पाञ्चजन्य के मीडिया महामंथन कार्यक्रम के ‘कश्मीर फाइल्स के बाद का कश्मीर और आगे की संभावनाएं’ छठे सत्र में अतिथियों ने कश्मीर के एक ऐसे रूप पर बात की जो उसकी सत्तर वर्षों में गढ़ी गई छवि से इतर है। यह कश्मीर सनातन की जड़ वाला कश्मीर है, जहां शंकराचार्य ने तपस्या की, ऋषि पाणिनी ने व्याकरण की रचना की तो ऋषि पतंजलि ने जगत को आयुर्वेद की महिमा से परिचित कराया
कश्मीर को लेकर हम सबकी एक धारणा बन चुकी है कि वहां सिर्फ हत्या है, लोगों के हाथ में पत्थर है। पर्यटन के नाम पर लकड़ी की नाव शिकारा है और डल झील है। आम भारतीयों के लिए कश्मीर इतना सा ही है। 23 मार्च को पाञ्चजन्य-आॅर्गनाइजर के संयुक्त तत्वावधान में हुए मीडिया महामंथन 2022 के मंच पर एक नए कश्मीर पर बातचीत हुई। उस दिन जो लोग ‘कश्मीर फाइल्स के बाद का कश्मीर और आगे की संभावनाएं’ सत्र में मौजूद थे, उन्होंने एक नए कश्मीर के बारे में जाना और सुना। ऐसा नहीं है कि मंच से किसी नए कश्मीर की बात की जा रही थी, बात उसी कश्मीर की हो रही थी, जिस पर हम दशकों से बात कर रहे हैं लेकिन जो लोग कश्मीर पर बात कर रहे थे, उनके पास कश्मीर को लेकर नजरिया नया था। वे जिस कश्मीर की बात कर रहे थे, सुनने वालों के लिए वह कश्मीर नया था।
जब हम कश्मीर की बात करते हैं तो ऋषि पाणिनी और ऋषि पतंजलि की, अभिनव गुप्त और ललितादित्य की, उत्पला और स्वामी लक्ष्मणदेव की, गोपीनाथ वाप और कल्हण की चर्चा करना आवश्यक है।
— सुरिंदर अंबरदार, पूर्व एमएलसी, भाजपा
शंकराचार्य और सूर्य के मंदिर
उस दिन मंच पर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर के संचालन में जम्मू—कश्मीर—लद्दाख पर हुई इस बातचीत में भाजपा के पूर्व एमएलसी सुरिंदर अंबरदार और लोक गायिका मालिनी अवस्थी शामिल थीं। मालिनी अवस्थी कोई कश्मीर विषय की विशेषज्ञ नहीं हैं। वह तो सिर्फ उतना ही बता रहीं थीं, जो उन्होंने देखा है। मालिनी जी ने दर्शकों के सामने मानो एक नए कश्मीर की तस्वीर खींच दी हो। कश्मीर पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि पहले किसी ने बताया कि वहां शंकराचार्य का मंदिर है। इस मंदिर के संबंध में गूगल पर भी बहुत कम जानकारी मिलती है।
भारत डिस्कवरी नाम से एक वेबसाइट पर लिखा है, ‘शंकराचार्य के मंदिर को तख्त-ए सुलेमानी नाम से जाना जाता है’। मतलब कश्मीर में शंकराचार्य का मंदिर भी ‘सुलेमान का तख्त’ हो गया। यह मंदिर डल झील के पास है लेकिन वहां के स्थानीय गाइड झील पर आने वाले यात्रियों को बताते तक नहीं कि पास में ही शंकराचार्य पर्वत है, जहां जाकर आप शंकराचार्य मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यह मंदिर 371 ईसा पूर्व बना बताया जाता है। डोगरा शासक राजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनवाई थीं।
आज जो लोग अभिव्यक्ति की आजादी की बात कर रहे हैं, वही लोग कभी पाञ्चजन्य की आवाज को दबाने की कोशिश करते थे, लेकिन इसने कभी अपने कदम पीछे नहीं खींचे। पाञ्चजन्य ने राष्ट्रीय विचार को घर-घर तक पहुंचाया।
—मालिनी अवस्थी, प्रसिद्ध लोकगायिका
उन्होंने आगे कहा कि उसके बाद जब भी कश्मीर जाना हुआ, शंकराचार्य मंदिर जरूर गई। अब वह मंदिर छावनी में तब्दील हो गया है। वहां की तस्वीर नहीं ली जा सकती। मोबाइल नीचे ही रखवा लेते हैं। मालिनी जी ने कश्मीर आने वालों के लिए कहा— यहां आकर सबसे पहले शंकराचार्यजी के दरबार में मत्था टेकना चाहिए।
उन्होंने बताया कि एक बार जब वह पुलवामा गईं, उत्साह का कोई ठिकाना नहीं रहा था। पुलवामा की जैसी खबर समाचार माध्यमों में आती रही थी, उससे ऐसा लगता था कि वहां चारों तरफ नाउम्मीदी बिखरी होगी। लेकिन पुलवामा में उन्हें जहां ले जाया गया, वहां लड़कियों का एक कॉलेज था। 3000 लड़कियों का डिग्री कॉलेज, जहां लड़कियां रोज पढ़ने आती थीं। इनमें हिजाब पहन कर न आने वाली लड़कियों की संख्या अधिक थी। ये लड़कियां प्रतिदिन स्कूल आती थीं। पुलवामा की खबर पढ़-सुनकर हमें लगता होगा कि वहां शायद कोई घर से बाहर निकलता भी नहीं होगा। वहां ऐसी स्थिति नहीं है।
उन्होंने बताया कि यात्रा के दौरान एक अधिकारी मिले जिनसे उनकी बात होने लगी। मालिनी जी ने पूछा कि यहां एक सूर्य मंदिर है, वह यहां से कितनी दूर होगा? उन्होंने बताया कि डेढ़ घंटे की दूरी पर है। आप जाना चाहेंगी? उन्होंने थोड़ी सावधानी बरतने की हिदायत भी दी। जब मार्तण्ड सूर्य मंदिर जाने का कार्यक्रम बना, उन्होंने ही सुरक्षा के लिए दो गाड़ियों की व्यवस्था कर दी। मंदिर पहुंच कर लगा कि इस मंदिर को देखे बिना, कश्मीर की यात्रा पूरी नहीं होती। कश्मीर जाने वाले लोगों को भी समझना होगा कि कश्मीर का मतलब सिर्फ डल झील नहीं है।
सनातन की गहरी छाप
सुरिंदर अंबरदार ने 2014 के पहले के कश्मीर के जिक्र से अपनी बात शुरू की जब देश का छद्म सेकुलर इकोसिस्टम विशेष रूप से ऐसा माहौल बनाने लगा था कि कश्मीर को एक अलग देश होना चाहिए। कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। एक तरफ ये सारी बातें चल ही रही थीं तो दूसरी तरफ 5 अगस्त 2019 को एक मास्टर स्ट्रोक के साथ हमारे देश के गृह मंत्री अमित शाहजी राज्यसभा में अनुच्छेद 370 की विवादास्पद धाराओं और 35 ए को खत्म करने का प्रस्ताव लाते हैं। वह दिन भारत के संवैधानिक इतिहास में एक स्वर्णिम दिन है।
सुरिंदरजी ने कहा कि जब हम कश्मीर की बात करेंगे तो ऋषि पाणिनी की चर्चा करना आवश्यक है। ऋषि पतंजलि की चर्चा करना आवश्यक है। अभिनव गुप्त और ललितादित्य की चर्चा करना आवश्यक है। उत्पला और स्वामी लक्ष्मणदेव की चर्चा करना आवश्यक है। गोपीनाथ वाप और कल्हण की चर्चा करना आवश्यक है। इसके साथ ही चौदहवीं सदी की भक्त कवियित्री, जो कश्मीर की शैव भक्ति परम्परा और कश्मीरी भाषा की एक अनमोल कड़ी थी, संत लल्लेश्वरी का नाम कैसे छोड़ा जा सकता है!
सुरिंदरजी ने सुलेमान और शंकराचार्य पर्वत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये दोनों ही नाम सही नहीं हैं। वास्तव में शंकराचार्य मंदिर का रास्ता जिस पर्वत से होकर जाता है, वह पर्वत रुद्रबाला है। रुद्रबाला पर शंकराचार्यजी ने तपस्या की है। ज्येष्ठा माता में संत लल्लेश्वरी ने तपस्या की है।
कश्मीर को देखने-समझने और बूझने के लिए इस चर्चा ने एक नई दृष्टि दी। कश्मीर सिर्फ आतंकवाद और झीलों तक सीमित नहीं है। वहां सनातन परंपरा की गहरी छाप है जिसे लंबे समय से मिटाने की कोशिश की जा रही है। यदि आज हम जाग रहे हैं तो भी बहुत देर नहीं हुई है। कश्मीर में अपने मंदिरों और पूजा स्थलों को पहले की तरह फिर से रोशन करने की जरूरत है। अब हमें कश्मीर की यात्रा सिर्फ झीलों के लिए नहीं, बल्कि अपने मंदिरों के लिए भी करनी चाहिए।
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