इमरान खान बेदखल हो गए परंतु उनके कुछ पक्षधर नई सरकार की राह में रोड़े बिछा रहे हैं। ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने मोर्चा संभाला है और इमरान की पार्टी के 50 सांसदों को सरकार के पक्ष में कर लिया
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ जरदारी को पाकिस्तानी राजनीति का चाणक्य माना जाता है। इमरान खान सरकार के गिरने के बाद बनी शहबाज शरीफ की सरकार के पांव अभी भली-भांति जम नहीं पाए हैं। नेशनल असेंबली में बहुमत के नाम पर उसके पास सिर्फ दो सदस्यों का बहुमत है। इमरान की पार्टी से नाराज सदस्यों को औपचारिक रूप से सरकार में शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि दल-बदल कानून इसमें आड़े आता है। इसके चलते राष्ट्रपति और पंजाब के गवर्नर, जोकि इमरान खान की पार्टी से संबंध रखते हैं, मौजूदा सरकार के रोजमर्रा के काम में रोड़े अटका रहे हैं।
उदाहरण के लिए, गवर्नर को बदलने के लिए राष्ट्रपति को दिए गए फैसलों पर अवांछित विलंब किया जाना, पंजाब के गवर्नर द्वारा मुख्यमंत्री को शपथ न दिलाना। यहां तक कि पंजाब में अभी तक मंत्रिमंडल नहीं बन सका है क्योंकि गवर्नर मंत्रिमंडल को शपथ ही नहीं दिलाना चाहते। इस समय पंजाब के गवर्नर हाउस को सील कर ताला लगा दिया गया है क्योंकि कानूनी तौर पर इस समय पंजाब में कोई गवर्नर है ही नहीं। पिछले डेढ़ महीने से पंजाब में मुख्यमंत्री के अलावा सरकार चलाने के लिए कोई मंत्री भी नहीं है। दूसरी तरफ इमरान खान रोजाना आधार पर जलसे कर पाकिस्तान के हर संस्थान और व्यक्ति पर हमले कर रहे हैं। सेनाध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर चुनाव आयोग के सदस्य, कोई भी उनके हमलों से बचा नहीं है।
इस व्यवस्थागत और राजनीतिक ऊहापोह की स्थिति से बाहर निकलने और आगे की रणनीति के लिए नवाज शरीफ ने अपने भाई शहबाज शरीफ और उनके मंत्रिमंडल के मुख्य सदस्यों को लंदन में विचार-विमर्श के लिए बुलाया है। शहबाज शरीफ के हालिया सऊदी अरब और संयुक्त राष्ट्र अमीरात के दौरों के अभी तक कोई सुखद परिणाम सामने नहीं आए हैं और इन देशों से आने वाली आर्थिक मदद के लिए बातचीत अभी जारी है। आईएमएफ का पाकिस्तान आने का दौरा रद्द कर दिया गया है और कई मुलाकातों को कतर में करने के लिए कहा गया है।
इमरान खान पर भी एक्शन शुरू हो सकता है। लग रहा है, कुछ समय के लिए पाकिस्तान की राजनीति में एक बार फिर उठापटक होने वाली है जिसके बाद शायद कुछ समय तक नीतियों पर काम किया जा सके। आगामी चुनाव तक इन हलचलों पर पूर्णविराम लगने का दूर-दूर तक कोई अंदेशा नहीं है।
इस बीच यह भी सामने आया है कि मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री मिफ्ता इस्माइल की वित्त नीतियों को लेकर विरोध है। स्माइल चाहते हैं कि आईएमएफ की नीतियों को जस का तस लागू किया जाए, लेकिन मंत्रिमंडल के दूसरे धड़े को लगता है कि आईएमएफ से दोबारा समझौता कर नीति परिवर्तन किया जाए। इसीलिए कतर में 18 मई से होने वाली मुलाकातों में अब पूर्व वित्त मंत्री इशाक दार जाएंगे। यह तय है कि आईएमएफ पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिरता में ही आर्थिक स्थिरता देखता है और मौजूदा हालात में स्थिरता नजर नहीं आती। इस माह पाकिस्तान को एक अरब डॉलर चीन को भी भुगतान करना है और पाकिस्तान ने इसे टालने के लिए निवेदन किया है लेकिन अभी तक चीन की तरफ से कोई उत्तर नहीं आया है। दूसरी तरफ शहबाज शरीफ के चीन दौरे के लिए चीन ने अभी तक कोई तारीख नहीं दी है।
इस सबके बीच आसिफ जरदारी ने एक प्रेस वार्ता कर इस असमंजस से निकलने के लिए अपनी नीति घोषित की है। आगामी दिनों में इमरान की पार्टी के पचास से अधिक सदस्य संसद में सरकार का समर्थन करेंगे लेकिन अपनी पार्टी नहीं छोड़ेंगे। ऐसा होने के बाद सरकार के पास ऐसे सदस्य संसद में होंगे जो राष्ट्रपति को हटाने के लिए तीन-चौथाई बहुमत भी बनाएंगे और राज्यपालों द्वारा उत्पन्न अड़चनों को हटाने में भी मदद करेंगे।
इन पर दल-बदल का कानून लागू नहीं होगा क्योंकि वे औपचारिक रूप से इमरान खान की पार्टी में ही बने रहेंगे और यदि उन्हें निकाला भी जाए तो उनकी सदस्यता खत्म नहीं होगी। इसी वार्ता में जरदारी ने यह भी बताया कि उनकी नवाज शरीफ से बात हो चुकी है और चुनाव अपने समय पर कराए जाएंगे और तब तक उन कानूनों को बदला जाएगा जिनके साथ चुनाव कराए जाने हैं।
इस माह के अंत तक इमरान खान पर भी एक्शन शुरू हो सकता है। लग रहा है, कुछ समय के लिए पाकिस्तान की राजनीति में एक बार फिर उठापटक होने वाली है जिसके बाद शायद कुछ समय तक नीतियों पर काम किया जा सके। आगामी चुनाव तक इन हलचलों पर पूर्णविराम लगने का दूर-दूर तक कोई अंदेशा नहीं है।
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