भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति के मुहाने पर खड़ा है। 2030 तक कुल ऊर्जा का 40 प्रतिशत हरित ऊर्जा से उत्पन्न करने का लक्ष्य है। इसके लिए सरकार ने विश्व का सबसे बड़ा नवीकरणीय क्षमता विस्तार कार्यक्रम शुरू किया
देश के दूसरे हिस्सों की तरह हरियाणा में भी इन दिनों प्रचंड गर्मी पड़ रही है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, वैसे-वैसे बिजली की खपत भी बढ़ रही है। मांग और आपूर्ति के बीच अंतर के कारण बिजली की आंख मिचौली भी जारी है। लेकिन भिवानी जिले के तोशाम गांव में रहने वाले अमरजीत बिजली की आवाजाही से चिंतित नहीं हैं, न ही सूरज की भभकती किरणों से परेशान हैं। अलबत्ता वे खुश हैं कि सूरज के प्रचंड रूप से उन्हें बिजली मिल रही है, जिससे वे अपने खेतों को सींच रहे हैं। इस पर लागत भी बहुत कम आ रही है। उन्हें देखकर गांव के दूसरे किसान जो अब तक बिजली और डीजल फूंक कर खेतों को सींच रहे थे, वे भी अब सोलर पंप लगवा रहे हैं, ताकि फसलों को समय पर पानी मिलता रहे।
हरियाणा के सोनीपत के आर.एस. राणा के पास 10 एकड़ जमीन है। सिंचाई के लिए पहले वे डीजल पंप का प्रयोग करते थे। इससे एक एकड़ खेत को सींचने पर कम से कम 1,000 रुपये का खर्च आता था। यानी 10 एकड़ खेतों की सिंचाई पर वे एक बार में ही कम से कम 10,000 रुपये खर्च करते थे। सिंचाई पर खर्च अधिक आ रहा था, इसलिए उन्होंने सोलर पंप लगवा लिया। इस पर एक बार में एक लाख रुपये तो खर्च हुए, लेकिन वे कम से कम 6 साल तक बिना लागत अपने खेतों की सिंचाई कर सकते हैं। मतलब, एक या दो फसल होने पर ही सोलर पंप का खर्च निकल आता है। देश के ज्य़ादातर राज्यों में किसान अब सोलर पंप लगवा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल 25 हजार किसानों ने अपने खेतों में सोलर वाटर पंप लगवा लिये हैं।
देश में असीम संभावनाएं
सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में दुनिया के बहुतायत देशों की तुलना में भारत बेहतर स्थिति में है। यहां सौर ऊर्जा के लिए फोटोवोल्टिक पैनल लगाने पर उनसे अधिक देर तक और ज्य़ादा बिजली उत्पादन किया जा सकता है। अनुमानित आंकड़ों के हिसाब से यहां सूरज की किरणों से एक साल में 3,000 घंटे की बिजली बनाई जा सकती है, जो अकेले ही पूरे भारत की ही नहीं, दुनिया के एक बड़े भूभाग की बिजली की जरूरतों को पूरा कर सकता है।
भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां दिन में 8 घंटे से अधिक धूप रहती है। इसलिए यह सौर ऊर्जा के लिए सबसे उपयुक्त देश है। यही वजह है कि पिछले 8 वर्ष में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत ने ऊंची छलांग लगाई है। 2013 तक भारत की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता मात्र 2300 मेगावाट थी। लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस क्षेत्र में तेजी से काम हुआ। सरकार ने फोटोवोल्टिक प्लेट के आयात में आ रही परेशानियों को दूर किया। साथ ही, सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया। दरअसल, भारत में सूरज से 300 दिन प्रकाश मिलता है, जो देश के कुल जैव ईधन (कोयला और अन्य ईधन) को जलाने के बराबर है। यानी भारत अपनी बिजली की जरूरतें सौर ऊर्जा से ही पूरी कर सकता है।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बढ़ते कदम
भारत ने वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा का 40 प्रतिशत हरित ऊर्जा से उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है। सरकार का लक्ष्य 2022 तक 1,00,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का था। इसे बहुत कठिन माना जा रहा था। आज देश की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 55 हजार मेगावाट तक पहुंच गई है। यही नहीं, भारत सौर बिजली उत्पादन के मामले में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश भी बन गया है। 8 साल में यह रिकॉर्ड उपलब्धि किसी चमत्कार से कम नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह कि केवल कंपनियां ही नहीं, आम लोग भी सौर ऊर्जा उत्पादन कर अपने घरों को रौशन कर रहे हैं।
दूरदराज के जिन इलाकों में बिजली की तारें मुश्किल से पहुंची हैं, वहां उजाले का माध्यम सौर ऊर्जा ही है। इस क्षेत्र में सरकार किस रफ्तार से काम कर रही है, इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब जम्मू के पल्ली गांव में मात्र तीन सप्ताह में ही स्वदेशी तकनीक से 500 किलोवाट का सौर प्लांट लगा। देश की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ईआईएल ने महज 24 घंटे में इस गांव के 300 से अधिक घरों तक बिजली का बंदोबस्त कर दिया। कंपनी के प्रवक्ता मनोज शर्मा ने बताया, ‘‘हमने 15 दिन के भीतर ही यह परियोजना पूरी कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी प्रशंसा की है। इस सुदूर गांव तक तय समयसीमा में काम पूरा करना एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन कंपनी ने इसे पूरा कर दिखाया।’’
विदेशों पर निर्भरता होगी खत्म
देश में अभी भी अधिकांश फोटोवोल्टिक सेल विदेशों से ही आयात किए जा रहे हैं। चूंकि देश में सौर ऊर्जा स्टेशन बनाने की गति बहुत अधिक है और पीवी सेल तैयार करने की क्षमता अभी सालाना मात्र 3000 मेगावाट ही है, इसलिए सरकार ने इस क्षेत्र के लिए भी प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव देने का मन बना लिया है। इसके तहत अगले एक साल में लगभग 20 हजार करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि से इस 3000 मेगावाट की पीवी सेल उत्पादन क्षमता को 15,000 मेगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य है। यदि ऐसा हुआ तो भारतीय कंपनियों को स्वदेश में बने पीसी सेल और मॉड्यूल मिलने लगेंगे। इससे विदेशों पर तो निर्भरता कम होगी ही, सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता भी तेजी से बढ़ाने में मदद मिलेगी। फिलहाल सोलर सेल के लिए भारत काफी हद तक चीन पर निर्भर है। लेकिन चीन के साथ तनाव की वजह से इसका आयात मुश्किल हो गया है, जिसका असर सौर कार्यक्रम पर पड़ा है। इसी कारण से सरकार सोलर पीवी सेल उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना चाह रही है। केपीएमजी के हिस्सेदार संतोष कामथ के मुताबिक, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत अगुआ बनने जा रहा है। दुनिया जब कार्बन फुटप्रिंट्स (कार्बन उत्सर्जन) कम करने के लिए प्रयासरत है, ऐसे में भारत ने 2030 तक इसे शून्य पर लाने का लक्ष्य रखा है। यह अपने आप में बड़ी बात है।
घर की छत पर लगाएं बिजलीघर
देश में कई स्थानों पर अब घरों की छत पर सोलर पैनल नजर आने लगे हैं। ये पैनल न सिर्फ बिजली उत्पादन कर रहे हैं, बल्कि कमाई का रास्ता भी खोल रहे हैं। इसे कोई भी व्यक्ति अपने घर की छत पर लगाकर पैसे कमा सकता है। इसके साथ स्मार्ट मीटर भी आता है, जो दिन में बनने वाली बिजली की खपत नहीं होने पर उलटा घूमता है। इस दौरान अतिरिक्त बिजली सोलर प्लांट से ग्रिड में चली जाती है। यानी आपका बिजली बिल कम हो जाएगा। जानकारों के मुताबिक, एक किलोवाट का सोलर पावर प्लांट लगाने पर लगभग 1.25 लाख रुपये का खर्च आता है, जो 25 साल तक बिजली देता रहेगा। 7-8 साल में ही इसकी लागत वसूल हो जाती है।
भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन इकाइयों से मिलने वाली बिजली की कीमत भी लगातार कम हो रही है। 7-8 साल पहले इन संयंत्रों से मिलने वाली बिजली की कीमत 7 से 8 रुपये प्रति यूनिट होती थी, जो गिर कर 2 से 3 रुपये के बीच आ गई है। हालांकि पिछले कुछ दिनों में चीन से आयात रुकने के कारण इसमें थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। इसके बावजूद यह कोयला और दूसरे संसाधनों से मिलने वाली बिजली से बहुत कम है। कोयले से मिलने वाली बिजली की औसतन लागत 3.80 रुपये प्रति यूनिट तक आती है।
ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में सबसे ज्य़ादा बिजली थर्मल पावर स्टेशन यानी कोयले से चलाए जाने वाले बिजलीघर पैदा करते हैं। देश में कुल 4 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इसमें से आधी से कुछ ज्य़ादा यानी 2.04 लाख मेगावाट बिजली थर्मल पावर प्लांट्स से पैदा की जाती है। इसके बाद सौर ऊर्जा का स्थान आता है, जिसकी बिजली उत्पादन क्षमता 55 हजार मेगावाट हो गई है। यह कुल बिजली उत्पादन क्षमता के 13 प्रतिशत से कुछ ज्य़ादा है। वहीं, पवन ऊर्जा और दूसरी नवीनीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को भी मिला दिया जाए तो कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 27 प्रतिशत तक हो जाती है। भारत जैसे देश के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
7 राज्यों की बड़ी भूमिका
बिजली की बढ़ती खपत
देश में सालाना लगभग 6 से 10 प्रतिशत की गति से बिजली की खपत बढ़ रही है। 2019-20 में तो यह खपत 10-15 प्रतिशत की दर से बढ़ी। वर्ष 2035 तक देश में सौर ऊर्जा की मांग के सात गुना तक बढ़ने की संभावना है। इसे देखते हुए सरकार ने 2022 के अंत तक नवीकरणीय माध्यमों से 175 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायोमास ऊर्जा से 10 गीगावाट और लघु जलविद्युत परियोजनाओं से 5 गीगावाट बिजली उत्पादन शामिल है। सौर ऊर्जा की लागत में लगातार आ रही कमी की वजह से अब यह ताप बिजली से मुकाबले की स्थिति में है। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ने पर जीडीपी दर भी बढ़ेगी और भारत सुपरपावर बनने की राह पर आगे बढ़ सकेगा।
पूर्व ऊर्जा सचिव अनिल राजदान के मुताबिक, भारत का जो एनर्जी बास्केट है, उसमें जैसे-जैसे सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ेगी, वैसे-वैसे देश ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होता जाएगा। इससे पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता घटेगी और आयात भी कम होने लगेगा। फिलहाल, देश में आयात होने वाले पेट्रोलियम उत्पादों का 90 प्रतिशत केवल गाड़ियों में र्इंधन के तौर पर प्रयुक्त होता है। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पेट्रोलियम उत्पाद आयात के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। भारत ने पिछले वित्त वर्ष (2021-22) में 11,900 करोड़ डॉलर का कच्चा तेल आयात किया था। इसमें से 90 प्रतिशत से ज्य़ादा तेल हम गाड़ियों में जला रहे हैं। अगर हम इसमें से आधा कच्चा तेल भी बचा पाएं तो लगभग 6,000 करोड़ डॉलर यानी लगभग पांच लाख करोड़ रुपये सीधे-सीधे बचेंगे। यह बचत सिर्फ सौर ऊर्जा से ही हो सकती है। इसी वजह से सरकार बैटरी से चलने वाली गाड़ियों पर अधिक जोर दे रही है। देश में बैटरी से चलने वाली गाड़ियों की संख्या बढ़ेगी तो सरकार पर पेट्रोलियम आयात का दबाव भी कम होने लगेगा।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 2015 में भारत और फ्रांस ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने की घोषणा की थी। भारत के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इस अंतरराष्ट्रीय संगठन का सचिवालय हरियाणा के गुरुग्राम में बनाया गया है। दुनियाभर में प्रदूषण कम करने के लिए यह सौर गठबंधन कितना जरूरी था, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि मात्र 7 साल में ही इस संगठन में 86 देश शामिल हो गए हैं।
बैटरी बढ़ाती है लागत
अभी देश एक नई क्रांति के मुहाने पर खड़ा है। सौर ऊर्जा उत्पादन में कोई समस्या नहीं है, मुश्किल है इससे तैयार बिजली को संभाल कर रखना। दिन के मुकाबले शाम या आसमान में बादल घिर आने पर बिजली उत्पादन क्षमता घट जाती है। लेकिन इसी समय बिजली की मांग अधिक होती है। इसलिए दिन में जो बिजली बन रही है, उसे संभाल कर रखना बहुत जरूरी है। इसके लिए इसमें बैटरी लगानी पड़ती है, जो लागत बढ़ा देती है। इसके चलते बिजली महंगी हो जाती है। यदि बैटरियों की कीमत कम हो जाए तो एक बड़ी समस्या दूर हो जाएगी।
उम्मीद है, अगले कुछ साल में बैटरियों की कीमतें कम हो जाएंगी तो थर्मल पावर पर हमारी निर्भरता भी कम हो जाएगी। अभी देश में दिन के समय बिजली बनती है, उसका उपयोग दिन में ही होता है। यानी वह सीधे ग्रिड में चली जाती है, जहां से सौर ऊर्जा की आपूर्ति हमारे घरों को की जाती है।
कई बार ऐसा भी होता है कि दिन में बहुत अधिक बिजली उत्पादन हो जाता है, लेकिन शाम के बाद तेजी से सौर ऊर्जा उत्पादन गिरने लगता है। ऐसे में थर्मल और दूसरी पारंपरिक बिजली उत्पादन इकाइयों के साथ इसका संतुलन बनाना कठिन होता है। ल्ल
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