फेफड़ों को ही नहीं, पर्यावरण को भी तबाह करती है तम्बाकू

तम्बाकू निषेध दिवस -31 मई पर विशेष

Published by
Sudhir Kumar Pandey

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तम्बाकू सेवन पर एक गंभीर चेतावनी जारी की है। उसके मुताबिक दुनियाभर में 110 करोड़ से ज्यादा लोग लोग बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा, जर्दा, व खैनी जैसे तम्बाकू जनित उत्पादों के सेवन के आदी हैं। तम्बाकू सेवन की इस हानिकारक लत की वजह से हर साल न केवल 80 लाख लोग जान गवां रहे हैं, वरन इससे पर्यावरण को भी गहरा नुकसान पहुंच रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और ‘एक्सपोज टोबैको’ द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट में बताया गया कि सिगरेट से हर साल 8 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में मिल रही है और सिगरेट के निर्माण में हर साल 2200 करोड़ लीटर पानी भी बर्बाद होता है। ‘टोबैको इन हिस्ट्री’ किताब के लेखक जॉर्डन गुडमैन कहते हैं कि मानव सभ्यता के इतिहास में स्वास्थ्य के लिए सबसे घातक उत्पादों में सिगरेट शामिल है। अमरीका के जेम्स बुकानन ड्यूक द्वारा सिगरेट के आविष्कार और उसे पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाने के फलस्वरूप 20वीं सदी में लगभग दस करोड़ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।

स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार चिंताजनक तथ्य यह है भारत दुनिया के सबसे बड़े तम्बाकू उत्पादक और उपभोक्ता देशों में एक है। भारत में तम्बाकू सेवन के कारण हर साल करीब 10 लाख लोगों की जान जाती है। यह रिपोर्ट इस मायने में भी कम गंभीर नहीं है कि अपना जीवन धुंए व गुटखे में बर्बाद करने वाले लोग न केवल अपने शरीर का नुकसान पहुंचा रहे बल्कि अपने आसपास के व्यसनमुक्त लोगों को भी रोगी बना रहे हैं। हालांकि ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार कोविड महामारी के दौरान देश में तम्बाकू सेवन की प्रवृति में कमी दर्ज की गयी है।

कई जानलेवा रोगों की प्रसारक है तम्बाकू

लखनऊ के मशहूर आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ. अजय दत्त शर्मा के अनुसार तम्बाकू के सेवन का सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। बीड़ी- सिगरेट पीने और तम्बाकू खाने वाले व्यक्ति को लगता है कि इसे खाने से उसे एक तरह की दिमागी शांति मिल रही है और वह धीरे-धीरे इसका आदी होता जाता है। ऐसे लोगों को जब तम्बाकू के जानलेवा खतरों का बोध होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। तम्बाकू के लती लोग पूरी तरह अपना मुंह नहीं खोल पाते। उनके मुंह के अन्दर दोनों ओर सफेद लाइन कैंसर का संकेत होती है। सिगरेट व तम्बाकू से मुख व फेफड़ों का कैंसर, दांत-मुंह से संबंधित बीमारियां, टीबी, दिल का रोग, निमोनिया, नपुंसकता, अस्थमा जैसे सांस के रोग तथा प्रजनन सम्बन्धी विकार होते हैं। इसकी लती महिलाओं को माहवारी से जुड़ी समस्याएं तथा गर्भ धारण में समस्या होती है।

मुगलकाल में भारत में आयी तम्बाकू
ऐसा माना जाता है कि भारत में तम्बाकू की शुरुआत मुगलकाल में हुई थी। 15वीं सदी में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में वर्नेल नाम का एक पुर्तगाली यात्री उनके दरबार में आया और उसने अकबर को एक तम्बाकू और एक चिलम भेंट की थी। बादशाह को उसका स्वाद बहुत पसंद आया। इसलिए बादशाह ने उस पुर्तगाली के जाने के पश्चात् भी उस शौक को जारी रखा। बादशाह को धुआं उड़ाते देख यह शौक धीरे-धीरे दरबारियों और आम जनता तक फैलता गया। जहांगीर के समय में तम्बाकू की खेती भी भारत में शुरू हो गयी थी। इसी तरह यह भी कहा जाता है अकबर के ही शासनकाल में एक राज कारीगर अब्दुल ने हुक्के का अविष्कार किया था। इस प्रकार भारत में हुक्के की शुरुआत भी मुगलकाल में हुई थी; जिसका दुष्प्रभाव देश आज तक भुगत रहा है।

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