गत दिनों जम्मू—कश्मीर में इस्लामी जिहादियों ने बिहार के श्रमिक दिलखुश ऋषि की गोली मार कर हत्या कर दी। हत्या से करीब 10 घंटे पहले दिलखुश ने अपनी मां से फोन पर कहा था कि सुबह 10,000 रु भेज देंगे, लेकिन जिहादियों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। जब पैसे की जगह उनका शव घर पहुंचा तो हर किसी की आंख से आंसू बह रहे थे। उल्लेखनीय है कि दिलखुश पूर्णिया जिले के जानकीनगर थाने के लादूगढ़ गांव के रहने वाले थे। उनकी उम्र अभी केवल 20 वर्ष थी। वे मां पूनम देवी और पिता नारायण ऋषि के इकलौते पुत्र थे, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण मजदूरी करने के लिए कश्मीर गए थे। वे बडगाम जिले के कुलगाम में एक ईंट भट्ठा में मजदूरी करते थे। कड़ी मेहनत कर दो पैसा कमाते थे। वे अपने लिए एक पैसा भी फालतू खर्च नहीं करते थे। कभी ठीक से खाया, नहीं भी खाया। पर अपने घर के लिए वे पैसा भेजते थे, ताकि उनके माता—पिता भूखे न रहें।
बता दें कि इस्लामी जिहादियों ने 1 जून को दिलखुश को उस समय गोली मारी दी, जब वे अपनी मां को पैसा भेजने के लिए बैंक जा रहे थे। बैंक पहुंचने से पहले ही उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया। दिलखुश के गांव वालों का कहना है कि उनकी हत्या केवल इसलिए कर दी गई कि वे हिंदू थे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिलकुश की हत्या को दुखद बताते हुए उनके परिजनों को 2,00,000 रु देने की घोषणा की है। बनमनखी के विधायक कृष्ण कुमार ऋषि ने भी दिलखुश ऋषि के परिजनों से मिलकर उन्हें सांत्वना दी और कहा कि दिलखुश की हत्या नहीं हुई है, बल्कि उन्होंने देश के लिए बलिदान दिया है। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। सुरक्षाकर्मी आतंकवादियों को चुन—चुनकर मारेंगे।
दिलखुश की हत्या पर वे लोग चुप हैं, जो एक झूठी खबर पर कहने लगते हैं कि देश में मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है, लोकतंत्र खतरे में है…। इन लोगों ने दिलखुश की हत्या पर इसलिए कुछ नहीं बोला कि वे हिंदू थे।
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