हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने विदेशी अंशदान नियमन कानून (एफसीआरए) के नियमों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध एक अभियान चलाया। इसके अंतर्र्गत 40 स्थानों पर छापे मारकर 3.21 करोड़ रु. बरामद किए गए। इसके साथ ही 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार लोगों में केंद्रीय गृह मंत्रालय के छह अधिकारी भी शामिल हैं। सीबीआई ने यह कार्रवाई गृह मंत्रालय की शिकायत पर की है। गृह मंत्रालय को जानकारी मिली थी कि प्रतिबंधित एनजीओ से जुड़े लोग एफसीआरए के अंतर्गत लाइसेंस लेने और उनका नवीनीकरण कराने के लिए मंत्रालय के कुछ अधिकारियों के संपर्क में हैं। जब इसकी जानकारी गृह मंत्री अमित शाह को हुई तो उन्होंने ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
आगे बढ़ने से पहले यह जान लेते हैं कि आखिर कोई एनजीओ एफसीआरए का लाइसेंस क्यों चाहता है। बता दें कि किसी भी एनजीओ को विदेश से चंदा लेने के लिए गृह मंत्रालय से एफसीआरए लाइसेंस लेना ही होता है। इस समय एफसीआरए के अंतर्गत 16,890 गैर-सरकारी संगठन पंजीकृत हैं, जबकि 6,000 एनजीओ पर जनवरी, 2022 से विदेशी चंदा लेने पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
इन्हीं प्रतिबंधित कुछ गैर-सरकारी संंगठनों के लोग फिर से एफसीआरए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों को रिश्वत देते हुए सीबीआई के फंदे में आ गए हैं। सीबीआई ने एफसीआरए के अंतर्गत पंजीकरण और लाइसेंस का नवीनीकरण कराने में कथित षड्यंत्र रचने के मामले में अमेरिकी गैर-सरकारी संस्था ‘ओमिदयार नेटवर्क’ सहित 10 एनजीओ को आरोपी बनाया है।
एफआईआर के अनुसार 24 अप्रैल को देवेश चंद्र मिश्र ने ‘ओमिदयार नेटवर्क’ से तीन करोड़ रु. का चंदा लेने के लिए तुषार कांति रॉय से संपर्क किया। रॉय ने अनुमति दिलाने के बदले चंदे की कुल राशि में से 10 प्रतिशत रिश्वत की मांग की। रॉय ने यह भी कहा कि काम करवाना हो तो विदेशी चंदे का कम से कम सात प्रतिशत देना होगा, क्योंकि उसमें से अन्य लोगों को भी देना होता है।
सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत 30,00,000 गैर-सरकारी संगठनों में से केवल 3,00,000 ही वार्षिक हिसाब-किताब देते हैं। यही कारण है कि कुछ वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इन संगठनों के लिए उचित नियमावली बनाने को कहा था। न्यायालय के इस दिशा-निर्देश के बाद केंद्र सरकार अब तक लगभग 30,000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर चुकी है
बता दें कि ओमिदयार समूह का ओमिदयार नेटवर्क मीडिया, डिजिटल सोसाइटी, शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में कारोबार करता है, जिसे गृह मंत्रालय ने पिछले वर्ष ही निगरानी सूची में डाला था। सीबीआई ने जिन 10 एनजीओ और उनके सहयोगियों के नाम एफआईआर में शामिल किए हैं, उनमें ओमिदयार के अलावा गंगा आथोर्पेडिक रिसर्च एंड एजुकेशन फाउंडेशन के सीए वागीश, सोशल प्रोजेक्ट के रॉबिन देवदास, श्रीजन फाउंडेशन के स्वप्न मन्ना शामिल हैं।
इनके अलावा आयरिस मल्टीपर्पस सोशल सर्विस सोसाइटी के चिनप्पन पिचाई पिल्लई, सेंटर फॉर ट्राइबल एंड रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट के रामास्वामी रंगनाथन, सीएलसी के प्रशासक अल्फ्रेड मोहंती, हार्वेस्ट इंडिया के कथेरा सुरेश कुमार, आर्गनाइजेशन रिफॉर्म्ड प्रेसबाइटेरियन चर्च नॉर्थ ईस्ट इंडिया के महासचिव लुंगाविरल खावबंग और नई रोशनी फाउंडेशन के अध्यक्ष बिष्णु मौर शामिल हैं।
सीबीआई ने गृह मंत्रालय की शिकायत पर 10 मई को 36 लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज किया था। इन लोगों में गृह मंत्रालय के एफसीआरए अनुभाग के सात अधिकारियों के साथ ही एनजीओ के प्रतिनिधि और बिचौलिए शामिल हैं। बता दें कि भारतभर में बड़ी संख्या में ऐसे गैर-सरकारी संगठन कार्यरत हैं, जो देश-विदेश से करोड़ों रुपये लेते हैं, लेकिन उसका हिसाब-किताब नहीं देते। यही कारण है कि इनकी कार्यशैली पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी की है और सीबीआई से इनकी जांच भी करवाई गई है।
सीबीआई द्वारा न्यायालय को दी गई एक जानकारी के अनुसार सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत 30,00,000 गैर-सरकारी संगठनों में से केवल 3,00,000 ही वार्षिक हिसाब-किताब देते हैं। यही कारण है कि कुछ वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इन संगठनों के लिए उचित नियमावली बनाने को कहा था। न्यायालय के इस दिशा-निर्देश के बाद केंद्र सरकार अब तक लगभग 30,000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर चुकी है।
यही कारण है कि एनजीओ वाले किसी भी सूरत में एफसीआरए चाहते हैं, लेकिन वे अपने जाल में ही फंसते जा रहे हैं।
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