बच्चों को कुपोषण मुक्त करने के लिए कर्नाटक सरकार अब मिड-डे-मील मेनू में अंडे रखेगी। इसके लिए केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। अगले शैक्षणिक सत्र में कर्नाटक के 7 जिलों के स्कूलों में मध्याह्न भोजन में बच्चों को अंडा भी परोसा जाएगा। एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह निर्णय लिया गया है। इस योजना का 16.06 लाख बच्चों को लाभ मिलेगा, जिस पर 44.94 करोड़ खर्च आएगा, लेकिन यह समझ से परे है कि सरकार उन बच्चों के लिए क्या करेगी जो शाकाहारी हैं या फिर जैन समुदाय से हैं।
जानकारी के अनुसार स्कूलों में बच्चों को अंडे परोसने का निर्णय मिड-डे-मील योजना के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में लिया गया है। इस योजना में 7 जिले- रायचूर, यादगीर, बीदर, कलबुर्गी, कोप्पल, बेल्लारी और विजयपुरा शामिल हैं। यहां 46 दिन तक 16.6 लाख बच्चों को मध्याह्न भोजन में एक अंडा दिया जाएगा। इसमें करीब 44.94 करोड़ का खर्च आएगा, जिसमें 60% केंद्र और 40% खर्च राज्य सरकार उठाएगी।
इस योजना की मंजूरी के लिए राज्य सरकार ने केंद्र को बताया था कि संबंधित जिले में सबसे अधिक सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए लोग रहते हैं। ज्यादातर परिवार के लोग अशिक्षित, बीमार और बेरोजगार हैं, जो बच्चों को जरूरत के अनुसार भोजन नहीं दे पा रहे हैं। इस वजह से उनके बच्चे एनीमिक और पाचन की कमी समेत कई बीमारियों से ग्रसित हैं और स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं। ऐसे हालात को देखते हुए केंद्र ने राज्य के अंडे परोसने की मंजूरी दे दी है। इसके अवाला कर्नाटक सरकार ‘क्षीर भाग्य योजना’ के तहत कक्षा 1 से 10 तक के बच्चों को दूध उपलब्ध कराएगी।
शाकाहारी बच्चों के लिए मुसीबत
समाज में आज भी ऐसे परिवार हैं, जो सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक रूप से भले ही पिछड़े हो, लेकिन शाकाहारी हैं। उनके यहां अंडे, मांस को खाना तो दूर, छूना भी पसंद नहीं किया जाता। इसके अलावा जैन समुदाय के बच्चे भी तो शाकाहारी होते हैं। ऐसे बच्चों के लिए सरकार का यह कदम मुसीबत बन जाएगा। मिड-डे-मील में अंडा शामिल होने से ये बच्चे स्कूल की रसोई का बाकी खाना और दूध नहीं पी पाएंगे। बता दें कि इसके पहले भी राज्य सरकार ने यह योजना शुरू की थी, जिस पर लिंगायत महासभा, राष्ट्रीय बसवा दल और जैन मठ जैसे प्रभावशाली संगठनों ने इसका विरोध किया था।
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