महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव का घमासान चल रहा है। महाविकास आघाडी के शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के पास अपना-अपना एक सांसद चुनने के लिए पर्याप्त संख्या है। भारतीय जनता पार्टी के पास दो सांसद चुनने के लिए संख्या के अतिरिक्त 29 वोट हैं। भारतीय जनता पार्टी ने तीसरा प्रत्याशी चुनाव में उतारा है और शिवसेना के दूसरा प्रत्याशी उतारने से चुनाव में विधायकों को अपने खेमे मे खींचने के लिए रस्साकशी चल रही है। छोटे दल और निर्दलीय विधायकों को लुभाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। खुद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को औरंगाबाद में आमसभा में एमआईएम का नाम तक न लेकर अपने हिंदुत्त्व को किनारे रखकर सेक्युलर बात कहने की नौबत आई।
एमआईएम के महाराष्ट्र विधानसभा में दो विधायक हैं और उसने राज्यसभा चुनाव के लिए अपनी भूमिका अभी घोषित नहीं की है। औरंगाबाद में नगर निगम के चुनाव कुछ महीने बाद होने वाले हैं। इसलिए औरंगाबाद में अब तक राज ठाकरे, देवेन्द्र फडणवीस की सभाएं हो चुकी हैं। इसी कड़ी में 8 जून को उद्धव ठाकरे की आमसभा का आयोजन किया गया था। औरंगाबाद नगर निगम चुनाव में हर बार मुख्य मुकाबला भाजपा-सेना गठबंधन और एमआईएम के बीच होता आया है। लोकसभा चुनाव में भी शिवसेना के चार बार चुने गए सांसद चंद्रकांत खैरे को एमआईएम के इम्तियाझ जलील ने 2019 में मात दी थी। राज्यसभा में एमआईएम के दो विधायकों का समर्थन जुटाने को उद्धव ठाकरे प्राथमिकता देंगे या नगर निगम चुनाव में मतदाताओं को लुभाने हेतु एमआईएम की आलोचना करेंगे, यह सवाल था। लेकिन उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्त्व को किनारे रख कर एमआईएम को लुभाने की कोशिश की। पूरे भाषण में एमआईएम का नाम तक नहीं लिया।
कुछ दिन पहले एमआईएम के नेता अकबरूद्दीन ओवैसी ने औरंगजेब की औरंगाबाद स्थित कब्र पर चादर चढ़ाई थी, इसको लेकर विवाद चल रहा था। उद्धव ठाकरे ने इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की। उलटा दहशतवादियों से लड़ते कोई औरंगजेब नामक सैनिक के शहीद की कथा बताकर प्रश्न पूछा कि क्या औरंगजेब नाम है, इसलिए शहादत को नजरअंदाज कर सकते हैं? एमआईएम के खिलाफ एक शब्द न निकालनेवाले मुख्यमंत्री ने कश्मीर में पंडितों की हत्या को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की जमकर आलोचना की। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नुपूर शर्मा का विषय लेकर नुपूर और भाजपा पर बरसे। यह शिवसेना के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उनका भाषण किसी सेक्युलर नेता की तरह था। एमआईएम के दो वोट मिलने के लिए अपनी वैचारिक भूमिका में यूटर्न लिया और कहने को हमारा हिंदुत्त्व गदाधारी है, ऐसा खोखला दावा किया। इस भाषण की महाराष्ट्र में जमकर चर्चा है।
गौरतलब है कि ठाकरे के इस नरम रुख का कारण एमआईएम के दो वोट तो हैं, साथ ही समाजवादी पार्टी के दो विधायकों का भी रुख अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। समाजवादी पार्टी के अबू आझमी और रईस शेख, ये दो विधायक हैं। अबू आझमी ने मुख्यमंत्री ठाकरे को पत्र लिखकर सरकार की कार्यशैली की जमकर आलोचना की है। उद्धव ठाकरे के इस भाषण से एमआईएम और समाजवादी पार्टी के विधायक शिवसेना को वोट देंगे या नहीं, इसका अनुमान नहीं लगा सकते। हिंदुत्व के कारण शिवसेना को मानने वाला महाराष्ट्र का मतदाता शिवसेना की इस बदली हुई भूमिका से काफी हद तक नाराज है। इसका खामियाजा शिवसेना को आनेवाले नगर निगम, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
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