फ्रांस में एक बार फिर से यह शोर मचने वाला है कि वहां पर मुस्लिम सुरक्षित नहीं हैं। एक बार फिर से आजादी ब्रिगेड फ्रांस का विरोध कर सकती है क्योंकि फ्रांस से एक ऐसा समाचार आया है, जो कहीं न कहीं उस गुलाम आजादी से जुड़ा है, जो बुर्के में कैद है।
फ्रांस में इस्लामिक स्विमिंग कॉस्टयूम, जो कुछ मुस्लिम औरतें पहना करती थीं, उसे प्रतिबंधित कर दिया गया है। हाल ही में फ्रांस के शहर ग्रेनोबल के मेयर एरिक पियोल ने हर प्रकार के स्विमिंग कॉस्टयूम की अनुमति दी थी। इन स्विमिंग कॉस्टयूम में बुर्किनी भी शामिल थी। बुर्किनी का अर्थ है केवल चेहरे और हाथ को छोड़कर पूरा शरीर ढका होने वाला कॉस्टयूम। जिसे पहनकर मुस्लिम लड़कियां तैराकी करती हैं। इसे लेकर वहां पर ही विवाद हो गया था और फ़्रांस के इंटीरियर मिनिस्टर ने कहा था कि वह ग्रेनोबल शहर में जो निर्णय लिया है, उसमें परिवर्तन करना चाहेंगे।
दरअसल ग्रेनोबल शहर के मेयर ने जो प्रस्ताव पारित करवाया था वह कहीं न कहीं “इस्लामिक अलगाववाद” के क़ानून का उल्लंघन था, जो फ्रांस की संसद ने पिछले वर्ष पारित किया था। और इसी कानून के अंतर्गत इस निर्णय को चुनौती दी जा सकती थी, क्योंकि इस निर्णय से फ्रांस के कड़े धर्मनिरपेक्ष नियमों पर प्रभाव पड़ने की आशंका थी। और अब न्यायालय द्वारा इस निर्णय पर रोक लगा दी गयी है। फ्रांस में बुर्किनी के आलोचक यह कहकर आलोचना करते हैं कि यह कट्टर इस्लाम के विस्तार का प्रतीक है और यह सेक्युलर नहीं है।
बुर्किनी को लेकर परेशान क्यों हैं फ़्रांस?
बुर्किनी के प्रयोग को लेकर फ्रांस पूरी तरह से निश्चित है कि यह इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ाता है, जबकि इसके प्रशंसकों का कहना है कि यह पहनने की आजादी है और इससे अधिक कुछ नहीं। इसके विरोध में एक तर्क सुरक्षा का भी है कि पूरे शरीर को ढकने पर पानी के भरने का भी खतरा होता है और वह कपड़े कहीं उलझ भी सकते हैं!
फ्रांस में बुर्के पर प्रतिबन्ध है
फ्रांस ऐसा पहला यूरोपीय देश है जहां बुर्के पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। अप्रैल 2011 में बुर्के पर प्रतिबंध को लेकर क़ानून आया था। इस कानून के अंतर्गत पूरी तरह से चेहरा ढकने पर प्रतिबन्ध है। इसे लेकर अब आजादी ब्रिगेड का यह कहना आरम्भ हो गया है कि आदेश महिलाओं को लेकर ही निकाले जाते हैं। अफगानिस्तान में औरतों को अपना चेहरा ढकना होता है, फ्रांस में बुर्किनी की अनुमति नहीं है, कुछ भारतीय स्कूलों में हिजाब पहनकर नहीं आ सकते, अमेरिका में अब औरतों का अधिकार अपनी कोख पर नहीं है। औरतों को ही हर कोई आदेश देता है! पितृसत्ता का ही नियम चलता है!
In Afghanistan, women have to cover their faces; in France burkinis not allowed, hijab banned in some Indian schools, in USA women no longer sovereign on their wombs. Women r still being dictated to .. patriarchy rules ok!
— Ameenah Gurib-Fakim (@aguribfakim) May 24, 2022
मजहबी पहचान के नाम पर हर बात में अलगाववाद ?
यहां पर यह भी तथ्य उल्लेखनीय है कि मजहबी पहचान के नाम पर क्या हर बात में अलगाववाद या अपनी एक ऐसी पहचान बनाना ही इनका लक्ष्य है जो देश के तानेबाने से अलग है? अफगानिस्तान में बुर्के को लेकर यह तर्क दिया जाता है कि चूंकि 99% लोग मुस्लिम हैं तो उन्हें ऐसी किसी भी बात से आपत्ति नहीं होनी चाहिए, जो इस्लाम के अनुकूल है। अर्थात जहां पर बहुमत इस्लामिक है वहां पर शेष लोगों के अधिकार या शेष लोगों की धार्मिक पहचान का कोई मोल नहीं है, और जहां पर बहुमत इस्लामिक नहीं है, वहां पर पृथक पहचान के नाम पर कभी बुर्किनी, कभी हिजाब तो कभी किसी और मुद्दे को लेकर हंगामा खड़ा किया जाता है। वही मानसिकता भारत में कर्नाटक में हिजाब को लेकर आन्दोलन कराती है, फ्रांस में बुर्किनी को लेकर आन्दोलन कराती है परन्तु अफगानिस्तान और पाकिस्तान में से हिन्दू, सिख और बौद्ध कहां गए, यह प्रश्न नहीं उठाती है!
सेक्युलर देशों में मजहबी नियम और मजहबी देशों में भी मजहबी नियम, यह कैसी जिद्द है इस समुदाय की? परन्तु दुःख की बात यह है कि लेफ्ट लिबरल भी व्हाइट सुप्रेमेसी के नाम पर इसी कट्टरपंथ का समर्थन करते हैं, जैसा पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है। हाल वाले निर्णय की भी इसी आधार पर आलोचना की जा रही है।
They still have White Supremacy & Islamophobia lol. There are too many acts of police brutality against Black and Muslim people in Europe for you to act like it's "just a U.S." thing. France even made laws against Muslim women wearing burkinis.Where do you think slavery started? pic.twitter.com/q62aYQGhMy
— Patrick Zweig deserves better (@rockinfabblue) May 27, 2022
बुर्किनी पर ग्रेनोबल शहर में फिर से प्रतिबंध पर एक बार फिर से मुस्लिम औरतों के पहनने के अधिकार को लेकर बहस आरम्भ होने की आशंका है!
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