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जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून को दिया था इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला

आपातकाल इस देश की राजनीति का ऐसा टर्निंग प्वाइंट है, जहां से भारतीय राजनीति की धुरी ही बदल गई। दूसरे शब्दों में कहें तो आपातकाल के पहले और उसके बाद की राजनीति को दो हिस्से में बांट कर देखा जा सकता है।

by लखनऊ ब्यूरो
Jun 12, 2022, 01:56 pm IST
in भारत
इंदिरा गांधी और जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा (फाइल फोटो)

इंदिरा गांधी और जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा (फाइल फोटो)

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आपातकाल तो 25 जून को लगाया गया था, मगर इसकी पटकथा इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज, जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून को ही लिख दिया था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के फैसले के बाद से ही राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से बदले कि मात्र 13 दिन बाद हिन्दुस्थान में आपातकाल लागू कर दिया गया। इंदिरा गांधी ने नैतिकता के आधार पर त्याग पत्र देने के बजाय इस देश के लोकतंत्र का गला घोटना ज्यादा बेहतर समझा। अपने कानूनी सलाहकारों से चर्चा के बाद उन्होंने 25 जून 1975 को आपातकाल लागू करने का प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेज दिया और इस तरह देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।

आपातकाल इस देश की राजनीति का ऐसा टर्निंग प्वाइंट है, जहां से भारतीय राजनीति की धुरी ही बदल गई। दूसरे शब्दों में कहें तो आपातकाल के पहले और उसके बाद की राजनीति को दो हिस्से में बांट कर देखा जा सकता है। आपातकाल लागू हो जाने के बाद इंदिरा गांधी लगातार दमन चक्र चला रही थीं। लोक नायक जय प्रकाश नारायाण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी सरीखे नेताओं को जेल में डाल दिया गया। मगर आपातकाल के बाद यह सभी लोग भारतीय राजनीति के पटल पर बड़े नेता के तौर पर उभरे। आपातकाल ने कांग्रेस एवं अन्य दलों के बीच एक ऐसी पत्थर की लकीर खींच दी जो आज तक मिट नहीं पाई।

इन्दर कुमार गुजराल जब प्रधानमंत्री बने तब उनकी सरकार को कांग्रेस बाहर से समर्थन दे रही थी। गुजराल ने प्रकाश सिंह बादल से बातचीत करके उन्हें अपने साथ मिलाने की कोशिश की। इन्दर कुमार गुजराल ने लोकसभा में कहा कि ‘मैं चाहता था कि प्रकाश सिंह बादल हम लोगों के साथ आएं मगर उन्होंने कहा कि हम लोग इमरजेंसी के खिलाफ लड़ कर आए हैं और आप कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे हैं इसलिए हम आपके साथ नहीं आ सकते।’ गौर करने लायक बात यह है कि इतने समय बीत जाने के बाद भी अन्य राजनीतिक दलों के नेता कांग्रेस के उस कृत्य को भुला नहीं पाए।

आपातकाल का बीजारोपण एक मुकदमे की सुनवाई से हुआ था। वर्ष 1971 में रायबरेली लोकसभा सीट पर राज नारायण, इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े थे। इंदिरा गांधी से चुनाव हारने के बाद राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करके चुनाव को जीता है। इनका चुनाव रद्द किया जाना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस मुकदमे की सुनवाई जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने की। जस्टिस सिन्हा ने 12 जून 1975 को याचिका को स्वीकार कर लिया और इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया।

आनन-फानन में इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इंदिरा गांधी चाहती थीं कि सुप्रीम कोर्ट उस फैसले पर तुरंत स्थगन आदेश पारित कर दे, मगर ऐसा हो न सका। सुप्रीम कोर्ट ने स्थगन आदेश तो दिया मगर वह आंशिक स्थगन आदेश था। 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ‘इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के तौर पर सदन में आ सकती हैं मगर उन्हें लोकसभा सांसद के तौर पर वोट देने का अधिकार नहीं होगा।’

बाजी पलट चुकी थी इंदिरा जो चाह रही थीं, ठीक उसका उल्टा हो रहा था। इससे नाराज इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को दिन में करीब साढ़े तीन बजे सिदार्थ शंकर रे समेत कई अन्य कानून के जानकारों के साथ विचार-विमर्श किया। चर्चा के बाद इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र का गला घोंट कर आपातकाल लागू करने का फैसला कर लिया। 25 जून की रात तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली के हस्ताक्षर के साथ ही आपातकाल लागू हो गया। अगले दिन 26 जून 1975 को रेडियो पर इसकी औपचारिक घोषणा कर दी गई।

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