हम शरीर को खाना पचाने के काम से फुर्सत ही नहीं देते, इसलिए शरीर अपने विकारों को दूर करने पर ध्यान नहीं दे पाता। आजकल उपवास आधारित थेरैपी तेजी से लोकप्रिय हो रही है जिसमें शरीर को मौका दिया जाता है कि वह अपने को निरोगी रखने के उपाय खुद कर सके
शरीर के लिए सबसे अच्छी बात यही है कि वह स्वस्थ रहे, रोग से दूर रहे। अगर शरीर रोग से दूर रहेगा तो उपचार की जरूरत नहीं होगी। इस मामले में दुनिया भर में लगातार शोध हो रहे हैं और तरह-तरह के उपाय निकल रहे हैं। उनमें से एक है उपवास।
मनुष्य का शरीर अपने आप में एक अद्भुत मशीन है। हर मनुष्य का शरीर अपने आप में संपूर्ण है। वह अपने आप को जीवित रखने के लिए जरूरी ऊर्जा की व्यवस्था खुद करता है। तो भला ऐसा कैसे हो सकता है कि उसमें स्वयं को निरोग रखने की कोई व्यवस्था न हो? टूटी हड्डियों को नट-बोल्ट से जोड़ने की आधुनिक विधा को छोड़ दें तो आम तौर पर किसी हड्डी के टूटने पर क्या होता है? उसे सही जगह पर लाकर प्लास्टर कर दिया जाता है जिससे वहां की हड्डी खुद बढ़कर जुड़ जाती है। एलोपैथी में भी काफी कुछ इलाज इसी तरह से होता है जिसमें शरीर को अपने आप को निरोग करने का वातावरण देकर उसे अपना काम करने के लिए छोड़ दिया जाता है। जिन तरीकों से शरीर अपनी देखभाल खुद करता है, उनमें से एक है उपवास।
जापान के वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार
उपवास कितना कारगर हो सकता है, यह समझने के लिए कुछ साल पीछे चलना चाहिए। वर्ष 2016 के लिए चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार जापान के जीव विज्ञानी योशिनोरी ओसुमी को मिला। ओसुमी को ‘आटोफैगी’ प्रक्रिया की खोज का श्रेय जाता है। ‘आटोफैगी’ यूनानी शब्द है जो ‘आटो’ और ‘फागेन’, दो शब्दों के मेल से बना है। ‘आटो’ का अर्थ है ‘स्वयं’ और ‘फागेन’ का अर्थ है ‘खा जाना’। इस प्रक्रिया में शरीर अपने आप ही खराब कोशिकाओं को खत्म कर देता है। नोबेल पुरस्कार की घोषणा करते समय निर्णायकों ने ओसुमी के शोध के बारे में कहा था- ‘इस प्रक्रिया में कोशिकाएं खुद को खा लेती हैं और इस प्रक्रिया को बाधित करने से पार्किंसन एवं मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती हैं। अगर यह आटोफैगी प्रक्रिया सही तरह से न हो तो कैंसर और मस्तिष्क से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों के होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।’
शोध के अनुसार उपवास से ‘आटोफैगी’ की प्रक्रिया तेज होती है। उपवास के दौरान कोशिकाएं अपने लिए ऊर्जा की व्यवस्था प्रोटीन और अन्य कोशिकाओं को तोड़कर प्राप्त करती हैं। क्षतिग्रस्त और बीमार कोशिकाएं खत्म होती हैं, नई और स्वस्थ कोशिकाएं बनती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि 12 से 24 घंटे के उपवास से ‘आटोफैगी’ की प्रक्रिया शुरू करने में सहायता मिलती है।
जर्मनी में भी शोध से पुष्टि
जर्मनी के दो प्रतिष्ठित संस्थानों डीजेडएनई और हेल्महोल्ज सेंटर ने उपवास से शरीर पर पड़ने वाले असर पर शोध किया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने चूहों के दो समूह बनाए। उनमें से एक को उपवास कराया और दूसरे को सामान्य तरीके से खाने-पीने दिया। जिन चूहों पर उपवास का प्रयोग किया गया, उन्हें एक दिन भोजन दिया गया और दूसरे दिन केवल पानी। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन चूहों ने उपवास रखा, वे दूसरे समूह के मुकाबले पांच फीसदी ज्यादा समय तक जिये।
— ब्रजभाषा की कहावत
आंखों के लिए त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आंवला)
दांतों के लिए नमक, और ठूंस-ठूंस कर खाने की बजाय पेट का
एक हिस्सा खाली रखना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
इनसानों की तरह चूहों में भी मौत का बड़ा कारण कैंसर है और वैज्ञानिकों ने कैंसर पर उपवास का कोई असर पड़ता है या नहीं, यह जानने के लिए भी चूहों के दो समूह बनाए। एक को उपवास कराया और दूसरे को नहीं। इस शोध में पता चला कि जिन चूहों को उपवास कराया गया, उनमें कैंसर कोशिकाओं के बढ़ने की गति सामान्य तरीके से भोजन करने वाले चूहों की तुलना में कम थी। उपवास करने वाले कैंसर पीड़ित चूहे 908 दिन जीवित रहे जबकि लगातार खाने वाले 806 दिन।
इससे एक बात साफ होती है कि भारतीय संस्कृति में जो उपवास की परंपरा रही है, वह पूरी तरह वैज्ञानिक है। हमारे पास अपने शरीर की बेहतर देखभाल का ज्ञान सदियों पहले से था और हमारे ऋषि-मुनियों को अपने शरीर को साधने में महारत हासिल थी। आम लोग भी उस ज्ञान का लाभ समान रूप से उठाएं और एक स्वस्थ जीवन का आनंद उठाएं, इसके लिए उपवास को विभिन्न अनुष्ठानों के साथ जोड़ दिया गया।
उपवास के तरीके
आज उपवास के आधार पर शरीर को स्वस्थ रखने की जो थेरैपी लोकप्रिय हो रही है, उसके मूल में यह भाव है कि शरीर में खुद को स्वस्थ रखने की क्षमता है लेकिन इनसान शरीर के पूरे तंत्र को खाना पचाने के काम में ही व्यस्त रखता है जिसके कारण उसे अपने विकारों को दूर करने का मौका नहीं मिलता। कहने का मतलब यह कि शरीर के तंत्रों को कुछ देर के लिए खाली छोड़ें जिससे वह खाना पचाने के अलावा भी कुछ कर सके। और शरीर को फुर्सत के क्षण देने का तरीका है उपवास। उपवास के कई तरीके बताए जाते हैं।
पहला तो यह है कि आप रोजाना ही 24 घंटे में से 14-16 घंटे का उपवास रखें। सुनने में यह काम मुश्किल लगता है, लेकिन उतना मुश्किल है नहीं। इसके लिए केवल यह करना है कि रात का भोजन जल्दी से जल्दी कर लें। विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर अपनी रूटीन में थोड़ा अंतर लाकर रात का भोजन शाम 7 बजे के आसपास कर लें तो काम काफी आसान हो सकता है। क्योंकि रात तो सोने में गुजर जाएगी और उसके बाद अगर सुबह का नाश्ता 9 बजे करें तो 14 घंटे का उपवास तो ऐसे ही हो गया। उसे थोड़ा और अभ्यास करके बड़े आराम से 16 घंटे तक लाया जा सकता है। हां, विशेषज्ञों का कहना है कि सुबह जब पहला आहार लें तो वह द्रव हो। फिर थोड़ा ठहरकर अन्न लें।
उपवास के दौरान शरीर बीमार कोशिकाओं को खत्म करने की प्रक्रिया तेज कर देता है और इसके साथ ही रोग फैला रही कोशिकाओं के बढ़ने की रफ्तार को भी कम कर देता है। शोध के दौरान पाया गया कि जिन चूहों को उपवास कराया गया, वे सामान्य तरीके से खाना खाने वाले चूहों से ज्यादा दिन जिए
दूसरा तरीका है दिन भर के उपवास का। जिनके लिए रोज का उपवास संभव न हो, वे अपनी सुविधा से कुछ-कुछ अंतराल पर पूरे दिन का उपवास कर सकते हैं। जिस तरह दुनिया भर में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं विकराल होती जा रही हैं, उसमें शरीर को रोगों से दूर रखने की जरूरत चारों ओर महसूस की जा रही है। एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि स्वास्थ्य सेवाएं दिन-प्रतिदिन जिस तरह महंगी होती जा रही हैं, उनमें अच्छा तो यही है कि जहां तक संभव हो शरीर निरोग रहे। आज दुनिया के ज्यादातर देश मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं और मोटापे को प्राकृतिक तरीके से कम करने का सबसे आसान रास्ता है खान-पान को नियंत्रित करना। मोटापे को बढ़ाने वाली चीजों से निषेध करना। इस संदर्भ में उपवास काफी कारगर है। चलिए जो भी हो, देर से ही सही, यह तो समझ में आ रहा है कि उपवास की भारतीय परंपरा कोई पोंगापंथी नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर सौ प्रतिशत खरी स्वस्थ जीवन-शैली की कुंजी है।
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