रहा करते हैं।
परन्तु उन्हें अपने दड़बों से बाहर निकलने में अधिक समय नहीं लगा। जैसे ही शुक्रवार को नूपुर शर्मा का पुतला टांगा गया और प्रयागराज, रांची आदि में हिंसा हुई और उन्हें यह लगा कि अब उनके प्रिय समुदाय पर जनता का गुस्सा निकलेगा, तो वह अपनी खोल से बाहर निकले और इस कथित कट्टरता की बुराई यह कहते हुए की कि पथराव बुरी बात है। जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक सदस्य ने लिखा, ‘पागलपन के जवाब में वहशीपन कोई तरीका नहीं है। क्या देश भर में पत्थरबाजी से पैगम्बर की इज्जत बढ़ रही है? आखिर लोगबाग कब समझेंगे कि साम्प्रदायिक राजनीति दोनों ओर नफरत जगाने में सफल हो गई है।’ परन्तु उन्होंने उससे पहले इस बात की निंदा नहीं की थी कि एक महिला की लिंचिंग हो रही है, वह गलत हो रही है।
जेएनयू गैंग और फेमिनिस्ट गैंग भी चुप था
यह बहुत ही आश्चर्य में भरने वाली बात थी कि बात-बात में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता करने वाला जेएनयू का ढपली गैंग और फेमिनिस्ट समूह भी नूपुर शर्मा के गला काटने वाले वीडियो आदि पर मौन था। नूपुर शर्मा का साथ देने की कोई बात नहीं कर रहा, परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संविधान की सर्वोच्चता पर तो बात हो सकती थी। यह तो कहा जा सकता था कि हम नूपुर के साथ नहीं हैं, परन्तु उसे दंड देने का अधिकार भीड़ को नहीं, अपितु न्यायालय को है। फिर भी यह लोग भी संविधान की सर्वोच्चता की बात न करते हुए अपने-अपने दडबे में घुसे रहे। परन्तु जैसे ही प्रयागराज हिंसा के आरोपी जावेद पम्प का घर अवैध होने के कारण ढहाया गया, वैसे ही कविताओं की छिपी प्रतिभाएं सामने आ गईं। चूंकि जावेद पम्प की बेटी जेएनयू की मुस्लिम नेता हैं, जो पूर्व में अर्थात भारत की संसद से पारित हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध कर चुकी हैं, संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को निर्दोष बता चुकी हैं, राम मंदिर पर निर्णय को लेकर उच्चतम न्यायालय को कोस चुकी हैं, तो वह वामपंथी लेखकों एवं फेमिनिस्ट लेखिकाओं के लिए सबसे प्रिय व्यक्ति थी।
और इतने दिनों से दबा हुआ गुबार बाहर आया और फिर आफरीन के समर्थन में ट्वीट धड़ाधड़ किए जाने लगे, जेएनयू में प्रदर्शन हुए और इतना ही नहीं सऊदी से भी मदद मांगी गई। पसमांदा आन्दोलन का मुख्य चेहरा डॉ फैयाज़ अहमद फैज़ ने एक ट्वीट के स्क्रीन शॉट को साझा करते हुए लिखा कि
लो भैय्या ये निकल के बाहर आया सैय्यदवाद
मातम शुरू
हाय ।।।।
हाय ।।।।।
नोट:
जब देशज पसमांदा का नुकसान होता है तो उसे यह समझा कर खुश कर दिया जाता है कि माशाअल्लाह दीन के लिए शानदार कुर्बानी दिया है अल्लाह आखिरत में मकाम बुलंद करेगा और फिर देशज पसमांदा भी खुशी से झूम जाता है
जेएनयू की आफरीन के पक्ष में पाकिस्तान की भी जमीयत ए तलबा आ गई!
अपराधियों पर बुलडोजर चलने पर वामपंथी लेखकों ने कविताएं भी लिखी हैं, जिन्हें एक बार फिर से सोशल मीडिया पर साझा किया गया, यद्यपि वह अप्रैल 2022 में समालोचन पर प्रकाशित हुई थीं, रामनवमी के मध्य हुई कट्टर इस्लामिक हिंसा के उपरान्त: इनमें बुलडोजर का तो उल्लेख है, परन्तु इस्लामी कट्टरपंथ के कारण देश जला जा रहा है, या भ्रष्टाचार के कारण देश के संसाधनों पर अतिक्रमण हो रहा है, उसका कोई उल्लेख नहीं है। उसमें यह तो लिखा है कि बुलडोजर सनकी शासक की कल्पना में विरोध की आवाजें कुचलता है, परन्तु राजेश जोशी यह बताने में विफल रहते हैं कि आखिर अवैध निर्माण क्यों किये जाते हैं? क्यों पत्थरबाजी की जाती है? क्यों काफ़िर कहकर एक बड़े वर्ग को अपनी घृणा का निशाना वह वर्ग बनाता है, जो दूसरों से यह अपेक्षा करता है कि उसके पैगम्बर से बढ़कर कोई नहीं है?
राजेश जोशी ने बुलडोज़र पर लिखा हैं,
‘सनकी शासक कल्पना में कुचलता है
जैसे विरोध में उठ रही आवाज़ को
बुलडोज़र भी साबुत नहीं छोड़ता किसी भी चीज़ को
सनकी शासक बताना भूल जाता है
कि बुलडोज़र को क्या तोड़ना है
और कब रूक जाना है”
क्या प्रदेश में कानून व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने वाले योगी जी सनकी शासक हैं? इस पर इन लोगों का कहना यह होगा कि उन्होंने नाम नहीं लिया है। परन्तु एक बात का उत्तर यह लेखक नहीं दे पाते हैं कि आखिर सरकारी भूमि पर जो अपराधी अतिक्रमण कर लेते हैं, उनके साथ क्या किया जाए?
यह कविताएं संभवतया रामनवमी के उपरान्त हुए दंगों के बाद लिखी गयी थीं, क्योंकि रामनवमी पर हमने देखा था कि कैसे सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं के विरुद्ध कट्टरपंथ इस्लामिस्ट तत्वों ने हिंसा की थी। दरअसल यह कविताएं अब उनकी खीज हैं! क्योंकि एक बड़े वर्ग ने उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान यह पूरी तरह से प्रयास किया था कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में न आने पाए। परन्तु योगी जी की लोकप्रियता और मोदी जी की जनकल्याण की योजनाएं ही ऐसी थीं कि लेखकों का विष विफल हुआ और जनकल्याण एवं कानून व्यवस्था का सुचारू संचालन जीत गया।
फिर इसमें लीलाधर मंडलोई तुलसी के राम को भी घसीट लाते हैं। वह लिखते हैं,
‘आज बुलडोज़र पर सवार जब कोई गुज़रता है
वह ड्राइवर नहीं तानाशाह होता है
वह किसी एक क़ौम को निशाने पर लेता है
वह मद में भूल जाता हैघरों में सोये ज़ईफ़ों, बच्चों यहां तक
गर्भवती महिलाओं कोभयावह त्रासद ख़बरों के बीच
दुख और पश्चाताप में असहायमैं करता हूं तुलसी के राम का स्मरण
वह नहीं होता मौक़ा-ए-वारदात पर’
इन लेखकों से यह पूछा जाना चाहिए कि जब भी अतिक्रमण हटाए जाने की प्रक्रिया होती है तो कभी उस समय नहीं होती जब कोई घर में होता है। सोये हुए बच्चों पर क्या बुलडोजर चल सकता है? नहीं! परन्तु लेखन के बहाने सरकार और चुनी हुई सरकार पर निशाना साधने के साथ-साथ प्रभु श्रीराम को भी “होता है” कहकर लिखते हैं।
यह देखना बहुत ही आश्चर्यचकित करता है कि कैसे सुनियोजित तरीके से यह कविताएं लिख ही नहीं दी गईं, बल्कि एक एजेंडा लेकर लिखी गयी हैं, जिनके माध्यम से ऐसा वातावरण बनाया जाए जिसमें सरकार और हिन्दू ही दोषी हों, पत्थरबाज छूट जाएं, देश जलाने वाले निर्दोष प्रमाणित हो जाएं, नूपुर शर्मा का गला काटने की धमकी देने वाले मासूम प्रमाणित हो जाएं।
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