देश के जाने—माने पत्रकार सतीश पेडणेकर का आज निधन हो गया। वे लगभग 70 वर्ष के थे। सतीश जी ने 70 के दशक में पाञ्चजन्य में कार्य किया था। इसके बाद वे जनसत्ता से जुड़े। उन्होंने जनसत्ता के दिल्ली और मुंबई संस्करण में लंबे समय तक कार्य किया। जनसत्ता से ही वे सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद भी वे लेखन और पठन में व्यस्त रहते थे। सतीश जी कुछ समय से अस्वस्थ रहते थे। इसके बावजूद वे लेखन कार्य में व्यस्त रहते थे।
पाञ्चजन्य के लिए वे कुछ समय पूर्व तक लिखते रहे। अभी कुछ वर्ष पहले ही पाञ्चजन्य ने महाराणा प्रताप और मुंशी प्रेमचंद पर विशेष अंक प्रकाशित किए थे। इन दोनों अंकों के लिए उन्होंने कई महीने दिन—रात काम किया। लेखकों से संपर्क कर उनसे लेख मंगाना, उन लेखों का संपादन करना, पेज बनवाना आदि कार्यों को उन्होंने बहुत ही कुशलता से किया।
कुछ समय पहले ही उन्होंने जिहाद पर एक पुस्तक भी लिखी थी। उस पुस्तक के कारण जिहाद पर नए सिरे से बहस शुरू हुई थी। स्वभाव के निश्छल, सबके संपर्क में रहने वाले और सबके सुख—दुख में सम्मिलित होने वाले सतीश जी का व्यवहार मित्रवत था। न सिर्फ पत्रकारों के परिकर में, अपितु सामान्य समाज में भी सतीश जी की मुस्कुराती छवि दिखाई देती रहती थी। सतीश जी में शोध और अनुसंधान की ऐसी ललक थी कि जिस विषय पर लिखने बैठते थे, उस पर गहन अध्ययन और मंथन करके ही कलम चलाते थे। विषयों पर सतही स्तर पर नहीं, उसकी गहराई तक जाकर उसे विस्तार देते थे। यही कारण है कि सिर्फ जनसत्ता में ही नहीं, तो देश के अन्य जाने—माने पत्र—पत्रिकाओं में भी छपे उनके लेख लोगों की वाहवाही लूटते थे।
सतीश जी पत्रकार संगठनों में भी सक्रिय रहते थे और जहां कहीं भी पत्रकारों के हित की बात होती थी वहां उसमें अपना भरपूर योगदान देते थे। सतीश जी अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी और युवा पुत्र को छोड़ गए हैं।
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