ज्ञानवापी मंदिर को लेकर काशी धर्म परिषद का आयोजन लमही के सुभाष भवन में हुआ। जिसमें संतों, महंतों, इतिहासकारों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हुए। संतों के सामने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ मृदुला जायसवाल ने पावर पॉइंट के माध्यम से काशी पर हुए मुस्लिम आक्रमण को प्रदर्शित किया। साक्ष्यों के माध्यम से यह बताया कि औरंगजेब ने 1669 में आदि विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसका साक्ष्य साकी मुस्तईद खान की पुस्तक मासिर–ए–आलमगीरी में मौजूद है।
बैठक की अध्यक्षता कर रहे पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर एवं काशी धर्म परिषद के अध्यक्ष महंत बालक दास महाराज ने कहा कि हिन्दू सनातन धर्म पर बहुत जुल्म ढहाए गये और बर्बरता पूर्वक मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाया गया। इतना बड़ा अपमान किया कि शिवलिंग के पास वजू करते रहे। ज्ञानवापी मंदिर परिसर में तत्काल नमाज को बंद किया जाए, हमें भी पूजा का अधिकार दिया जाये।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि अंग्रेज यात्री राल्फ फिच एवं पीटर मंडी ने आदि विश्वेश्वर के पूजा का उल्लेख किया है। फ्रांसीसी यात्री बर्नियर एवं टैवर्नियर ने 1665 ई० में आदि विश्वेश्वर की पूजा का वर्णन किया है। सभी प्रस्तुत साक्ष्यों से काशी के संत संतुष्ट हुए और ज्योतिर्लिंग के वहां होने की घोषणा की। दुनिया के सभी धर्म स्थलों की तरह काशी में भी पवित्रता का सिद्धांत लागू होना चाहिये।
बैठक में कई प्रस्ताव पारित किये गये। ज्ञानवापी मंदिर में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा, अर्चना, दर्शन का अधिकार हिन्दुओं को है। यह उनका मौलिक अधिकार है। इससे वंचित न किया जाये। तत्काल पूजा, दर्शन करने का अधिकार हिन्दुओं से दिया जाये।
काशी में पवित्रता का सिद्धांत लागू किया जाय। सबसे बातचीत कर आदि विश्वेश्वर नाथ की परिधि तय की जाये, जिसमें गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित किया जाये। आदि विश्वेश्वर नाथ के पवित्रतम ज्योतिर्लिंग से छेड़छाड़ करने वालों पर तत्काल मुकदमा दर्ज हो।
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