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वामपंथी निशाने पर हैरी पॉटर

लैंगिक पहचान से आजादी के नाम पर सामान्य महिलाओं को नीचा दिखा कर ट्रांस-जेंडर महिलाओं को बढ़ाना देना वामपंथियों का नया शिगूफा है

by सोनाली मिश्रा
May 18, 2022, 02:30 pm IST
in भारत, विश्लेषण
हैरी पॉटर की लेखिका जे के रोलिंग

हैरी पॉटर की लेखिका जे के रोलिंग

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लैंगिक पहचान से आजादी के नाम पर सामान्य महिलाओं को नीचा दिखा कर ट्रांस-जेंडर महिलाओं को बढ़ाना देना वामपंथियों का नया शिगूफा है। जे.के. रोलिंग ने इसका विरोध किया तो खदबदाए वाम अब उनकी लिखी पुस्तक हैरी पॉटर के विषय वस्तु की आलोचना में जुट गए हैं

सोनाली मिश्रा

भारत सहित पूरे विश्व का लिबरल जगत प्राय: असहिष्णुता की बात करता है, परन्तु असहिष्णुता क्या होती है और किनके साथ की जाती है, और उनके साथ कब की गई, यह तनिक भी स्पष्ट नहीं हो पाता। यह स्पष्ट करने के लिए कि उनके साथ किसने असहिष्णुता की, उनके पास बहुत कम आंकड़े होते हैं। उनके लिए असहिष्णुता का अर्थ उनके विचारों से असहमति भी हो सकता है और फिर विरोधी विचारों के साथ जो वह करते हैं, उसे किस श्रेणी में रखा जाए, यह तो निर्धारित ही नहीं किया जा सकता। अब इनका निशाना बनी हैं हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग!

इन दिनों लिबरल जगत जे.के. रोलिंग से नाराज है। इतना नाराज कि अब वह इस बात पर उतर आए हैं कि हैरी पॉटर के विषय- वस्तु को लेकर चर्चाएं होने लगी हैं कि क्या यह सब बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए? चेस्टर विश्वविद्यालय में यह चेतावनी जारी की गई कि क्या ऐसी पुस्तकों को पढ़ना चाहिए?

अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर, ऐसा क्या हुआ है जिसके कारण लोग हैरी पॉटर से इतने नाराज हैं? तो इसका उत्तर है कि इसकी लेखिका ने एक ऐसे एजेंडे पर अपना विचार रख दिया है, जो युवा पीढ़ी के लिए सबसे घातक होने जा रहा है। उन्होंने एक ऐसे मुद्दे पर लिबरल्स का विरोध कर दिया है, जिसके नाम पर आजादी का एक नया खेल शुरू हो रहा है! और यह मामला हमारी सोच से भी परे है! यह मामला है लैंगिक पहचान से आजादी!

क्या है यह मामला?
यह मामला इतनी जल्दी समझ में आने वाला नहीं है। जब यह मामला समझ में आएगा तो कहीं न कहीं लिबरल्स द्वारा पुतिन के प्रति प्रदर्शित घृणा भी समझ आएगी! दरअसल जे.के. रोलिंग हों या पुतिन, दोनों ने ही ट्रांस-जेंडर वाली पूरी अवधारणा का विरोध किया है।
ट्रांस-जेंडर का अर्थ क्या?

आखिर ट्रांस-जेंडर का अर्थ क्या है? ट्रांस-जेंडर का अर्थ है शरीर तो महिला का हो, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह महिला ही हो, वह स्वयं को पुरुष मान सकती है और स्वयं को पुरुष कह सकती है, वह सर्जरी से या फिर हार्मोनल ट्रीटमेंट के साथ अपनी पहचान को महिला से पुरुष कर सकती है। या फिर यदि किसी व्यक्ति की देह पुरुष की है, परन्तु उसे ऐसा लगता है कि वह पुरुष नहीं बल्कि महिला है, तो वह सर्जरी से या फिर हर देश के अनुसार निर्धारित हार्मोनल ट्रीटमेंट के बाद लड़की होने का दावा कर सकता है। और स्वयं को ट्रांस-वुमन कह सकता है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हाल ही में मिस यूनिवर्स बनी हरनाज संधू की फैशन डिजाइनर। अभी उनका नाम साय्षा है, परन्तु उनका नाम स्वप्निल था। जैसे ही हरनाज सिंह संधू मिस यूनिवर्स बनीं, वैसे ही कई प्रोपगैंडा वेबसाइट्स ने साय्षा के इस पहलू पर बात करनी आरम्भ कर दी थी कि आइए, उस ट्रांस-महिला से मिलते हैं, जिन्होंने संधू का मिस यूनिवर्स का गाउन डिजाइन किया।

हरनाज सिंह संधू की ड्रेस डिजाइनर पहले स्वप्निल, बाद में साय्षा

जो सामान्य महिलाएं हैं, उन्हें नीचा दिखाकर असामान्य महिलाओं को बेहतर दिखाना, यह लिबरल्स का नया शिगूफा है, जो उन्होंने अब छोड़ा है और इसके आतंक की कितनी तहें और हैं, इनकी चर्चा हम आने वाले और लेखों में करते रहेंगे। क्योंकि यह मामला सांस्कृतिक है, यह मामला धार्मिक है और यह मामला सामाजिक तानेबाने का है, जिसे लिब्रल्स बहुत ही तेजी से तोड़ने के लिए कदम आगे बढ़ा रहे हैं!

हालांकि स्वप्निल अर्थात साय्षा पहले से ही फिल्म उद्योग से जुड़े हैं और कई प्रख्यात हस्तियों के साथ कार्य कर चुके हैं, तो उनकी पहचान उनका काम है, जो उन्होंने साबित किया है। फिर भी समाज तोड़ने वाली वेबसाइट्स ने उनके इसी रूप को उभार कर बताया। स्वप्निल ने जून 2021 में यह घोषणा की थी वह कोई समलैंगिक पुरुष नहीं बल्कि ट्रांसवुमन है। अर्थात वह भीतर से महिला हैं।

इसी मामले के आधार पर हाल ही में एक फिल्म भी रिलीज हुई थी। और वह भी थी आयुष्मान खुराना एवं मानवी की मुख्य भूमिका वाली ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’। इसमें नायिका वह महिला थी जो लिंग परिवर्तन के बाद ही महिला बनी थी। अर्थात वह जन्म से पुरुष थी और फिर उसने लिंग परिवर्तन कराया था।
दरअसल जो पहले कुछ ही लोगों तक सीमित था, उसे इन फिल्मों ने और ऐसे सेलेब्रिटी समाचारों ने और बढ़ाने का कार्य किया।

रोलिंग का रुख
अब जानते हैं कि जे.के. रोलिंग ने क्या कहा था और विदेशों में यह समस्या कितनी गंभीर है?
12 दिसंबर, 2021 को स्कॉटलैंड पुलिस ने यह आदेश जारी किया कि वह बलात्कार के मामले में पुरुष लिंग वाले अपराधियों द्वारा किए गए अपराधों को भी ‘महिला’ द्वारा किया गया अपराध कहेगी, यदि अपराधी कहता है कि वह महिला है! स्कॉटलैंड पुलिस ने यह भी कहा कि इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता कि बलात्कार करने वाले ने लिंग की सर्जरी कराई है या नहीं, परन्तु यदि बलात्कार करने वाले ने यह कह दिया कि वह महिला है तो उसे महिला मानकर ही दंड दिया जाएगा! अर्थात उसका जन्म जिस लैंगिक पहचान के साथ हुआ है, उस पहचान के स्थान पर उसकी यौनिक पहचान को माना जाएगा।

यदि बलात्कार करने वाला यह कहता है कि वह तो पुरुष देह में महिला है तो उसे वही माना जाएगा। इस समाचार का जे.के. रोलिंग ने विरोध किया था। और उन्होंने लिखा कि
War is PeaceÜ
Freedom is SlaveryÜ
Ignorance is StrengthÜ
The Penised Individual Who Raped You Is a Woman
अर्थात
युद्ध शान्ति है, आजादी गुलामी है,अज्ञानता ताकत है
और जिस पुरुष लिंग वाले व्यक्ति ने आपका बलात्कार किया है, वह महिला है! यह मामला बीते कुछ वर्षों से पश्चिम में लिबरल्स का मनपसन्द विषय रहा है। अब एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण किया जा रहा है, जो अपनी लैंगिक और यौनिक पहचान में ही भ्रमित होकर रह जाए।

ब्रिटेन में अजीबोगरीब प्रावधान
ब्रिटेन में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के नाम पर एक ऐसा प्रयोग किया जा रहा है, जो आगे जाकर बहुत ही हानि पहुंचा सकता है। ब्रिटेन में चार वर्ष पूर्व यह अभियान चलाना आरम्भ किया गया कि वस्त्रों का कोई लिंग नहीं होता है और लड़कों को भी स्कर्ट पहनकर आने के लिए प्रेरित किया गया। ‘अपिंगम’ नामक स्कूल में लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए यह प्रावधान किया गया था कि अगर कोई लड़का स्कर्ट पहनने की इच्छा व्यक्त करता है, तो उसे ऐसा करने दिया जाएगा! स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा कि ऐसा वह लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए कर रहे हैं।

स्कॉटलैंड पुलिस ने यह भी कहा कि इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता कि बलात्कार करने वाले ने लिंग की सर्जरी कराई है या नहीं, परन्तु यदि बलात्कार करने वाले ने यह कह दिया कि वह महिला है तो उसे महिला मानकर ही दंड दिया जाएगा! अर्थात उसका जन्म जिस लैंगिक पहचान के साथ हुआ है, उस पहचान के स्थान पर उसकी यौनिक पहचान को माना जाएगा।

इस कथित लैंगिक समानता के नाम पर महिला और पुरुषों की जो लैंगिक पहचान है, उसे ही इतना भ्रमित कर दिया जाए कि समाज में नित नए संघर्ष उत्पन्न होते रहें। और जो संघर्ष उत्पन्न होंगे और महिलाओं के लिए यह पहचान का भ्रम कितना घातक है, जब इस विषय में जे.के. रोलिंग ने बात की तो वह वर्ग जो कथित रूप से सहिष्णुता, समानता आदि की बात करता है, वह अचानक से ही असहिष्णु हो उठा और जे.के. रोलिंग की बुराई करने लगा। जैसे इस्लामोफोबिया है, वैसे ही जे.के. रोलिंग को ट्रांसोफोबिया कहा जाने लगा। और यह भी कहा गया कि ‘ट्रांस-वुमन, समाज के लिए कोई खतरा नहीं है। जे.के. रोलिंग मासूम लोगों के समूह के प्रति घृणा फैला रही हैं!’

महिला सुरक्षा को खतरा
परन्तु लिबरल जगत यह नहीं सोच रहा कि इससे कितने खतरे हो रहे हैं? सबसे बड़ा खतरा तो महिला सुरक्षा का ही है। जैसे स्कॉटलैंड पुलिस ने कहा है कि पुलिस के संपर्क में आने वाले व्यक्ति के लिंग की पहचान उसी के अनुसार निर्धारित की जाएगी, जैसा वह पुलिस के सामने अपनी पहचान बताते हैं।

और स्कॉटलैंड की पुलिस तब तक जैविक लिंग या यौनिक पहचान का प्रमाणपत्र नहीं मांगेगी जब तक वह किसी और जांच में वांछित न हो!’
अर्थात बलात्कार करने वाला पुरुष यदि यह कहेगा कि वह तो भीतर से महिला है, पुरुष नहीं तो उस पर बलात्कार का मामला नहीं चलेगा, तो ऐसे में कोई भी आदमी किसी भी महिला का बलात्कार करके जांच से बच सकता है। ऐसे में महिला सुरक्षा कहां जाएगी? अब जो इससे सबसे बड़ा खतरा है, वह सामने आ रहा है और वह है ट्रांस महिलाओं द्वारा असली महिलाओं का बलात्कार। और यह आरम्भ हो चुका है। वर्ष 2020 में अमेरिका में इलियोंस की महिलाओं की सबसे बड़ी जेल में एक कैदी ने कहा था कि उसका बलात्कार एक ट्रांसजेंडर साथी ने किया था, जिसे उसके कमरे में स्थानांतरित किया गया था।

डेली मेल आनलाइन में भी यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि एक 56 वर्ष की ट्रांस-महिला कैदी ने तीन महीनों के दौरान चार महिला कैदियों के साथ बलात्कार किया था।

क्योंकि ट्रांस-महिलाओं को महिला मानकर महिलाओं की ही जेल में भेज दिया जाता है, परन्तु हार्मोन ट्रीटमेंट द्वारा लिंग परिवर्तन के बाद महिला बने इन पुरुषों के यौनांग पुरुषों के ही होते हैं। ऐसे में बहुत ही कठिन होता है यह निर्णय कर पाना कि जो पुरुष यौनांग के साथ कथित महिलाएं हैं, वह कितनी महिलाएं हैं? अर्थात वह महिला सामने पाकर बलात्कार तो नहीं करेंगी? क्या होगा जब मामला पुलिस में जाएगा? आदि, आदि!

लिबरल्स का शिगूफा
जो सामान्य महिलाएं हैं, उन्हें नीचा दिखाकर असामान्य महिलाओं को बेहतर दिखाना, यह लिबरल्स का नया शिगूफा है, जो उन्होंने अब छोड़ा है और इसके आतंक की कितनी तहें और हैं, इनकी चर्चा हम आने वाले और लेखों में करते रहेंगे। क्योंकि यह मामला सांस्कृतिक है, यह मामला धार्मिक है और यह मामला सामाजिक तानेबाने का है, जिसे लिब्रल्स बहुत ही तेजी से तोड़ने के लिए कदम आगे बढ़ा रहे हैं!

यह मामला उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि वे इस मामले का विरोध करने पर अपनी ही प्रिय जे.के. रोलिंग के बहिष्कार पर उतर आई हैं!

Topics: इस्लामोफोबियाजे.के. रोलिंगस्कॉटलैंड पुलिसलिबरल जगतलिबरल्स का नया शिगूफाहार्मोन ट्रीटमेंट
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