स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में जल संकट से निपटने के लिए देश एक अनूठा प्रयोग कर रहा है। इसके तहत देश के हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं। इस योजना पर जिस तेजी से काम हो रहा है, वह देश की जल चेतना का जीवंत प्रमाण है। ये अमृत सरोवर न सिर्फ जल संकट का समाधान करेंगे, बल्कि ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण में भी इनकी विशेष भूमिका होगी
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले की पटवाई ग्राम पंचायत का नजारा पिछले एक महीने से बिल्कुल बदल गया है। यहां ग्राम पंचायत की जमीन पर बना तालाब कभी कूड़े के ढेर में नजर आता था। अब वही तालाब लोगों के लिए पर्यटन केंद्र बन गया है। तालाब में लगे फव्वारे, जगमग लाइट, फूड कोर्ट, स्टोन पिचिंग, चारदीवारी, नौकायन से पूरी तस्वीर बदल गई है। कभी जिस तालाब की गंदगी से आसपास बीमारियां फैला करती थीं, वही तालाब अब लोगों की पानी की जरूरत पूरा करने के साथ समावेशी विकास का मॉडल बन गया है। इस तालाब को यह नया जीवन केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना से मिला है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने 13 मई को इस अमृत सरोवर का उद्घाटन किया। देश के इस पहले अमृत सरोवर का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं। पटवाई ग्राम पंचायत ने साबित कर दिखाया है कि कैसे जनभागीदारी से तालाबों को न सिर्फ अतिक्रमण एवं गंदगी से मुक्त कराया जा सकता है बल्कि तालाब जल, आजीविका और पर्यावरण सुरक्षा के आधुनिक स्मारक बन सकते हैं। खास बात यह है कि कुछ समय पहले ही 24 अप्रैल, 2022 को पंचायती राज दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिशन अमृत सरोवर की शुरुआत की थी। योजना की शुरुआत के एक महीने भीतर जिस तरह देश में अमृत सरोवरों के निर्माण को अंतिम रूप दिया जा रहा है, वह देश की जल चेतना का जीवंत प्रमाण है।
हमारे यहां जल संस्कृति का हजारों साल पुराना इतिहास है। प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक अनुपम मिश्र अपनी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में लिखते हैं कि पांचवीं से पंद्रहवीं सदी तक देश के कोने-कोने तक तालाब बन रहे थे। राजा और रानी, सभी ने तालाब बनवाए। विधवाओं से लेकर संतों तक ने तालाब बनाकर समाज को समर्पित किए। तालाब बनाने वाला महाराज या महात्मा कहलाता था। देश में तालाबों का जल सुरक्षा के साथ सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक महत्व रहा है। एक तरह से तालाब हमारे समाज में जल संस्कृति का पर्याय थे। धीरे-धीरे बढ़ती आबादी और जोत के घटते आकार का असर तालाबों पर पड़ा। नए तालाब बनाना तो दूर, पुराने तालाब खेतों में तब्दील कर दिए गए या फिर उन्हें अतिक्रमण ने निगल लिया। जो तालाब बारिश के पानी से सदा नीरा रहते थे, उनके विलुप्त होते ही भू-जल का दोहन बढ़ता गया।
बढ़ता जलसंकट
पिछले दो दशक में देश के सामने जल संकट की जो भयावह तस्वीर सामने आई है, उसकी एक बड़ी वजह नष्ट होते तालाब और जल निकाय हैं। हालात का अंदाजा नीति आयोग के इस तथ्य से लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया है कि 84 प्रतिशत ग्रामीण आबादी स्वच्छ जल से वंचित है। नष्ट होते तालाबों से जनित जल संकट के समाधान के लिए केंद्र सरकार तालाब केंद्रित जल संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। जल सुरक्षा के इस भागीरथ प्रयास में अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत देश के हर जिले में 75 अमृत सरोवर अर्थात् तालाब एवं जल निकाय बनाए जा रहे हैं। देश के 28 राज्यों में 697 जिले और केंद्रशासित प्रदेश में कुल 45 जिले हैं, यानी देश में कुल 742 जिले हैं। देशभर में बनने वाले ये 55,650 अमृत सरोवर सिर्फ जल की उपलब्धता ही सुनिश्चित नहीं करेंगे बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र को नया जीवन देंगे।
बारिश के जल का होगा संग्रह
अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत नए तालाबों के निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। वहीं पुरानी जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार, नवीनीकरण और पुन:स्थापना करनी है। अमृत सरोवर योजना का सबसे अहम उद्देश्य वर्षा के जल का संचय है। यह 22 मार्च को विश्व जल दिवस के मौके पर शुरू किए गए ‘कैच द रेन ’ अभियान को भी मजबूती देगा। मौजूदा समय में अधिकांश तालाब या तो समतल हो चुके हैं या फिर गाद और कचरे के जमाव से उनमें पानी का संग्रहण नहीं हो पाता। ऐसे में अमृत सरोवर योजना के तहत वैज्ञानिक विधियों से तालाबों को गहरा किया जा रहा है। इससे तालाब गाद मुक्त होंगे और उनकी जल दक्षता बढ़ेगी। कम से कम एक एकड़ भूमि पर बनने वाले ये तालाब भूजल पुनर्भरण में सहायक होंगे।
अमृत सरोवर की जल धारण क्षमता कम से कम दस हजार क्यूबिक मीटर है। यह ग्रामीण विकास को टिकाऊ रूप दें, इसके लिए स्थल चयन से लेकर अंतिम चरण तक हर प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से पूरी की जा रही है। 96 प्रतिशत पंचायतों में जियो स्पेशल और रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इसके अंतर्गत भौगोलिक संरचना, मृदा के स्वभाव आदि की आधुनिक विधि से मैपिंग और डाटा विश्लेषण किया जाता है। भास्कराचार्य नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एप्लीकेशन एंड जियो इन्फॉर्मेटिक्स इस योजना से जुड़ी मैपिंग विशेषज्ञता प्रदान कर रहा है। वहीं नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम से अमृत सरोवर के निर्माण कार्यों से जुड़ी रीयल टाइम मॉनिटरिंग की जा रही है। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में शुरू अमृत सरोवर मिशन प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना,पर ड्रॉप मोर क्रॉप, अटल भूजल, जल जीवन मिशन, जल शक्ति अभियान (कैच द रेन) जैसे प्रयासों को भी मजबूती देगा।
रोजगार व पर्यटन का प्रकल्प
अमृत सरोवर योजना में तालाबों का निर्माण ग्रामीण विकास को नया आयाम देगा। इसके अंतर्गत मनरेगा के तहत तालाबों का निर्माण होना है। इन जल निकायों में मत्स्य पालन, सिंघाड़ा, बागवानी जैसी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। इससे छोटे किसानों को जहां आय के अतिरिक्त साधन मिलेंगे, वहीं इससे पंचायतों को राजस्व का स्रोत भी मिलेगा। इन सरोवरों को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाना है। स्वीमिंग पूल और नौकायन जैसी सुविधाओं से युक्त अमृत सरोवर ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देंगे। अमृत सरोवर के निकल खुलने वाली दुकान व व्यावसायिक गतिविधियों से स्थानीय उत्पादों को भी एक बाजार मिलेगा। देशभर में पंचायतों में प्रतिस्पर्धा की भावना जगाने के लिए उत्कृष्ट अमृत सरोवर के निर्माण के लिए उन्हें सम्मानित किए जाने की तैयारी है।
दो दशक में देश के सामने जल संकट की जो भयावह तस्वीर सामने आई है, उसकी एक बड़ी वजह नष्ट होते तालाब और जल निकाय हैं। हालात का अंदाजा नीति आयोग के इस तथ्य से लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया है कि 84 प्रतिशत ग्रामीण आबादी स्वच्छ जल से वंचित है। नष्ट होते तालाबों से जनित जल संकट के समाधान के लिए केंद्र सरकार तालाब केंद्रित जल संस्कृति को बढ़ावा दे रही
जनभागीदारी से जल संस्कृति का विकास
अमृत सरोवर जल सुरक्षा के साथ ग्रामीण विकास में सामुदायिक भागीदारी के प्रतीक हैं। तालाबों के निर्माण स्थल के चयन से लेकर उसके निर्माण की प्रक्रिया ग्राम सभा की निगरानी में होगी। अमृत सरोवर बनाने के लिए गांवों के चयन में स्वतंत्रता सेनानियों और बलिदानियों के गांवों को प्राथमिकता दी जाएगी। अमृत सरोवर के कार्य का शुभारंभ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों व उनके परिवार के सदस्यों अथवा पद्म पुरस्कार से सम्मानित लोगों के हाथों से किया जाना है। अमृत सरोवर की देख-रेख से लेकर उसे टिकाऊ रूप देने में पंचायत की जल समितियों की अहम भूमिका होगी। जल समितियों में 50 प्रतिशत महिला सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है। देश भर में 10 लाख महिलाओं को जल निगरानी के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है। यह महिलाएं फील्ड टेस्ट कीट के जरिए पानी की गुणवत्ता भी जांचने का कार्य करेंगी।
उत्तर प्रदेश में अमृत सखी के रूप में अमृत सरोवर की देखभाल के लिए महिलाओं को नियुक्त करने की अभिनव पहल की गई है। अमृत सरोवर में बनने वाले सामुदायिक भवन और आकर्षक चबूतरा स्थानीय लोगों की सामाजिक जरूरतों के साथ सामाजिक सौहार्द को मजबूती देंगे। जल निकाय के निर्माण के दौरान स्थानीय श्रमिकों को रोजगार के साथ उसके गहरीकरण से निकलने वाली मिट्टी का उपयोग भी पंचायत के विकास कार्यों में होगा। यही नहीं, अमृत सरोवर के निर्माण के लिए क्राउड फंडिंग और सीएसआर से सामाजिक भागीदारी बढ़ाने का प्रयास किया गया है। जनभागीदारी के इस प्रकल्प से भावी पीढ़ियां प्रेरणा लें, इसके लिए सामुदायिक भागीदारी, श्रम और अर्थ आधारित नागरिक सहभागिता के उदाहरणों का संकलन भी किया जा रहा है।
अमृत सरोवर योजना में तालाबों का निर्माण ग्रामीण विकास को नया आयाम देगा। इसके अंतर्गत मनरेगा के तहत तालाबों का निर्माण होना है। इन जल निकायों में मत्स्य पालन, सिंघाड़ा, बागवानी जैसी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। इससे छोटे किसानों को जहां आय के अतिरिक्त साधन मिलेंगे वहीं इससे पंचायतों को राजस्व का स्रोत भी मिलेगा। इन सरोवरों को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाना है। स्वीमिंग पूल और नौकायन जैसी सुविधाओं से युक्त अमृत सरोवर ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देंगे
जनभागीदारी से कैसे सूखा प्रभावित क्षेत्र भी जल आत्मनिर्भरता हासिल कर सकते हैं, इसका एक उदाहरण गुजरात के कच्छ क्षेत्र स्थित भुजपुर में मिलता है। अनिश्चित वर्षा क्षेत्र होने के कारण यहां स्वच्छ जल का एकमात्र स्रोत भूमिगत जल है। यहां की नदियों में भी पर्याप्त पानी नहीं होता था। कुछ साल पहले गांव के लोगों ने बारिश के पानी के संग्रहण का निर्णय लिया। रुक्मावती और उसकी सहायक नदियों पर 18 चैकडेम बनाए गए। इस वर्षाजल संग्रहण से मृदा में अंत:स्रवण की दर बढ़ी। इससे भू-जल स्तर में अप्रत्याशित सुधार हुआ। इस क्षेत्र के किसानों के अनुसार अब कुओं में साल भर पानी रहता है। वही पानी जो बहकर समुद्र में चला जाता था, आज स्थानीय पेयजल और सिंचाई की जरूरत को पूरी करता है।
सावधान करती भू-जल की स्थिति
भू-जल में गिरावट की एक अन्य वजह हरित क्रांति के बाद फसल चक्रीकरण का अभाव और न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित फसलों की पैदावार पर जोर है। देश के बड़े हिस्से में गन्ना और धान की पैदावार जरूरत से ज्यादा होती है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार एक किलो चीनी तैयार करने में 5 हजार लीटर, एक किलो चावल तैयार करने में 3 हजार लीटर, एक किलो गेहूं उगाने में 1700 लीटर पानी खर्च होता है। अमृत सरोवर योजना से आय के वैकल्पिक साधन मिलने के साथ सिंचाई से जुड़ी चुनौतियों का भी समाधान होगा।
शून्य कार्बन उत्सर्जन में सहायक अमृत सरोवर
स्थायी समिति ने दस साल पहले उठाया था सवाल
ऐसा नहीं है कि जल संकट के समाधान के विकल्पों पर इससे पहले विचार नहीं किया गया। 12 नवंबर 2012 को लोकसभा में जल निकायों के सुधार, पुनरोद्धार और संरक्षण की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में परंपरागत जल निकायों के नष्ट होने पर चिंता जाहिर करते हुए समाधान भी बताए गए थे। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया था कि देश में कितने जल निकाय हैं, इसकी जानकारी न होना जल संरक्षण के प्रति गंभीर उदासीनता है। स्थायी समिति ने इस बात को माना कि जल निकायों के नष्ट होने की बड़ी वजह उसमें फेंका जाने वाला कृषि, औद्योगिक अवशेष है। कई जगहों पर खनन गतिविधियों से तालाब और जल संरचनाएं खत्म होती चली गर्इं। हालांकि इस रिपोर्ट को तत्कालीन सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।
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