प्रयागराज जनपद के फाफामऊ घाट पर इन दिनों तेजी से शव दफनाये जा रहे हैं। आस-पास के लोग शव को गंगा जी के किनारे दफन कर रहे हैं। बारिश के समय ये शव बहते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे गंगा जी में प्रदूषण बढ़ रहा है। गंगा जी को इस तरह प्रदूषित करना, नियम विरुद्ध भी है। कोरोना की दूसरी लहर के समय में नगर निगम , प्रयागराज की तरफ से सख्त आदेश दिए गए थे कि गंगा नदी के तट पर शव दफनाने पर रोक लगाई जाए। उस समय समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि वो शव कोरोना संक्रमितों के थे।
उल्लेखनीय है कि बौद्ध पंथ को मानने वाले कौशाम्बी जनपद में काफी संख्या में पाए जाते हैं। कौशाम्बी पहले प्रयागराज जनपद का हिस्सा हुआ करता था। 4 अप्रैल 1997 को प्रयागराज से अलग कर कौशाम्बी को जिला बनाया गया था। कौशाम्बी जनपद प्राचीन काल में जैन एवं बौद्ध गतिविधियों का बड़ा केंद्र रहा है। इस जनपद में आज भी बौद्ध संत काफी संख्या में विचरण करते मिल जाते हैं। इन लोगों की काफी सक्रियता इस क्षेत्र में पाई जाती है। इसी वजह से बौद्ध पंथ को मानने वालों की खासी संख्या कौशाम्बी जनपद में हैं। कौशाम्बी जनपद में भी गंगा के घाट पर कई दशकों से शव दफन किये जा रहे हैं। गंगा में प्रदूषण फैलाने वाले इस कार्य पर कभी रोक नहीं लगाई गई। पुलिस वालों ने भी इसे रोकना जरूरी नहीं समझा। कोरोना की दूसरी लहर में जब इस मामले को राजनीतिक रंग दिया जाने लगा तब कुछ सख्ती की गई थी।
कोरोना की दूसरी लहर में गंगा किनारे कतार में दिखते शव की फोटो कुछ दैनिक समाचार पत्रों ने प्रकाशित की थी। राहुल गांधी ने उस समाचार की कतरन को ट्वीट किया था। उस समय सरकार के खिलाफ एक झूठा नैरेटिव गढ़ा गया था। उसमें यह आरोप लगाया गया था कि कोरोना संक्रमण से मरने वाले के शव नदी में बहाए गए हैं। अखिलेश यादव ने भी बयान दिया था। मगर सचाई यह है कि कई दशकों से कौशाम्बी जनपद में शव इस तरह दफनाए जा रहे हैं। उस समय पुलिस अधिकारियों ने भी इस तथ्य को सामने रखा था कि वो शव कोरोना संक्रमितों के नहीं थे। वो पहले से दफनाए गए शव थे। आज कोरोना संक्रमण पूरी तरह नियंत्रित है और ऐसे समय में भी गंगा जी के तट पर शव दफनाये जा रहे हैं। मगर फेक नैरेटिव गढ़ने वाले समाज में नफरत फैला कर अब नदारद हैं।
टिप्पणियाँ