उत्तर प्रदेश में ओबीसी की 18 जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में आज सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने एक बार फिर से ओबीसी की 18 जातियों को एससी सर्टिफिकेट जारी करने पर लगी रोक बढ़ा दी। हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से लगभग 5 वर्ष बीत जाने के बाद भी इन याचिकाओं में जवाब दाखिल नहीं किया गया।
जबकि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पिछली सुनवाई पर जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका दिया था। वहीं, आज इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को जानकारी दी गई कि प्रदेश सरकार किस मामले पर फिर से विचार कर रही है। कहा गया कि मंत्रिमंडल की बैठक में पुनर्विचार करेंगे।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 24 जनवरी 2017 को 18 ओबीसी जातियों को सर्टिफिकेट जारी करने पर रोक लगाई थी। डॉ भीमराव अम्बेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति गोरखपुर के अध्यक्ष की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर कोर्ट ने यह आदेश पारित किया।
ओबीसी की 18 जातियों को एससी में शामिल करने का नोटिफिकेशन 22 दिसम्बर 2016 को तत्कालीन अखिलेश सरकार में जारी हुआ था। इसके बाद 24 जून 2019 को भी योगी सरकार में नोटिफिकेशन जारी हुआ था। हाईकोर्ट ने इस नोटिफिकेशन पर भी रोक लगाई हुई है।
इन जातियों को लेकर मच रहा हंगामा
याचिकाकर्ता की दलील है कि ओबीसी जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने का अधिकार केवल भारत की संसद को है। राज्यों को इस मामले में कोई अधिकार प्रदत्त नहीं है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने एससी सर्टिफिकेट जारी करने पर रोक लगाई हुई है। ओबीसी की मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा गोडिया, मांझी और मछुआ जातियों को एससी में शामिल करने का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। इस मामले में जुलाई के पहले हफ्ते में अगली सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जे जे मुनीर की खंडपीठ में मामले की सुनवाई हुई।
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