पर्यावरण को बचाने के लिए जीवन जीने का तरीका बदलना होगा : गोपाल आर्य

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पाञ्चजन्य ब्यूरो

पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर द्वारा दिल्ली में आयोजित पर्यावरण संवाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रमुख पर्यावरण  गोपाल आर्य ने अपने विचार रखे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरण तभी अच्छा होगा जब इंसान के अंदर से खुद इसे अच्छा करने की आवाज उठेगी।

गोपाल आर्य ने कहा कि एक पेड़ बहुत कुछ कहता है। जब तक जिंदा रहेगा लकड़ियां दे जाएगा। उम्रभर देता रहेगा। प्रति इंसान 2200 पेड़ चाहिए, जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार केवल 28 पेड़ प्रति इंसान हैं। सुजलाम-सुफलाम की बात करने वाले देश की प्रकृति आज कहां पहुंच गई, यह सोचना होगा। पर्यावरण को समझने के लिए पंचतत्व को समझना जरूरी है। पंचतत्व की शुरुआत पंचमहाभूत से होती है। पंचमहाभूत में जीवन है और जहां ये हैं वहीं जीवन है। जीवन की पहली से अंतिम सांस तक की यात्रा पर्यावरण है।

पूरे देश में चार संकट हैं

1. उद्देश्य का संकट
2. प्रमाणिकता का संकट
3. संबंधों का संकट
4. जीवनचर्या में बदलाव का संकट

गोपाल आर्य ने कहा कि इंसान की सृष्टि में भागीदारी .01 प्रतिशत है। आज जीवन जीने का तरीका बदलना होगा। भारत में हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक बोतल बनती हैं। विरोध नहीं, विकल्प की जरूरत है। समाधान की जरूरत है। घर में प्रत्येक कार्य में रसायन प्रयुक्त हो रहा है। देश में प्रतिदिन सौ हजार मीट्रिक टन प्रयुक्त हो रहा है। इसकी चिंता करनी होगी। मेरा घर, मेरा आंतरिक पर्यावरण ठीक करने की चिंता करनी होगी। हमें विरोध नहीं, विकल्प की चिंता करनी चाहिए।

श्री गोपाल आर्य जी

गोपाल आर्य ने कहा कि एक यूनिट बिजली के लिए 875 ग्राम कोयला लगता है। कोयला बनने में एक लाख साल लगते हैं। हमें एक-एक यूनिट बिजली बचानी होगी। वैश्विक पर्यावरण समस्या का समाधान कोई है तो वह है व्यक्ति। विकास की अवधारणा को ऊर्जारेखित करना होगा। क्या हमारा विकास इस संसार को बचाने की चिंता कर रहा है ? इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

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