कहा जाता है कि कानून के हाथ बहुत ही लंबे होते हैं, उससे कोई बच नहीं सकता। यह बात फिर एक बार साबित हुई है। इस कानून ने उन साधु यादव को सजा दिला दी है, जो अपने आपको कभी किसी कानून के दायरे में मानते ही नहीं थे। साधु यादव बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के अध्यक्ष लालू यादव के साले हैं। उनकी बहन राबड़ी देवी भी बिहार की मुख्यमंत्री रही हैं। इसलिए साधु जैसे ‘भाई’ को लगता था कि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है और इस सोच के साथ उन्होंने लालू—राबड़ी राज में ऐसा आतंक मचाया था कि बिहार में जंगल राज स्थापित हो गया।
अब उस जंगल राज के एक—एक व्यक्ति को सजा मिलने लगी है। पहले तो जागरूक जनता ने चुनाव में सजा दी और सत्ता से बाहर कर दिया। अब कानून ऐसे लोगों को सजा दिला रहा है। लालू यादव चारा घोटाले में सजा काट रहे हैं। इसके अलावा भी उन पर कई मुकदमे चल रहे हैं। उनमें भी उन्हें सजा मिल सकती है।
लालू के बाद इस परिवार के साधु यादव को सजा मिली है। बता दें कि 30 मई को पटना के एमपी—एमएलए कोर्ट ने पूर्व सांसद साधु यादव को तीन साल की सजा सुनाई है। उन्हें यह सजा 2001 की एक घटना के लिए दी गई है। उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने पटना स्थित संयुक्त परिवहन कार्यालय में गोली चलाकर डर पैदा करने की कोशिश की थी। यही नहीं, रंगदारी नहीं देने पर सरकारी अधिकारियों को मारा था, सरकारी काम में बाधा पहुंचाया था। उन पर लगे ये सारे आरोप सही साबित हुए और उन्हें सजा मिल गई। हालांकि उन्हें तुरंत जमानत भी मिल गई है। नियमानुसार तीन साल या उससे कम की सजा मिलने पर दोषी को जमानत तत्काल मिल जाती है। इस कारण साधु को अभी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, लेकिन इस सजा के बहुत मायने हैं।
उल्लेखनीय है कि 2001 में साधु यादव की बहन राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं। इससे पहले 1990 से लालू यादव मुख्यमंत्री थे। कुल मिलाकर लालू—राबड़ी ने 1990 से 2005 तक यानी 15 साल लगातार बिहार में राज किया। इस दौरान साधु यादव और उनके समर्थकों ने जमकर बदमाशी की थी। जब चाहे किसी से रंगदारी मांगी जाती थी। जो रंगदारी नहीं देता था, उनके साथ ये लोग मारपीट करते थे। हत्या, लूटपाट तो आम बात थी। किसी के घर पर कब्जा कर लेना, किसी के भूखंड पर जबरदस्ती घर बना लेना, जैसे अपराधों की तो कोई गिनती ही नहीं है। इस दौरान लालू—राबड़ी की कई बेटियों का विवाह भी हुआ। विवाह के लिए राजद के कार्यकर्ता पटना स्थित कारों के शोरूम से नई—नई गाड़ियां जबरन उठा लेते थे। लोगों का कहना है कि इसके पीछे साधु यादव ही थे। उनके इशारे पर ही कार्यकर्ता ऐसी हरकतें करते थे। चूंकि सरकार ही बहन और जीजा चला रहे थे। इसलिए ऐसी ज्यादातर घटनाओं के लिए एफआईआर भी दर्ज नहीं होती थी। इनकी बदमाशी से पीड़ित कारोबारी भी किसी झंझट में न पड़कर पटना से कारोबार समेट कर और किसी शहर में चले जाते थे।
लोग कहते हैं कि राजद के समर्थकों ने राजधानी पटना का भी बुरा हाल कर दिया था। राजद के कार्यकर्ता लूटपाट करने वालों को शरण देते थे। इसलिए शाम होते ही लोग अपने—अपने घरों में बंद हो जाते थे। पटना की सड़कें सूनी हो जाती थीं। 2005 से पहले यदि कोई रात की रेलगाड़ी से पटना पहुंचता था, तो वह स्टेशन से बाहर जाने की हिम्मत नहीं करता था।
यह स्थिति तब सुधरी जब 2005 में भाजपा और जदयू गठबंधन की सरकार बनी।
टिप्पणियाँ