उज्जैन के नागझिरी ग्राम के सातवीं पास गोपाल डोडिया ने 27 वर्षों में अकेले दम इलाके में 7 तालाब बना डाले। इसके साथ ही 100 से अधिक किस्मों के लगभग डेढ़ हजार पेड़ लगा कर क्षेत्र में जल संवर्धन और पर्यावरण संरक्षण के रोल मॉडल बन गए
उज्जैन जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर बड़नगर तहसील में ग्राम नागझिरी, पोस्ट मौलाना के 64 वर्षीय गोपाल डोडिया क्षेत्र में जल संवर्द्धन और पर्यावरण संरक्षण कार्य के रोल मॉडल बन गए हैं। विगत 27 वर्षों से वे अकेले दम पर 7 बड़े तालाब बना चुके हैं। मात्र कक्षा सात तक शिक्षा प्राप्त डोडिया का व्यावहारिक ज्ञान ही है कि 1995 में क्षेत्र में बहने वाले नाले के जलभरण क्षेत्र से आने वाले अतिशेष पानी को इन्होंने तालाब में लाने के पहले एक गड्ढे में पहुंचाया। प्राकृतिक फिल्टर का कार्य करने वाला यह गड्ढा ओवरफ्लो होता है तो पानी तालाब में पहुंचता है। इससे मिट्टी और अन्य गंदगी तालाब में नहीं पहुंच पाती। जब यह तालाब पूरी तरह भर जाता है तो इससे पानी अगले तालाब में पहुंच जाता है।
डोडिया ने करीब 27 वर्ष पूर्व गांव के हनुमान मन्दिर में प्याऊ बनवाने के विचार से कुछ लोगों को साथ लिया और फिर सोचा कि मनुष्य के साथ-साथ जानवरों की प्यास बुझाने का भी जतन करना चाहिए तो इन्होंने एक तालाब बनाने की ठानी। तकनीकी विशेषज्ञ की तरह इन्होंने पशुओं के लिए भी साफ पानी की उपलब्धता के लिए एक फिल्टर टैंक बनवाया। नलकूप से रोज ताजा पानी इस टैंक में आता है और पाइपलाइन के जरिए तालाब में पहुंचता है। तालाब का स्तर और इस टैंक का स्तर समान रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है कि तालाब में अतिशेष पानी होने पर दूसरी पाइप लाइन के जरिए पुन: इस टैंक में लौट आता है और यहां से अशुद्ध जल खेतों की ओर भेज दिया जाता है।
‘‘हमारी रुचि न सरकारी मदद में है और न ही चन्दे में।’’ डोडिया संपन्न कृषक भी नहीं हैं। मात्र 20 बीघा जमीन से वे अपने परिवार का भरण-पोषण भी करते हैं और तालाब निर्माण भी। डोडिया कहते हैं ‘‘जब समय होता है, तब श्रमदान करते हैं और जब पैसा होता है मुहिम को आगे बढ़ाते हैं।’’
डोडिया ने स्वयं के परिश्रम और संसाधनों से काम शुरू किया जिसमें ग्राम मौलाना के रहने वाले हीरालाल पाटीदार और कुछ अन्य ग्रामीणों का सहयोग मिला। ये किसी से आर्थिक सहयोग नहीं लेते और न ही तालाब निर्माण के लिए मजदूर लगाते हैं। स्वयं श्रमदान करते हैं और सहयोग का प्रस्ताव देने वालों को कहते हैं कि स्वयं आएं तथा श्रमदान करें। सिर्फ धनराशि देने को वे सहयोग नहीं मानते, इसलिए उसे स्वीकार भी नहीं करते। वे कहते हैं ‘‘हमारी रुचि न सरकारी मदद में है और न ही चन्दे में।’’ डोडिया संपन्न कृषक भी नहीं हैं। मात्र 20 बीघा जमीन से वे अपने परिवार का भरण-पोषण भी करते हैं और तालाब निर्माण भी। डोडिया कहते हैं ‘‘जब समय होता है, तब श्रमदान करते हैं और जब पैसा होता है मुहिम को आगे बढ़ाते हैं।’’
जल संकट की भयावहता को देख इन्होंने तालाब के साथ वृक्षारोपण की आवश्यकता भी महसूस की और इसका नतीजा है कि 100 से ज्यादा किस्म के करीब डेढ़ हजार पौधों को वे वृक्ष में तब्दील कर चुके हैं। इन वृक्षों में कदम्ब, कृष्णबड़, गूलर और फिश पाम के साथ-साथ बहुतायत में नीम और पीपल भी शामिल हैं। वृक्षारोपण और तालाब निर्माण में आई लागत के बारे में उनका स्पष्ट कहना है कि कोई हिसाब नहीं रखा क्योंकि उससे अनावश्यक तनाव भी हो सकता था। सरकारी मदद अथवा अनुदान बिल्कुल नहीं लिया। निजी धन ऐसे कार्य में लगाया जो उनका व्यक्तिगत कार्य नहीं है और उससे होने वाला लाभ भी समाज के लिए ही है।
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