पटना के समीप चल रही एक गोशाला में केवल देसी गायें पाली जाती हैं। यहां प्रतिदिन 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। यहां के दूध और घी की मांग इतनी है कि गोशाला संचालक उसे पूरा नहीं कर पा रहे
पटना के विनोद सिंह पारंपरिक उपाय द्वारा समाज को समृद्ध करने में जुटे हैं। वे न केवल देसी प्रजाति वाली गायों को बचा रहे हैं, बल्कि लोगों को शुद्ध दूध और घी भी उपलब्ध करा रहे हैं। उनकी गोशाला पटना जिले के बिहटा-सरमेरा पथ पर कन्हौली के समीप बिशनपुरा गांव में अवस्थित है। 50 बीघे में फैली इस गोशाला में गिर नस्ल की 150 से अधिक गायें हैं। यहां से अत्याधुनिक वाहन से पटना के सैकड़ों घरों तक 140 रु़ प्रति लीटर की दर से दूध पहुंचाया जा रहा है। वहीं, घी की कीमत 4,800 रु़ प्रति किलोग्राम है।
यह गोशाला पांच वर्ष पहले शुरू हुई है। इसके पीछे एक कहानी है। जैसा कि प्रत्येक घर में होता है, रात में मां अपने बच्चों के सामने दूध का गिलास रखकर जबरदस्ती पीने के लिए कहती है। विनोद के साथ भी यही होता था। उनकी मां उन्हें एक गिलास दूध देती थी। उस दूध को उन्हें पीना ही पड़ता था। वह दूध गाय का होता था। उनके घर पर कई देसी गायें थीं। उनकी मां दूध में कभी चीनी नहीं मिलाती थीं, फिर भी दूध बहुत मीठा होता था। विनोद कहते हैं, ‘‘जब बड़े हुए तो जीवन में कई बदलाव हुए।
‘नंदिनी सदस्यता’ के तहत सदस्य बनने वाले को 2,00,000 रु़ देने होते हैं। इसमें 4 साल तक प्रतिदिन एक लीटर दूध दिया जाता है। अगर कोई 4,00,000 रु. की सदस्यता लेता है तो उसे 4 साल तक एक लीटर दूध और इतने ही साल तक एक किलो घी दिया जाता है।
उस बदलाव में दूध भी शामिल था। पहले पैकेट का और फिर जर्सी गाय का दूध, लेकिन इनमें वह स्वाद नहीं था, जो बचपन में मां द्वारा दिए गए दूध में होता था। इन सबको देखते हुए मैंने देसी नस्ल की गाय पालने का संकल्प लिया। चार वर्ष पूर्व घर पर एक गाय पाली और उसके दूध का सेवन करने लगे, पर उसी समय लगा कि देसी गाय का दूध समाज के अन्य लोगों को भी मिले। फिर मन में आया कि देसी गाय के पालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।’’ उन्होंने इसी संकल्प के साथ 8 मार्च, 2017 को बिशनपुरा में 25 देसी गायों से गोशाला की शुरुआत की। प्रारंभ में विनोद लोगों के बीच घूम-घूम कर बताते थे कि गाय का दूध अमृत के समान होता है, पर बाजार में उपलब्ध मिलावटी दूध एक प्रकार से विष के बराबर है। लेकिन उनके इस पुनीत कार्य को बदनाम करने के लिए मिलावटी दूध का कारोबार करने वालों ने गोशाला के बारे में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। लेकिन विनोद इस पर ध्यान न देकर अपने संकल्प को पूरा करने में लगे रहे। धीरे-धीरे उनका प्रयास रंग लाने लगा। देसी गाय को बचाने के अभियान में देश के कोने-कोने से लोग जुड़ने लगे।
इस अनूठी गोशाला का सदस्य बनकर कोई भी गोसेवा कर सकता है, परंतु कुछ शर्तों के साथ। सिर्फ सनातनी लोग ही गोशाला के सदस्य बन सकते हैं। उन्हें साल में दो बार गोसेवा के लिए गोशाला आना होता है। साथ ही गायों के रखरखाव के लिए सेवा शुल्क देना पड़ता है। संस्था की ओर से 14,000 रु़ में ‘गोपाल सदस्यता’ दी जाती है, जिसके तहत 200 दिन तक आधा लीटर दूध हर रोज उपलब्ध कराया जाता है।
‘ब्लेसिंग मेंबरशिप’ के तहत 91,000 रु़ देने होते हैं, जिसके बदले में एक लीटर दूध 700 दिन तक मिलता है। अगर किसी को शुद्ध घी लेना है तो इसके तहत 19 महीने तक एक किलो शुद्ध घी दिया जाता है। ‘नंदिनी सदस्यता’ के तहत सदस्य बनने वाले को 2,00,000 रु़ देने होते हैं। इसमें 4 साल तक प्रतिदिन एक लीटर दूध दिया जाता है। अगर कोई 4,00,000 रु. की सदस्यता लेता है तो उसे 4 साल तक एक लीटर दूध और इतने ही साल तक एक किलो घी दिया जाता है। बिहार से बाहर रहने वाले शुद्ध घी का विकल्प चुन सकते हैं और 4 साल पूरे होने के बाद चाहें तो पूरे पैसे वापस ले सकते हैं।
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