शहरों की हवा दिनोंदिन जहरीली होती जा रही है। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नियामक निकायों के प्रयासों के बावजूद देश में प्रदूषण अभी भी हानिककारक स्तर पर बना हुआ है। हर साल लाखों लोग अकाल मौत मर रहे हैं। वायु प्रदूषण रोकना सरकार की ही नहीं, यह हम सब की भी जिम्मेदारी
जब वायु के अवयवों में किसी भी प्रकार का बदलाव होता है, तो इसे वायु प्रदूषण कहते हैं। इसका पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। दरअसल, स्वच्छ हवा कई गैसों का मिश्रण है। ये गैसें निश्चित हवा मे अनुपात में मौजूद होती हैं, जिनमें नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बन डाइआक्साइड, आर्गन और बहुत कम मात्रा में ग्रीनहाउस गैस भी शामिल हैं। वायु प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम-1981 के अनुसार, वायु प्रदूषण को वातावरण में किसी भी ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ की उपस्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है, जो मनुष्य, अन्य जीवों, पेड-पौधों, संपत्ति या पर्यावरण के लिए हानिकारक है या हो सकता है। वायु गुणवत्ता सूचकांक के आकलन के अनुसार, 2019 में दुनिया के शीर्ष दस सर्वाधिक प्रदूषण करने वाले शहरों में से 6 भारत से थे।
प्रदूषण फैलाने वाले कारक
भारत की वायु गुणवत्ता पर हाल की रपटों से पता चलता है कि प्रदूषण का स्तर सालाना बढ़ रहा है और वायु गुणवत्ता सूचकांक गिर रहा है। यदि तत्काल कोई कदम नहीं उठाया गया तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नियामक निकायों के प्रयासों के बावजूद देश में प्रदूषण अभी भी हानिककारक स्तर पर बना हुआ है। लैंसेट आयोग की 2017 की रपट के अनुसार, वायु प्रदूषण (धूल और धुएं के रूप में हवा में तैरते सूक्ष्म पदार्थ (पीएम), ओजोन और कुछ अन्य गैसों) के कारण भारत में समय से पहले ही 25 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इनमें अधिकांश स्वास्थ्य संबंधी खतरों का कारण हवा में तैरते धूल और धुएं को माना गया। वर्तमान में देश के शहरों में जगह और समय के हिसाब से मापे गए वायु प्रदूषण के विभिन्न स्तर चिंताजनक स्थिति को दर्शाते हैं।
जलवायु के लिए प्रतिबद्धता दिखाते हुए पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में अपना योगदान कम करने के लिए अपना-अपना राष्ट्रीय स्तर निर्धारित किया है, फिर भी ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की उम्मीद है
वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोतों में धूल, ज्वालामुखी विस्फोट, जंगल की आग, जबकि निश्चित स्रोतों में मानव जनित गतिविधियां शामिल हैं, जैसे- औद्योगिक उत्सर्जन, गाड़ियां, जहाज, विमान आदि से निकला धुआं, कचरा निपटान स्थल, खुले में कचरा जलाना आदि। वायु प्रदूषक प्राकृतिक या कृत्रिम स्रोतों से पैदा हो सकते हैं।
सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, सीसा, अमोनिया आदि मुख्य प्रदूषक हैं, जो किसी भी स्रोत से सीधे वायुमंडल में उत्सर्जित होते हैं, जबकि गौण समूह वाले प्रदूषक मुख्य वायु प्रदूषकों व सामान्य वायुमंडलीय तत्वों, जैसे- ओजोन, धुंध, पैन यानी पेरोक्सीएसीटाइल नाइट्रेट आदि के बीच प्रतिक्रिया से उत्पन्न होते हैं। वहीं, कार्बनिक वायु प्रदूषकों में हाइड्रोकार्बन, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, कीटोन, एल्डिहाइड आदि तथा अकार्बनिक वायु प्रदूषकों को अमोनिया, नाइट्रेट, सल्फेट आदि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
गैसीय वायु प्रदूषक ओजोन, कार्बन मोनोक्साइइड, सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड आदि व हवा में तैरते धूल-कण पीएम10 या 10 माइक्रॉन से कम व्यास वाले मोटे कण, पीएम2.5 या 2.5 माइक्रॉन से कम व्यास वाले छोटे कण आदि, दोनों को उनकी स्थिति के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन डाइआक्साइड, पीएम 2.5, निकेल, ओजोन, सीसा, कार्बन मोनोक्साइड, अमोनिया, बेंजीन, बेंजो(ए) पाइरीन और आर्सेनिक, ऐसे 12 प्रदूषक हैं, जिनके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मानक तय किए हैं।
स्वास्थ्य पर असर
एक व्यक्ति जीवित रहने के लिए औसतन 8,000 लीटर वायु अंदर एवं बाहर करता है। ऐसे में वायु में मौजूद प्रदूषक तत्व सांस के जरिये शरीर में पहुंच जाते हैं, जिससे कई तरह के गंभीर रोग होते हैं। पीएम 2.5 सांस के जरिये श्वसन तंत्र में प्रवेश कर सांस संबंधी रोग, हृदय रोग के अलावा प्रजनन क्षमता पर असर डालता है और जन्म दोष, नर्वस सिस्टम को भी नुकसान पहुंचाता है। सांस के साथ हवा में मौजूद धूल-कण रक्त प्लाज्मा में नहीं घुलती है। यह हीमोग्लोबिन के साथ मिल कर पूरे शरीर में घूमती रहती है। बड़े कण तो नासिका द्वार पर ही रुक जाते हैं, लेकिन सूक्ष्म कण फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। वहां से वे शरीर के दूसरे हिस्सों में जाकर रोग पैदा करते हैं। प्रदूषित वायु से सांस संबंधी बीमारियां जैसे- ब्रोंकाटिस, बिलिनोसिस, गले का दर्द, निमोनिया, फेफड़ों का कैंसर आदि हो सकती हैं। इसके अलावा, हवा में सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन डाइआक्साइड की अधिकता होने पर कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह जैसी बीमारियां होती हैं।
अमेरिकी महानगरीय क्षेत्रों में घर से बाहर के वातावरण में मौजूद प्रदूषण को मॉनिटर करके प्रदूषण और मृत्यु दर के बीच संबंध की पहचान की गई।
इस सर्वेक्षण में अन्य मामलों की तुलना में पाया गया कि सल्फेट के सूक्ष्म कण जो सांस के जरिए श्वसन प्रणाली में पहुंच जाते हैं, लोगों की समय के पहले मौत का कारण बने। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ-2019 के लेख के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से 16.7 लाख मौतें हुर्इं। यह कुल मौतों का 17.8 प्रतिशत थी। इनमें से अधिकांश मौतें पर्यावरण (9.8 लाख) और घर (6.1 लाख) में वायु प्रदूषण के कारण हुईं। 1990-2019 से घरेलू वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में 64.2 की गिरावट आई, जबकि परिवेशी पीएम प्रदूषण के कारण मृत्यु दर 115.3 प्रतिशत और परिवेशी ओजोन प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में 139.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले हुई मृत्यु और बीमारी से होने वाली आर्थिक हानि 2019 में क्रमश: 28.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 8.0 बिलियन डॉलर थी।
जलवायु पर प्रभाव
ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर के परिणामस्वरूप गर्मी की तीव्रता बढ़ जाती है, क्योंकि ये पृथ्वी के वातावरण में चादर जैसी एक परत बना देते हैं और सूरज से आने वाली गर्मी को कैद कर लेते हैं। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है। पर्यावरण प्रभाव आकलन-2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की ऊर्जा प्रणाली पर कोयला हावी है। 2015 में बिजली उत्पादन का तीन चौथाई हिस्सा और औद्योगिक क्षेत्र में बिजली के कुल उपयोग का 37 प्रतिशत कोयले से ही उत्पादित हुआ। ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइआक्साइड महत्पूर्ण गैस है, जिसके स्तर में पूर्व औद्योगिक समय के मुकाबले 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सतत विकास लक्ष्यों के माध्यम से वायु गुणवत्ता (एक्यू) और ऊर्जा के सही इस्तेमाल पर केंद्रित नीतियां ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के उद्देश्य के साथ जलवायु के बेहतर होने से मानव समुदाय को मिलने वाले लाभों से जुड़ी हैं। जलवायु के लिए प्रतिबद्धता दिखाते हुए पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में अपना योगदान कम करने के लिए अपना-अपना राष्ट्रीय स्तर निर्धारित किया है, फिर भी ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की उम्मीद है।
सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की सहायता के लिए आईआईटी और अन्य संस्थानों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क विकसित किया है, जिसका उद्देश्य अगले 5 साल में वायु प्रदूषण 20-30 प्रतिशत तक कम करना है
वायुमंडल में मौजूद ओजोन परत हमारे लिए कवच का काम करता है। यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को रोकता है। यदि ओजोन परत न हो तो सूर्य की हानिकारक किरणें त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद के साथ जल, जीव और फसलों पर भी दुष्प्रभाव डालती हैं। ओजोन परत को सबसे अधिक नुकसान क्लोरोफ्लोरो कार्बन पहुंचाता है, जिसका इस्तेमाल रेफ्रिजरेंट के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा में लगातार वृद्धि से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार, बीते 50 वर्ष में पृथ्वी का औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। यदि यह वृद्धि 3.6 डिग्री से अधिक हुई तो आर्कटिक व अंटार्कटिक के विशाल हिमखंड पिघल जाएंगे। इससे समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा।
वायु प्रदूषण का स्थानीय मौसम पर भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इनसे बादलों, तापमान एवं वर्षा चक्र भी प्रभावित होता है। हवा में जब नाइट्रिक अम्ल और सल्फ्यूरिक अम्ल की मात्रा अधिक हो जाती है तो अम्लीय वर्षा होती है जो धरती पर पानी और मिट्टी में मिल जाती है। वहीं, जल स्रोतों में पोषक तत्वों का संचय विशेष रूप से नाइट्रोजन, वायु प्रदूषण का एक आम परिणाम है। जलाशयों में पोषक तत्वों के बढ़ने से शैवाल की पैदावार बढ़ने लगती है, जिससे आक्सीजन और जीवन की हानि हो सकती है। वातावरण में ओजोन की बढ़ी हुई मात्रा के कारण फसल उत्पादन में 25 प्रतिशत की कमी आई है।
सरकार के प्रयास
सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की सहायता के लिए आईआईटी और अन्य संस्थानों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क विकसित किया है, जिसका उद्देश्य अगले 5 साल में वायु प्रदूषण 20-30 प्रतिशत तक कम करना है। वायु गुणवत्ता बेहतर करने के लिए एनसीएपी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत वित्त पोषण और सूचना के आदान-प्रदान के सुचारू संचालन के लिए प्रमुख संस्थानों के एक समूह के तौर पर राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (एनकेएन) का भी गठन किया गया है। करीब 130 बहुत अधिक प्रदूषित शहरों में एनकेएन ने विशेषज्ञों को भागीदार बनाया है जो वायु प्रदूषण कम करने में शहरी स्थानीय निकायों की मदद करेंगे। प्रतिष्ठित संस्थानों को नॉलेज पार्टनर संस्थानों के समूह में शामिल किया गया है जो मुख्य रूप से इन शहरों में स्वच्छ वायु परियोजनाओं के लिए तकनीकी और वैज्ञानिक सहायता प्रदान करते हैं।
इस तरह, एनकेएन को एमओईएफसीसी, सीपीसीबी, एसपीसीबी, यूएलबी और आईओआर से मिलने वाले इनपुट को ध्यान में रखते हुए तकनीकी और वैज्ञानिक सिफारिशों को विकसित करने का काम सौंपा गया है। एनकेएन ने विश्व बैंक के सहयोग से 7 फरवरी से 12 मार्च, 2022 तक एक राष्ट्रव्यापी आनलाइन क्षमता निर्माण कार्यक्रम सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम आईआईटी कानपुर, आईआईटी रुड़की, आईआईटी मद्रास, एनईईआरआई और आई-फॉरेस्ट ने मिलकर काम किया और पाठ्यक्रम पेश किए, जिसने 400 से अधिक वायु गुणवत्ता पर काम कर रहे पेशेवरों को आकर्षित किया।
हम क्या कर सकते हैं!
हमें जीवाश्म ईधन पर अपनी निर्भरता कम कर नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ानी होगी। सौर, पवन और हाइड्रो थर्मल ऊर्जा से हमारी नवीकरणीय ऊर्जा का एक बड़ा कोष तैयार हो सकता है। प्रदूषण और कोविड-19 के बीच संबंधों पर हाल के शोध ने पर्यावरण की गुणवत्ता पर वायु प्रदूषकों के नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंताओं को बढ़ा दिया है। वैश्विक पर्यावरण में आ रही गिरावट निस्संदेह एक बहुआयामी वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बन चुका है। जीवाश्म ईधन को बदलने की आवश्यकता पर वैज्ञानिकों के ध्यान के बावजूद, प्रगति धीमी रही है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले प्रदूषण की कोई सीमा नहीं है। यह वायुमंडल में प्रवेश करता है, वायुमंडल में ही प्रसारित होता है और उत्सर्जित होने के बाद 50-200 वर्ष तक सूरज की गर्मी को कैद करके रखता है। इसलिए हमें अब ग्लोबल वार्मिंग को कम करना होगा, क्योंकि इसके घातक परिणाम हमारी पीढ़ियों को वर्षों तक महसूस होंगे। शहर के परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक पब्लिक ट्रांजिट वाहनों को जोड़ने से प्रदूषण कम होगा। एक निश्चित वर्ष अंतराल के बाद सभी जीवाश्म ईधन पर चलने वाले इंजन कारों को बीएस6 उत्सर्जन मानदंड की शर्त पूरी करनी होगी। बिजली से चलने वाले निजी आटोमोटिव बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने और उसे समय पर पूरा करने पर बल देना होगा। किसानों को हैप्पी सीडर प्रदान करना होगा, जिससे वे अपने कृषि कचरे से उर्वरक तैयार करने की आदत बनाएं।
सबसे जरूरी है कि डेटा की उपलब्धता बढ़ाई जाए ताकि लोगों को वास्तविक समय संबंधी डेटा मिल सके और वे बाहरी गतिविधियों व आंतरिक प्रदूषण फिल्टरिंग के बारे में रोजाना ध्यान रख सकें। प्रदूषण को लेकर लोगों को जागरूक बनाने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों की पहचान करनी होगी। प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करके नए नागरिक विज्ञान कार्यक्रम बनाकर और वायु प्रदूषण के क्षेत्र में बड़े और नए शोधों की राह तैयार करनी होगी। सख्त नीतियां बनानी होंगी और प्रदूषण बढ़ाने वाले उद्योगों के खिलाफ सख्त कानून लागू करना होगा और प्रदूषण को कम करने के लिए दीर्घकालिक समाधानों पर अमल करना होगा।
(लेखक आईआईटी कानपुर में प्राध्यापक हैं)
टिप्पणियाँ