पर्यावरण संवाद : कॉर्बन उत्सर्जन कम करने में नेपाल निभा रहा है अपनी भूमिका- डॉ शंकर प्रसाद शर्मा
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पर्यावरण संवाद : कॉर्बन उत्सर्जन कम करने में नेपाल निभा रहा है अपनी भूमिका- डॉ शंकर प्रसाद शर्मा

विश्वबैंक के अनुसार अगर नेपाल भारत को बीस हजार मेगाटन बिजली दे तो भारत का 2.3 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है। अभी हाल ही में भारत और नेपाल के बीच हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी के क्षेत्र में एक समझौता हुआ है।

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Jun 15, 2022, 01:10 am IST
in भारत, साक्षात्कार, दिल्ली, आजादी का अमृत महोत्सव
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पांचजन्य और ऑर्गनाइजर द्वारा दिल्ली में आयोजित पर्यावरण संवाद में भारत में नेपाल के राजदूत डॉ शंकर प्रसाद शर्मा ने कहा कि भौगोलिक दृष्टि से नेपाल बहुत छोटा और असमानताओं भरा देश है। एक ओर मैदानी इलाका है तो महज सौ किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ हैं। आबोहवा में बहुत ज्यादा बदलाव देखने में आते हैं। इसलिए हमारे यहां जैव विविधता है। विश्वभर में हो रहा जलवायु परिवर्तन नेपाल पर भी अपना दुष्प्रभाव दिखा रहा है। हमारे यहां कुल भूमि का 41 प्रतिशत वन क्षेत्र है लेकिन हम प्रयास कर रहे हैं कि वन को संरक्षित रखते हुए इसे और आगे बढाकर 2030 तक 45 प्रतिशत तक ले जाएं।

पर्यावरण संवाद के एक सत्र में वक्ताओं से सवाल करते अतिथि।

दुनिया के कई देश कार्बन उत्सर्जन के दुष्परिणाम झेल रहे हैं। नेपाल भी उससे अछूता नहीं है, लेकिन हमारे यहां यह अपेक्षाकृत काफी कम है। लेकिन दूसरी ओर विकसित देशों में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन का दुष्परिणाम नेपाल जैसे छोटे देश को भी झेलना पड़ता है। इसका एक दुष्प्रभाव तो हिमालय क्षेत्रों में देखने में आ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

वक्ताओं को सुनते अतिथिगण

नेपाल में जल विद्युत की असीम संभावनाएं हैं और हम इस क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं। विश्वबैंक के अनुसार अगर नेपाल भारत को बीस हजार मेगाटन बिजली दे तो भारत का 2.3 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है। इससे प्रदूषण में बहुत हद तक फर्क पड़ेगा। खुशी की बात है कि अभी हाल ही में भारत और नेपाल के बीच हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी के क्षेत्र में एक समझौता हुआ है। जैसा मैंने पहले बताया, हम कार्बन उत्सर्जन को कम करने का प्रयास तो कर ही रहे हैं बल्कि पहाड़ी क्षेत्रों में कचरे के प्रबंधन पर भी काफी काम किया जा रहा है।

सवाल पूछते अतिथि

हमारी कई एजेंसियां और सेना मिलकर कचरा प्रबंधन को देख रही हैं। समस्या बड़ी है, लेकिन भौगोलिक वजहों से कायदों का उचित प्रकार से क्रियान्वयन करने में व्यावहारिक दिक्कतें सामने आती हैं।

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