सूखा और अपराध के लिए कुख्यात बुंदेलखंड में एक ग्रामीण युवक ने अपने दादा से मिली सीख और मां की प्रेरणा से अपने गांव को जलग्राम में परिवर्तित कर दिया। आज केंद्र सरकार भी इस युवक के मॉडल को देश भर में अपनाने के लिए सरपंचों को पत्र लिख रही है
परिदृश्य-1 :
पहचान : सूखा, गरीबी, अपराध, पलायन
गांव में कोई स्कूल नहीं, बिजली नहीं, पीने का पानी नहीं। कुएं, हैंडपंप ही प्यास बुझाने के लिए उपलब्ध।
गांव की आबादी करीब दो हजार, कृषि भूमि 2472 बीघा, भूजल स्तर 70 फुट से अधिक, 80 प्रतिशत नौजवान शिक्षा के लिए बाहर गए, 20 प्रतिशत अपराध में लिप्त या जेल में बंद। रोजगार के साधन नहीं, अधिकतर किसान कर्ज के बोझ से दबे, ट्रैक्टर या कृषि यंत्र नहीं। फसल : पुरानी परंपरागत खेती और उदासीन किसान।
परिदृश्य-2 :
पहचान : देश का पहला जलग्राम, समृद्ध, संपन्न, शिक्षित, खुशहाल
गांव में प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूल, बिजली और पक्की सड़क
गांव की आबादी 2562, कृषि भूमि 2472 बीघा, गांव में 33 कुएं, 25 हैंडपंप, और 06 तालाब हुए लबालब, भूजल स्तर 20 फुट तक उठ आया, गांव में हो रही है हजारों क्विंटल धान की खेती। वर्ष 2020 में हुई 25 हजार क्विंटल बासमती धान की पैदावार। डेढ़ दशक से अपराध बंद। शहरों से 165 युवा गांव में लौटे। खेती से कर रहे हैं अच्छी कमाई। किसान क्रेडिट कार्ड के अलावा किसी किसान पर कोई ऋण नहीं। गांव में ट्रैक्टरों, कृषि उपकरणों की भरमार।
आज विकास की अंधी दौड़ में दोनों तस्वीरों को देखें तो एकाएक यकीन नहीं होगा, लेकिन जब असलियत जानेंगे तो यकीन भी होगा और सुकून भी मिलेगा। दशकों से ही पानी की किल्लत से जूझने वाले बुन्देलखंड में एक जलयोद्धा ने अपने बल पर बुंदेलों की किस्मत को ही पलट दिया है। कभी गर्मियों में मालगाड़ियों से पानी मंगाने वाले बुंदेलखंड में पुरखों की बताई लीक से न केवल भूजल का स्तर सुधरा बल्कि खेतों को इतना पानी मिलने लगा कि हजारों क्विंटल धान की खेती होने लगी।
गांवों को पानीदार बनाने की यह मुहिम किसी सरकारी योजना या अनुदान की मोहताज नहीं बल्कि बुंदेलों के संकल्प और श्रम के बल पर ऐसी चली कि सरकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इसी मुहिम ने देश में 1050 जलग्राम बनाने की प्रेरणा दी।
पांच फुट दस इंच के सांवले रंग और इकहरी कदकाठी के इस दिव्यांग जलयोद्धा से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रभावित होकर ‘खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़’ के मंत्र को सिद्ध करने वाले उमाशंकर पांडेय को मन की बात कार्यक्रम में लाकर पूरे देश से उनका परिचय कराया। इतना ही नहीं, पांडे की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए देश के ढाई लाख सरपंचों को पत्र लिख कर जल संरक्षण की इस विधि को अपनाने का आह्वान किया।
नीति आयोग ने जखनी गांव के जलसंरक्षण मॉडल को सर्वश्रेष्ठ परंपरागत मॉडल माना और इसके बाद तो इज्राएल के वैज्ञानिक, टीम वर्ल्ड वाटर रिसोर्स ग्रुप 2030, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, उत्तर प्रदेश सरकार और विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ भी उत्सुकतावश इस गांव के लोगों के करिश्मे को देखने पहुंचे। नीति आयोग ने उमाशंकर पांडेय को भू-जल संरक्षण समिति में सदस्य नामित किया है। इस करिश्मे के आंकड़ों एवं दस्तावेजों में परिणामों की ठोस गवाही है जिसमें अतिशयोक्ति की गुंजाइश नहीं और छिपाने की जगह नहीं। जो कुछ है सीधा, सपाट। भले ही जखनी गांव के इस जलयोद्धा और उनके साथी किसानों के पास कोई ऊंची डिग्री ना हो लेकिन बुंदेलखंड में जलसंरक्षण के उनके इस कामयाब प्रयोग ने प्रमाणित किया है कि वे किसी कृषि एवं जल वैज्ञानिक से कम नहीं हैं।
सर्वोदय भूदान आंदोलन और नानाजी देशमुख के ग्राम विकास अभियान से जुड़े रहे उमाशंकर पांडेय को पानी पर काम करने की पहली प्रेरणा देश के जनप्रिय राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से और फिर अपनी मां से मिली। और, तब उन्होंने बचपन में अपने दादा और पिता से मिली सीख को हथियार बनाया, कुछ युवा साथियों को जोड़ा और इस प्रकार से शुरू हुए इस अभियान ने जल संकट की ओर तेजी से बढ़ रही दुनिया को एक रास्ता दिखाया।
आइये चलते हैं दुनिया को रास्ता दिखाने वाले इस जलतीर्थ गांव की यात्रा पर। बांदा पार करके जैसे ही प्रयागराज के रास्ते पर बढ़ते हैं, करीब 14 किलोमीटर दूर महुआ से कुछ दूरी पर बाएं हाथ पर स्थित है जखनी। यहां 61 किसान बड़ी जोत वाले, 265 किसान छोटी जोत वाले तथा 43 पट्टाधारक किसान हैं। गांव के पहले और बाद में चारों ओर अधिकांश खेतों पर दो से तीन फुट ऊंची मेड़ें और उन पर नींबू, करौंदा, अमरूद, बेल, सहजन, बेर, कटहल, शरीफा, सागौन के पेड़ लगे दिखाई देते हैं। गांव में एक बड़ा तालाब और आसपास पांच अन्य तालाब हैं। यहीं घर है उमाशंकर पाण्डेय का।
श्री पाण्डेय बताते हैं कि उनकी शिक्षा बांदा में हुई जहां उनके पिता ने घर बनवा दिया था लेकिन माता-पिता गांव में ही रहते थे। उनका मन गांव की दुर्दशा देख कर खिन्न रहता था जहां आना-जाना भी मुश्किल था, बिजली नहीं थी, खेती-बाड़ी का काम भी पानी के अभाव के कारण थोड़ा-बहुत ही हो पाता था। गांव के अधिकांश नौजवान बाहर जा चुके थे और 20 प्रतिशत युवा अपराध में लिप्त थे या जेल में बंद थे।
श्री पाण्डेय के अनुसार उनकी प्रेरणा के मुख्यत: तीन स्रोत हैं। कुछ करना है, इसकी प्रेरणा विनोबा भावे और नानाजी देशमुख से मिली। क्या करना है, इसकी प्रेरणा डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से मिली और कहां करना है, इसकी प्रेरणा मां से मिली। अपनी युवावस्था से ही विनोबा भावे के भूदान आंदोलन और चित्रकूट में नानाजी देशमुख के ग्राम विकास के अभियान से जुड़ाव होने के कारण उनमें कुछ करने की ललक जग चुकी थी। भूदान आंदोलन के कारण ही उनका पैर बुरी तरह से चोटिल हो गया और स्थायी विकलांगता आ गयी।
इसी दौरान वर्ष 2005 में उन्हें दिल्ली में विज्ञान भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के एक कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला जिसमें डॉ. कलाम ने कहा था कि भारत के गांवों में जलसंकट अधिक गंभीर है। हमें गांव को जलग्राम के रूप में विकसित करना होगा। बाद में तीन दिन तक चली कार्यशाला में श्री पांडेय के मनोमस्तिष्क में यह विचार बैठ गया कि गांवों को पानीदार बनाने के लिए कुछ किया जाना चाहिए। लेकिन इसके बाद एक घटना और हुई, जब वह अपनी मां को शहर लाना चाहते थे लेकिन मां ने गांव और गांव के लोगों के उन्नयन के लिए कुछ करने को कहा। प्रख्यात जल विशेषज्ञ स्वर्गीय अनुपम मिश्र ने भी उमाशंकर पांडेय के मनोबल को बढ़ाया और जखनी को बिना किसी सरकारी सहायता के और परंपरागत साधनों के बल पर देश का पहला जलग्राम बनाने का संकल्प दिलाया।
श्री पाण्डेय ने कहा कि जब उन्होंने यह विचार गांव आकर अपने साथियों के समक्ष रखा तो पहले सब आशंकित थे। सबने पूछा कि यह होगा कैसे। इस पर उन्होंने मेड़बंदी और मेड़ पर पेड़ लगाने की बात कही जो उन्होंने बचपन में अपने दादा जी से सुनी-सीखी थी। फिर क्या था, उन्होंने ठान ली और श्री पाण्डेय के साथियों – 72 वर्षीय अली मोहम्मद से लेकर नौजवान निर्भय सिंह, अशोक अवस्थी, राजा भैया वर्मा, सुरक्षा पाण्डेय, पुष्पा देवी, प्रेमचंद वर्मा, शांति कुशवाहा, मामून रशीद, रामबली सिंह, संता राजपूत ने फावड़े, तसले, गैंती, डलिया उठाकर खेतों पर मेड़बंदी यज्ञ शुरू किया।
सैकड़ों लोगों ने श्रमदान किया। फिर मेड़ पर पेड़ लगाने का काम शुरू किया। बारिश हुई तो खेतों में पानी भर गया। इसे देख कर श्री पांडेय ने धान की फसल लगाई। पहले साल 10 किसानों ने 116 क्विंटल बासमती पैदा किया। जब अच्छी फसल हुई तो साल दर साल यह सिलसिला बढ़ता गया। जखनी की कामयाबी देख कर आसपास के गांवों – घुरौडा में 500 बीघा, जमरेही में 800 बीघा, साहेबा में 400 बीघा, बसुंडाखुर्द बुजुर्ग में 400 बीघा खेतों की मेड़बंदी की। इन पांच गांवों के बाद 50 गांवों के सैकड़ों किसानों ने इसी लीक का अनुसरण किया और देखते ही देखते तस्वीर बदल गई।
जखनी मॉडल की उपलब्धियां
- वर्ष 2015 और 2016 में जल क्रांति अभियान के अंतर्गत केन्द्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने जखनी मॉडल पर 1050 जल ग्राम बनाए। प्रत्येक जिले में दो गांवों को जल ग्राम के तौर पर चुना गया।
- जखनी मॉडल पर 6000 करोड़ की अटल भूजल योजना बनाई गई जिसका शुभारंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 19 दिसंबर को अटल जी के जन्म दिवस के अवसर पर विज्ञान भवन में किया था।
- प्रधानमंत्री मोदी ने मेड बंदी के परिणाम के आधार पर पुरखों की परंपरागत जल संरक्षण व्यवस्था के लिए संपूर्ण देश के प्रधानों को मेड़बंदी के लिए पत्र लिखा।
- जल जीवन मिशन के लिए जखनी को एक सफल मॉडल माना गया जिसको जल जीवन मिशन ने अपने सरकारी ट्विटर पर देश के सामने साझा किया।
- नीति आयोग भारत सरकार ने जखनी को देश के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण के रूप में देश के सामने साझा किया। बगैर सरकार की सहायता के सामुदायिक आधार पर परंपरागत जल संरक्षण का एक सफल प्रयोग माना।
- उमाशंकर पाण्डेय को उनके जल संरक्षण के प्रयासों और संघर्ष को देखते हुए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले नीति आयोग की भूजल संरक्षण समिति के जल संरक्षण समिति समूह में सदस्य मनोनीत किया गया है।
ल्ल - कोरोना काल के दौरान सूखा प्रभावित राज्यों की सरकारों ने सर्वाधिक रोजगार जल संरक्षण की दिशा में मेड़बंदी के लिए दिया।
- उमाशंकर पाण्डेय को जलसंरक्षण के इस अनूठे एवं कामयाब प्रयोग के लिए देश का पहला जलयोद्धा पुरस्कार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों प्राप्त हुआ।
- बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी श्री हीरालाल ने सर्वप्रथम ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ का यह मॉडल जिले की 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया।
- तत्कालीन कृषि उत्पादन आयुक्त उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मॉडल को संपूर्ण उत्तर प्रदेश के गांव के लिए उपयुक्त माना।
- केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत तथा जल शक्ति मंत्रालय ने कई बार अपने सरकारी तथा निजी ट्विटर फेसबुक पर जखनी के सामुदायिक जल संरक्षण के प्रयास की सराहना की है तथा साझा किया है।
- केन्द्रीय जल शक्ति राज्यमंत्री प्रह्लाद पटेल ने भी अपनी फेसबुक ट्विटर पर इस जल संरक्षण प्रयास की सराहना की है।
- उत्तर प्रदेश सरकार के जल शक्ति मंत्री तथा उत्तर प्रदेश सरकार के जल शक्ति मंत्रालय विभाग ने कई बार अपने सरकारी ट्विटर हैंडल पर इस गांव की सराहना की है।
- नीति आयोग ने भी अपने सरकारी ट्विटर पर सराहना की है और देश के लिए उपयोगी माना है। वर्षा बूंदें जहां गिरें, वही रोकें, जखनी इसका एक उदाहरण है।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन राज्य भूजल के निदेशक, विभिन्न वैज्ञानिकों, जल विशेषज्ञों ने तथा केन्द्र सरकार के जल शक्ति सचिव ने स्वयं इस गांव का भ्रमण किया है और इस मॉडल को देश के लिए उपयोगी माना है।
श्री पाण्डेय का कहना है कि धान, गेहूं की फसल तो केवल मेड़बंदी से रुके जल से ही होती है। हमारे पूर्वज जल रोकने के लिए खेत के ऊपर मेड़ और मेड़ के ऊपर बेल, सहजन, सागौन, करौंदा, अमरूद, नींबू, बेर, कटहल आदि फलदार औषधीय पेड़ जिनकी छाया खेत में कम से कम पड़े तथा अरहर, मूंग, उड़द, अलसी, सरसों, ज्वार, सन जैसी फसल लगाते थे जिन्हें कम पानी चाहिए। इनके पत्तों एवं अवशेषों से जैविक खाद बनती है। इस तरह ये हर प्रकार से लाभदायक प्रयोग रहा।
बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी हीरालाल ने जिले की 471 ग्राम पंचायतों को जखनी मॉडल पर जल संरक्षण का संदेश दिया। जखनी मॉडल पर चलने वाले गांवों में कुओं-तालाबों का जलस्तर ऊपर आने लगा, गांवों में बासमती धान, सब्जिÞयां, दूध उत्पादन में क्रांतिकारी बदलाव हुआ। इससे इन गांवों में किसानों की तकदीर बदलने लगी। श्री पाण्डेय बताते हैं कि केवल जखनी के किसानों ने वर्ष 2020 में 25 हजार क्विंटल धान और 16 हजार क्विंटल गेहूं पैदा किया। जल जागरण से आसपास के गांवों के बेरोजगार लगभग 1700 मजदूरों को खेतों में जुताई, बुआई, धान की रोपाई, मनाई, कटाई, मेड़बंदी आदि कामों में रोजगार मिला। क्षेत्र के गांवों में स्वरोजगार एवं आत्मनिर्भरता के लिए सात महिला स्वयंसहायता समूहों का गठन किया गया है।
आज छोटी से छोटी जोत वाला किसान कम से कम एक लाख रुपये कमा लेता है।
गांव में 2005 में एक भी ट्रैक्टर नहीं था। वहीं आज जखनी में 50 से अधिक ट्रैक्टर हैं। जखनी के शांति कुशवाहा, गुलाब राजपूत श्यामलाल मीडे, लाल राजपूत सब्जी उत्पादन में तो राममिलन अवस्थी, निर्भय सिंह, रामकिशोर, राजा भैया वर्मा, औरंगजेब दुग्ध उत्पादन में, साहिल रशीद, लाला मंसूरी, रहमान खान, बाबू सिंह मछली पालन, पुष्पा वर्मा, प्रेमचंद बकरी पालन कर रहे हैं। जबकि मामून रशीद, रामसेवक प्रजापति, अशोक प्रजापति, निर्भय सिंह, अली मोहम्मद, सुरक्षा पाण्डेय, रामबली सिंह ने बासमती धान और उमाशंकर पाण्डेय, चंद्रकांत, राममिलन, रज्जू खां ने गेहूं उत्पादन में कीर्तिमान कायम किया। गेहूं, धान, चना, तिलहन, दलहन के साथ-साथ सब्जी, दूध और मछली पालन से जखनी के किसान समृद्ध और साधन संपन्न होने लगे। यहां तक कि चार बीघे के छोटे से छोटे किसान के पास भी आज अपना ट्रैक्टर है और वह भी बिना किसी कर्ज के। 20 बरस पहले जखनी गांव बांदा जिले का सबसे गरीब गांव था जहां एक भी नौजवान गांव में नहीं था। वर्तमान में 99 प्रतिशत नौजवान, जो पलायन कर गए थे, वापस आ गए हैं और अपनी परंपरागत खेती करने लगे हैं।
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