उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी विवाद के बीच कानपुर के बेकनगंज इलाके में राम जानकी मंदिर का वजूद मिटाए जाने का मामला सामने आया है। वहीं इससे जिला प्रशासन भी सकते में आ गया है। मंदिर परिसर और भवन का वजूद मिटाए जाने का पता शहर में शत्रु संपत्तियों की तलाश के दौरान हुआ है।
एसडीएम द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में बताया गया कि अस्सी के दशक में जहां मंदिर हुआ करता था, लेकिन वर्तमान में मंदिर का कुछ हिस्सा ही बचा है वह भी जीर्ण शीर्ण हालत में है। मंदिर के बचे हिस्से को भी अंदर ही अंदर तोड़कर रेस्टोरेंट की रसोई के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। जहां कभी पूजा पाठ होती थी, वहां अब नामचीन नानवेज रेस्टोरेंट है। मौजूदा हालात से साफ है कि मंदिर की एक-एक ईंट निकालकर वहां रेस्टोरेंट की नींव रखी गई जो बाबा बिरयानी के नाम से देशभर में मशहूर है।
जानकारी के अनुसार यह संपत्ति पाक नागरिक आबिद रहमान की बताई जा रही है। आबिद रहमान 1962 में पाकिस्तान चला गया था, जहाँ उसका परिवार पहले से ही रह रहा था। 1982 में उसने यह संपत्ति मंदिर परिसर में साइकिल मरम्मत की दुकान चलाने वाले मुख्तार बाबा को बेच दी। आबिद रहमान से मुख्तार बाबा नाम के शख्स ने संपत्ति का हिबानामा अपनी मां के नाम पर कराया। जिसे मुस्लिम लॉ के मुताबिक दान में लिखा पढ़ी करके लिया गया’ था। उसके बाद वसीयत कराकर खुद संपत्ति की खरीद फरोख्त शुरू कर दी। जबकि मंदिर ट्रस्ट के आगे हिंदुओं की 18 दुकानें थीं जिसे एक-एक कर तोड़ दिया और यहां की 400 वर्गगज जमीन पर एक आलीशान नानवेज बिरयानी रेस्टोरेंट बन गया।
वहीं इस मामले में शत्रु संपत्ति के संरक्षक कार्यालय के मुख्य पर्यवेक्षक और सलाहकार कर्नल संजय साहा ने कहा कि इस मामले में नोटिस भेजा गया है। उनके पास इस संबंध में जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है। हालांकि, अभी तक कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। तय समय के अंदर संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
प्रशासन नहीं दे पा रहा जवाब
रामजानकी मंदिर ट्रस्ट की जमीन को लेकर एक सवाल जो बार-बार उठ रहा है उसका जवाब प्रशासन भी नहीं दे पा रहा है। यदि यह संपत्ति रामजानकी ट्रस्ट की है तो फिर शत्रु की कैसे हो सकती है। क्योंकि रामजानकी ट्रस्ट का संचालन हिंदू समाज के हाथों में होगा। इसलिए मुस्लिम व्यक्ति इसे कैसे बेच और खरीद सकता है। चूंकि रामजानकी मंदिर की बात एसडीएम की रिपोर्ट में है इसलिए अब यक्ष प्रश्न खड़ा है कि मंदिर कहां गया ?
जानिए क्या है शत्रु संपत्ति अधिनियम
शॉर्ट में समझाएं तो शत्रु संपत्ति का सीधा सा मतलब है शत्रु की संपत्ति. दुश्मन की संपत्ति. फर्क बस इतना है कि वो दुश्मन किसी व्यक्ति का नहीं मुल्क का है. जैसे पाकिस्तान, चीन. 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. जो लोग पाकिस्तान चले गए वो अपना सब कुछ तो उठाकर नहीं ले गए. बहुत कुछ पीछे छूट गया. घर-मकान, हवेलियां-कोठियां, ज़मीन-जवाहरात, कंपनियां वगैरह-वगैरह. इन सब पर सरकार का कब्ज़ा हो गया. आसान भाषा में यूं समझिए कि जिनका इन संपत्तियों पर मालिकाना हक़ था वो तो चले गए पराए मुल्क, जायदाद यहीं पर रह गई.
शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 पाकिस्तान से 1965 में हुए युद्ध के बाद पारित हुआ था। इस अधिनियम के अनुसार, जो लोग 1947 के विभाजन या 1965 में और 1971 में लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहाँ की नागरिकता ले ली, उनकी सारी अचल संपत्ति ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित कर दी गई और भारत सरकार ने उसे जब्त कर लिया। यह अधिनियम शत्रु की संपत्ति की देखभाल का अधिकार संपत्ति के लीगल वारिस या लीगल प्रतिनिधि को देता है।
इस कानून में संशोधन के बाद शत्रु संपत्ति अधिनियम, 2017 आया। इसने शत्रु संपत्ति की परिभाषा बदल दी है। इसके मुताबिक, अब वे लोग भी शत्रु हैं, जो भले ही भारत के नागरिक हो, लेकिन उन्हें विरासत में ऐसी संपत्ति मिली है जो कि किसी पाकिस्तानी नागरिक के नाम है। इस संशोधन ने ऐसी सम्पतियों का मालिकाना हक भी भारत सरकार को दे दिया है। संशोधित अधिनियम के मुताबिक़,
- कस्टोडियन को, जो कि अमूमन सरकार ही होती है, ऐसी प्रॉपर्टी का मालिक मान लिया गया. ये 1968 से ही प्रभावी माना गया.
- भारतीय नागरिक शत्रु संपत्ति विरासत में किसी को दे नहीं सकते.
- अब तक जितनी भी ऐसी संपत्तियां बेची जा चुकी हैं उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया.
- दीवानी अदालतों को ज़्यादातर मामलों में शत्रु संपत्ति से जुड़े मुकदमों पर सुनवाई का हक़ नहीं होगा.
- मामले की सुनवाई सिर्फ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही होगी.
कुल मिलाकर ये है कि भारत के किसी नागरिक ने ऐसी कोई प्रॉपर्टी खरीदी भी है तो उसे भी सरकार वापस ले सकती है. कानूनी तौर से।
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